बीमार कितनी खतरनाक थी। इसका अंदाजा इसी बात से लगा सकते हैं। जिसको भी यह बीमारी लगती। अचानक से आठ-दस बार पतला दस्त होता। उल्टियां होतीं। डिहाइड्रेशन से ब्लड प्रेशर नीचे चला जाता। और कुछ ही घन्टे में मौत हो जाती। बिना लोगों के सहयोग के मृतकों का दाह संस्कार करना गंभीर समस्या थी। गांव के पश्चिम टोला में मियां जी 'खलीफा' ही एकमात्र साहसी और जीवट करेजा के इंसान थे। उन्हें सूचना दी जाती तो वे गड़ी (लकड़ी का पहिया वाली छोटी बैल गाड़ी) लेकर आते। एक साथ चार-पांच लाशों को लादकर दूर दक्षिण दिशा वाले सरेह में गड्ढा खोदकर दबा देते।
उसी समय के मेरे गांव कनछेदवा (पूर्वी चंपारण) में एक जमींदार आदमी के घर पर कोई सन्यासी ठहरे हुए थे। अयोध्या से आए थे। गुरु महाराज होने के कारण उनका शिष्य के यहां साल में एक बार आना जरूर होता था। अन्य लोग भी उनके सान्निध्य सुख में प्रवचन सुनने या समस्या का समाधान कराने के लिए पहुंचते।
वे बस इतना ही कहते, 'भगवान पर भरोसा रखिए। सब ठीक हो जाएगा।' कुछ ऐसा ही विश्वास गृहस्वामी को भी हो चला था। साधु बाबा बहुत फक्र से कहते, 'मैं सन्यासी आदमी हूं। ध्यान, प्रणायाम, तपस्या में लीन रहने वाला। मंत्रोच्चारण से मुझे तो यह बीमारी छू भी नहीं पाएगी।
इस वाकये के दो घन्टे बाद ही साधु बाबा को दिशा मैदान की तलब लगी। लोटा में पानी भरे थे कि पेट में जोरदार गड़गड़ाहट हुई। तेज आवाज में बोले, 'फलाना बाबू, जोरों की लगी है। क्या घर के पास ही खेत में निपट लूं?'
यह कहते हुए चापाकल से गिनकर 20 कदम की दूरी पर ही चले थे। बर्दास्त करना मुश्किल हो गया तो धोती उठाकर वहीं बैठ गए। हलकान होकर आए कि 10 मिनट बाद दूसरी बार, फिर तीसरी बार, फिर चौथी बार... और पांचवीं बार में महात्मा जी चापाकल के पास ही ढेर हो गए। पानी वाला लोटा बगल में लुढ़क गया। वहीं पर पड़े पड़े उनके मुंह से उल्टियां होने लगीं। पिछवाड़े में धोती से पतला द्रव बहे जा रहा था।
लेकिन भय के मारे कोई देखने भी नहीं गया। सभी संक्रमित की तरह कुछ घन्टे बाद ही उन्होंने भी वहीं पर दम तोड़ दिया। फिर क्या था। शव को तो ठिकाने लगाना ही था। मियां जी (खलीफ़ा) को बुलाया गया। उन्होंने अकेले कंधे पर लादकर शव को गड़ी में रखा। और बियाबान में ले जाकर निपटा दिया।
©️श्रीकांत सौरभ (*जैसा कि संस्मरण के तौर पर गांव के बड़े-बुज़ुर्गों ने सुनाया। उसी पर यह किस्सा आधारित है।)
1 comment:
यथार्थ को पढ़कर उस समय का चित्र आँखों के सामने मँडराने लगा. बहुत बढ़िया लिखा है.
सादर
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