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28 May, 2020

गाते, बजाते या संगीत सृजन करते समय, आप दुनिया का सबसे खूबसूरत इंसान होते हैं!

चुरा लिया है तुमने जो दिल को..! दम मारो दम मिट जाए गम फिर बोलो सुबह शाम...! नीले नीले अंबर पर चांद जब आए, ऐ मेरे हमसफ़र एक ज़रा इंतज़ार..! ओ ओ जाने जाना ढूंढे तेरा दीवाना...! आंख है भरी भरी और तुम मुस्कुराने..! सन 1980 से लेकर वर्ष 00 तक के इन गानों में एक बात ख़ास है। सभी में म्यूजिक डायरेक्टर ने गिटार का भरपूर प्रयोग किया है। आरडी वर्मन, बप्पी लहरी, मिलिंद आनन्द, नदीम श्रवण से लेकर एआर रहमान आदि तक ने।

दरअसल गिटार की धुन की मधुरता ही ऐसी होती है। इसमें भले ही ठहराव नहीं होता। फिर भी इसकी आवाज़ सीधे किसी के रूह को छूती है। वैसे भी कला और साहित्य में संगीत का स्थान सबसे ऊंचा माना गया है। पूरा सामवेद ही इसी पर आधारित है। संगीत की जानकारी किसी के भी जीवन में बहार लेकर आती है। कहा भी गया है, "जब आप गा, बजा या संगीत सृजन कर रहे होते हैं। उस समय आप दुनिया का सबसे खूबसूरत इंसान होते हैं।"

लेकिन विडंबना है कि ये हुनर किसी को भी विरासत में ही मिलता है। प्रशिक्षण से उसमें महज़ निखार लाया जाता है। हर आदमी के जीवन में एक मोड़ जरूर आता है। जब वह किसी न किसी वाद्य यंत्र की ओर आकर्षित जरूर होता है। बांसुरी, हारमोनियम, सितार, बैंजो, तबला, नाल, वायलिन, मेंडोलिन, पियानो (ऑर्गन), गिटार...! जिसके प्रति भी हो। अब इसे सिनेमा के गीतों का असर कहें या ग्लैमर। कैम्पस के दिनों में किशोरवय लड़कों में एक बड़ा भ्रम रहता है। वे गिटार बजाएंगे तो लड़कियां उनकी तरफ़ खींचीं चली आएंगी।

ऐसा होना स्वाभाविक भी है। दरअसल ये उम्र ही ख़्वाबों और ख्यालों में खोने की होती है। कल्पना में होती है एक ऐसी रूमानी जगह, जहां कोई नहीं हो। बस हरी-भरी पार्क हो, जंगल वाले पहाड़ की ढलान हो, नदी, समंदर की उफ़नाती लहरें हों। हम हो, 'वो' हो और साथ में गिटार। हम गाते जाएं, बजाते जाएं और 'वो' सुनती रहे! शायद इसी कारण से पूरी दुनिया के युवाओं में गिटार जितना क्रेज़ है, उसकी दूसरी कोई सानी नहीं।

लेकिन इतना जान लीजिए, लड़की से दोस्ती कर लेना चुटकी का खेल हो सकता है। जबकि गिटार सीखने के लिए महीनों कम पड़ जाएंगे। इसे सीखने के शुरुआती दिन भी कम कष्ट से भरे नहीं होते। रियाज़ के दरम्यान स्ट्रिंग्स (तारों) को दबाने से, बाएं हाथ की चार अंगलियां (अंगूठा को छोड़कर) उपरी भाग घिस जाता है। किसी किसी की अंगलियों में तो फटकर खून भी निकल जाता है। उनमें गड्ढे पड़ने से काले व बदसूरत दिखने लिखते हैं। और इसका दर्द तो कोई भुक्तभोगी ही बता सकता है।

