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21 February, 2020

LOVE स्टोरी - अधूरी चाहत

"मने एकदमे भुचड़ हैं आप! हम बोल रहे हैं कि ई टुटलका धरमशाला की पीछे जो जामुन का पेड़ है। उसकी तरफ़ देखिए। और आप हैं कि एने-ओने देखे जा रहे हैं।" मोबाइल से बात करते हुए जैसे ही लड़की ने हाथों को उठाकर इशारा किया। उजले कुर्ता-पजामा वाले लड़के से उसकी आंखें चार हुईं।

रणवीर कपूर स्टाइल की दाढ़ी में गजब का हैंडसम लुक था। इधर लड़का देखते ही रह गया उसे। क्या झक्कास लग रही थी! पांच फीट तीन इंच का कद। सांवलापन से कुछ उपर, गोरा नहीं लेकिन पानीदार चेहरा! तीखे नैन नक्श! कंधे तक कटे बाल, लाल रंग के शूट पर छींटदार दुपट्टा, पैरों में पाटियाला जुत्ती! कानों में पहने छोटे-छोटे ईयर रिंग्स!

जाने क्यों? समय थम सा गया, और दोनों की धड़कनें तेज हो गईं। लड़के का मन हुआ कि दौड़कर जाएं, और उसे अपनी बांहों में भर लें। लेकिन उसके साथ आई एक और लड़की को देखकर उसने यह रूमानी ख़्याल त्याग दिया।

आज शिवधाम में ग़ज़ब की भीड़ उमड़ी थी। जहां देखिए उत्सवी नज़ारा झलक रहा था। मंदिर में पुरुष-महिलाएं कतार में खड़े होकर शिव लिंग पर जल चढ़ाने की जद्दोजहद में थे। मालूम होता था सभी एक-दूसरे को धकियाते हुए निकलना चाह रहे हैं। कहीं भी तिल रखने भर की जगह नहीं बची थी। अटैची से निकालकर पहनी हुई नई सिंथेटिक साड़ी में महिलाओं का उत्साह चरम पर था। उनके माथे पर लगे तेल, सिंदूर की चिरपरिचित गंध नथुने से टकराते हुए जेहन तक पहुंच रही थी।

यहां से सीधे लौटकर वे मेले में सजी परचून की दुकानों पर जमघट लगाए हुई थीं। टिकुली के पत्ते, सिंदूर का गद्दी, आलता, रंग-बिरंगी चूड़ियां, कृत्रिम गहने, बच्चों के खिलौने। फेम एंड लभली, मिको, लकमा, दादर आंवला (फेयर एंड लवली, विको, लक्मे, डाबर आंवला नहीं) के क्रीम, तेल, पाउडर आदि से लेकर प्रसाद वाला लायचीदाना (मकुदाना) तक बिक रहे थे।

लड़की ने दादी को देखा। एक दुकानदार से लहठी की खरीदारी को लेकर मोलजोल कर रही थीं। "का बबुआ सुनत बाड़$। सौ रुपया लगा द ना भाव।"

उसने व्यस्तता दिखाते हुए कहा, "अम्मा जी, एक दाम दु सौ लगा देले बानी। अब पइसा नइखे त फ्री में ले जाई। मने ए से कम भाव में परता ना पड़ी। ना त अगिला दोकान देख लिहीं।"

लड़की ने भांप लिया कि दादी अब एक घण्टा से पहले फुर्सत पाने वाली नहीं हैं। "दादी जी, रउआ एहिजा रहेम। तनि हम दोकानवा से टेड्डी लेके आवत बानी।" इतना कह जवाब की प्रतीक्षा किए बिना उसने सहेली का हाथ पकड़ा, और वहां से मंदिर के गेट की ओर से पुरानी धर्मशाला की ओर निकल गई।

"तु जा और वो धरमशाला का कमरा है न। वहीं बैठकर बतिया ले अपने राजा बाबू से। तब तक मैं इधर रहकर चौकीदारी करती हूं।" उसकी सलाह पर लड़की शर्माते हुए उधर चली दी। साथ में लड़का भी हो लिया।

