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22 September, 2020

चोर कौन?

कल बाजार में एक चोर को पीटते देखा

घेरी थी दर्जनों की भीड़, मारो साले को...

पूछा मैंने सामान इसने क्या हाथ लगाया है

झट बोले, चुराए मोबाइल के साथ धराया है


सहसा मन में ये ख़्याल आया

पकड़ाया वो तो चोर कहलाया

लेकिन उनका क्या जो शायद ही धराते हैं

गिरवी रखकर ईमान नाजायज़ कमाते हैं


वो हेडमास्टर जो बच्चे को एमडीएम खिलाते हैं

चार रुपए प्रति रेट में भी ढाई रूपया बचाते हैं

वो सरकारी कर्मचारी जो काम लटकाते हैं

बिना नज़राना के फाइल आगे नहीं बढ़ाते हैं


वो पुलिस जवान जो सड़कों पर बिकते हैं

गुंडे बदमाश दादा इनके ही सहारे टिकते हैं 

वो एसएचओ जो फरियादी को हड़काते हैं

लेकर घूस केस में दफ़ा पर दफ़ा लगाते हैं


वो वकील जो जज से सेटिंग कराते हैं

मोटी फ़ीस ले गुनाहगारों को बचाते हैं

वो प्रोफेसर जो लाखों की सैलरी उठाते हैं

महीने में देके लेक्चर चार फर्ज़ निभाते हैं


वो डॉक्टर जो दो की जगह दस जांच कराते हैं

मरीज़ की अंतिम सांस से भी कमीशन खाते हैं

वो हलवाई जो बिना दूध के छेना बनाते हैं

जहरीली मिठाई बेंचकर चार गुना कमाते हैं


वो बाबू जो सीडीपीओ की दलाली करते हैं

पीसी के बिना किसी को पोषाहार नहीं देते हैं

वो बीडीओ एसडीओ जो वसूली करवाते हैं

विभागों से चढ़ावा लेकर उपर तक पहुंचाते हैं


वो एनजीओ वाले जो सादगी दिखलाते हैं

सौ रुपए खर्च कर डेढ़ सौ का बिल बनाते हैं

वो पत्रकार जो चंद रुपयों में बिक जाते हैं

एकतरफा ख़बर से जनता को भरमाते हैं


वो फैक्ट्री मालिक जो काबिलियत दबाते हैं

रेट कम देकर कामगारों को ज़्यादा खटवाते हैं

वो ठेकेदार जो काम 40 प्रतिशत में कराते हैं

जनप्रतिनिधि इंजीनियर मिलकर मौज उड़ाते हैं


वो फल-सब्जी वाले जो वजन कम तौलते हैं

देकर सड़ी चीज़ को भगवान कसम बोलते हैं

वो दर्जी जो सवा मीटर में दो बित्ते उड़ाते हैं

उससे पोशाक न सही पैंट की जेब बनाते हैं


इसके बावजूद है आसान कहके बच जाना

भगवान की है मर्जी क्या, कब किसने जाना


वो भगवान जो मजदूरों से पसीने बहवाते हैं

ठेले रिक्शे वालों की चमड़ी धूप में झुलसाते हैं

दो वक्त की रोटी को फिर भी उन्हें तरसाते हैं

और तमाम धंधेबाजों पर पूरी कृपा बरसाते हैं


©श्रीकांत सौरभ





21 September, 2020

अझुराइल जमाना

खेती बाड़ी से नाता टूटल सउसे खेत बटाई उठल

खायन पियन जाता छूटल भाई से बा भाई रूठल

जेकरा से पूछ$ टाइम नइखे एके भइल बहाना बा

फेसबुक-व्हाट्सअप में अझुराइल जमाना बा


देहि में धुरा लगाके पसेना घामा बहाके का होई

डीलर से मिलते बा राशन ढेर कमाके का होई

फिरी माल के लालच में लुटा गइल खजाना बा

फेसबुक-व्हाट्सअप में अझुराइल जमाना बा


बियाह सराध बेमारी के नामे धुरे धुरे बिकाता

बिगहा से काठा प आइल मनवा बढ़ले जाता

एडभांस बनेके फेरा में धरावल धइल गंवाना बा

फेसबुक-व्हाट्सअप में अझुराइल जमाना बा


खाता में मनरेगा वाला अनघा रुपया आव$ता

मुखिया जी के किरपा के सभे गुणवा गाव$ता

लउकल डारही मोटे ओनही सिर भइल नवाना बा

फेसबुक-व्हाट्सअप में अझुराइल जमाना बा