लड़कियों को रिझाने वाली बात में यह भी गौर करने लायक है। दो जोड़ों में परस्पर प्यार तभी उमड़ता है। जब दोनों के ही मन में ऑक्सिटॉक्सिन और डोपामाइन हार्मोन का स्राव हो। इसका सूरत और सीरत से कोई वास्ता नहीं होता। उसी तरह आपके भीतर संगीत नहीं है, तो लाख हाथ-पांव मारते रह जाइएगा। कुछ भी पल्ले नहीं पड़ेगा, निराशा ही हाथ लगेगी। अंत में वहीं बात हो जाएगी, न तो ख़ुदा मिला न विसाले सनम! और जितने भी माहिर म्यूजिशियन हैं, उनका यहीं अनुभव है।

आप किसी एक वाद्य यंत्र में पारंगत हों तो अन्य म्यूजिकल इंस्ट्रुमेंट बजाना भी आपके लिए आसान हो जाते हैं। बता दें कि गिटार का अविष्कार 17वीं सदी में स्पेन में हुआ था। और 18वीं सदी में ब्रिटेन के युवाओं पर यह छा गया था। गिटार दो तरह के होते हैं, हवाईयन और स्पेनिश। हवाईयन में ठहराव होता है। इससे क्लासिकल सांग्स बजाए जा सकते हैं। लेकिन परेशानी ये है कि इसे पोर्टेबल रखकर बजाना पड़ता है। जबकि स्पेनिश की धुन में ठहराव नहीं होने के बावजूद मोबिलिटी है। बिना किसी सहारे के कोई भी, कहीं भी खड़े होकर कॉर्ड बजाते हुए गा सकता है।

यह लकड़ी से बना होता है जिसमें मोटे-पतले नायलॉन के छह स्ट्रिंग (तार) लगे होते हैं। इन्हें ट्यून करने के लिए छह घुंडीया भी लगी होती हैं। इसकी कीमत चार हजार से लेकर 50 हजार रुपए तक होती है। शुरुआत में सीखने के लिए चार हजार रुपए वाला एकॉस्टिक गिटार ही मुफ़ीद रहता है। इस पर अच्छे से कॉर्ड बजाया जा सकता है। सीखने के बाद ग्रुप परफॉर्मेंस या म्यूजिक कंपोज के दौरान लीड, बेस और रिदम बजाने के लिए इलेक्ट्रॉनिक गिटार लिया जा सकेता है। जहां तक सीखने का सवाल है, यदि कोई पहले से किसी एक वाद्य यंत्र को बजाना नहीं जानता। उसे बुनियादी चीजें समझने में थोड़ा समय लगता है।

हां एक बात और, ड्राइंग रूम की शोभा बढ़ानी या हाथों में लेकर फ़ोटो खिंचानी हो तो अलग बात है। लेकिन सही मायने यदि सीखने की ललक है। तो एक पुरानी कहावत है, "जल पियो छानकर, गुरू करो जानकर!" संगीत का गुरु उसी को बनाइए जिसका ध्यान आपके पॉकेट से ज़्यादा सिखाने पर हो। भले ही मीठा-मीठा नहीं बोलकर डांटने वाले हों। देश की किसी भी छोटे-बड़े शहर में ऐसे गुरुओं की संख्या भले ही कम है। लेकिन ढूंढने से तो भगवान भी..!

©️श्रीकांत सौरभ (पढ़ाई के लिए पटना प्रवास के दौरान शुरुआती दिनों में वाद्य यंत्र सीखने का प्रशिक्षण लिया। योग्य गुरु के सान्निध्य में महीनों तक तमाम प्रयास के बावजूद ख़ुद से धुनें निकालने का हुनर नहीं सीख पाया। इतना जरूर था कि संगीत की बुनियादी समझ आ गई। बचपन से तमन्ना रही इस क्षेत्र में कुछ अच्छा करने की। लेकिन नियति ने लेखक बना दिया।)


1 comment:

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

स्वगत की सुन्दर प्रस्तुति।