घरे घरे चहुपल सगरी हाथे हाथे बड़का मोबाइल

सेल्फी खिंचत रहेली बबुनी दे देके छोटका स्माइल

टिकटॉक भिडियो से सभे बउराइल दीवाना बा

फेसबुक-व्हाट्सअप में अझुराइल जमाना बा


अस्पताल में ना बाड़े डाक्टर स्कूल में पढ़ाई नइखे

बन भइले सरकारी नोकरी प्राइवेट में मलाई नइखे

जाति धरम प देस के टुका टुका कइल निसाना बा 

फेसबुक-व्हाट्सअप में अझुराइल जमाना बा


नकल में जिए वाला के तनिको अकल ना होखेला

सोच गुलामी अंगरेजन वाला बढ़े से आगा रोकेला

शासन उहे बिजनेस वाला हावी भइल घराना बा

फेसबुक-व्हाट्सअप में अझुराइल जमाना बा


©श्रीकांत सौरभ





18 September, 2020

जिनगी नून तेल चाउर दाल ना ह$

बीती जाला लड़िकाई हंसी खेल में

बिना मेहरिया जवानी जाल ना ह$

बुझाला बादे जब चढ़ेला मउर माथे

हर घड़ी गोटी एकर लाल ना ह$

जिनगी के आधार ह$ गृहस्थी

बस नून तेल चाउर दाल ना ह$


दादा के भरोसे अदौरी भात

हरदम मिले ऊ थाल ना ह$

भूखे पेट कबो सहेके पड़ेला

एक निहर समय के चाल ना ह$

जिनगी के आधार ह गृहस्थी

बस नून तेल चाउर दाल ना ह$


बुझेली चिलम जेहि प चढ़ेला अंगार

खलिहा बजावे वाला गाल ना ह$

सुर ताल मातरा सीखेके पड़ेला

संगत पुगावे भर झाल ना ह$

जिनगी के आधार ह गृहस्थी

बस नून तेल चाउर दाल ना ह$


मुड़ी के पसेना एड़ी ले चुएला

खटाके मुआवे मने काल ना ह$

केतनो कमइब$ गरज पूरा होई

दोसरा प लुटावे वाला माल न ह$

जिनगी के आधार ह गृहस्थी

बस नून तेल चाउर दाल ना ह$


चूल्हि में जोराके तपेके पड़ेला

दूध में जामल कवनो छाल ना ह$

बितेला जुग त बरियार होला रिस्ता

दिन महीना घटे वाला साल ना ह$

जिनगी के आधार ह गृहस्थी

बस नून तेल चाउर दाल ना ह$


©श्रीकांत सौरभ, पूर्वी चंपारण




16 September, 2020

कुआर के सिधरी

जब चढ़ेला महीनवा कुआर

खूबे छछनेला मनवा हमार

नीक लागेना बहरा के नोकरी

बड़ी इयाद आवे गांवे के सिधरी


चेवरा होखे भा खेतवा बधार

सगरो बहेला पनिया के धार

केतना किसिम के मिलेला मछरी

पोठिया बघवा संगे कोतरा टेंगरी

बड़ी इयाद आवे गांवे के सिधरी


एकहन पेट फोड़ी पित्ती निकालेली

रगड़ी रगड़ी भउजी धोके बनावेली

भुअरी बिलाई नुकाइल झांके कगरी

चाटेला मिलित चोइया एको कतरी

बड़ी इयाद आवे गांवे के सिधरी


सिलउट प सरसो लोरहा से पिसेली

ललका मारचवा लहसुन के घिसेली

पिसत पिसत दुखे हथवा आ पजरी

झांस लागे लोरवा से भरेला नजरी

बड़ी इयाद आवे गांवे के सिधरी


जोड़िके आंच माई फोरन जरावेली

माटी के चूल्हा प कड़ाही चढ़ावेली

महकेला सोन्ह जब पड़ेला पपड़ी

सुंघिए के लइका बजावेले थपड़ी

बड़ी इयाद आवे गांवे के सिधरी


भनली के चिउरा भूंजा अरवा भात

गजबे सुआद लागे रोटियो के साथ

फीका बा आगा एकरा लाख नमरी

सोना चानी चाहे होखे कवनो दमड़ी

बड़ी इयाद आवे गांवे के सिधरी


बरसेला हथिया के मोटे बदरिया 

खोजेला देहि राति के चदरिया

फुटेला कास कसउजा के भीतरी

लउकेला फूल उजर तनि छितरी

बड़ी इयाद आवे गांवे के सिधरी


(सिधरी - मिश्रित छोटी मछलियां, भनली - धान की आगत प्रजाति, कसउजा - कास का पौधा, हथिया - हस्त नक्षत्र))


©श्रीकांत सौरभ, पूर्वी चंपारण