आप पढ़ रहे हैं प्रेम कहानी - "अधूरी चाहत"

जजर्र धर्मशाला के कमरे में पहुंचकर उसने चेहरे पर हाथ रखना चाहा। लेकिन लड़की ने मुंह फेर लिया। "जाईए आपसे बात नहीं करेंगे।"

लड़के ने पूछने के लिहाज़ से कहा, "अब क्या हो गया जो नखरे दिखा रही हो? थोड़ी देर पहले तो मिलने के लिए बेचैन थी। लगातार मिस कॉल मारे जा रही थी।"

"वादा किए थे छाया दीदी की शादी में मिलेंगे। फिर आए क्यों नहीं उस रात?"

"ओहो, तो ये बात है। शायद तुम्हें याद नहीं। कहा था मैंने कि बीएससी पार्ट वन का प्रैक्टिकल चल रहा है। कोशिश करेंगे आने के लिए। लेकिन मोतिहारी से नहीं आ सका। सॉरी!"

"नहीं आए, ठीक है कोई नहीं। उस दिन तो बता तो देना चाहिए था।"

"तुम्हारा मोबाइल छीना गया है। फिर बताता कैसे? और आज किसके मोबाइल से बतिया रही थी? पहले कभी बताया नहीं?"

"सखी के फोन से लगाया था। दो महीने बाद उनकी भी शादी है। नहीं चाहती कि मोबाइल नबंर का परचार हो।"

"अच्छा, छोड़ो ये सब। देखो तो तुम्हारा लिए क्या लाया हूं?", लड़के ने एक लाल रंग का बड़ा सा रोंयादार टेडी बियर उसे थमाया।

"वाओ, कितना प्यारा लग रहा है! मेरा फेवरिट कलर है।" अब लड़की शिक़वा शिकायत भूल चुकी थी। उसकी चेहरे की मुस्कान और चमक दोनों ही बढ़ चली थीं।

"प्यारा है, लेकिन तुमसे ज्यादा नहीं!" कहते हुए लड़के ने उसे सीने से लगाया। उसके बालों से आ रही क्लिनिक प्लस शैंपू की भीनी भीनी खुशबू अपनी सी लगी। उसने लड़की के पलकों और माथा को एक-एक कर चुमा।

इस बार लड़की के तन-मन में अजीब सी गुदगुदी हुई। अपनी भावनाओं को छुपाती हुई बोली, "झूठ नहीं बोलिए। सब कहते हैं करिया कलूटे हैं हम।"

"ख़बरदार जो और कुछ अपने बारे में कहा तुमने। काले होंगे तुम्हारे दुश्मन।"

"इतना प्यार करते हैं हमसे।" लड़की का जवाब सुनकर उसने आंखों में आंखें डालकर कहा, "बहुत ज्यादा। मन करता है बस तुम्हें देखता ही रहूं। घण्टे, दिन, महीने, साल..!"

"बस बस, अब रहने भी दीजिए। कुछ ज़्यादा नहीं लग रहा, फिल्मों की तरह?"

यह सुन लड़के ने कहा, "विश्वास नहीं तो परमिशन दो। अभी तुमको भगा ले जाउंगा। सबकी नजरों से दूर।"

"अच्छा, कहीं लभेरिया तो नहीं हो गया आपको?" लड़की ने चुस्की ली।

कहानी आगे भी जारी है, थोड़ा इंतजार करिए...



©️®️श्रीकांत सौरभ (नोट - इस कहानी के पात्र पूरी तरह से काल्पनिक हैं। इसमें प्रयुक्त किसी जगह या प्रसंग की समानता संयोग मात्र कही जाएगी। इसके लिखने का एक मात्र उधेश्य मनोरंजन है।)

2 comments:

yashoda Agrawal said...

आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज शनिवार 22 फरवरी 2020 को साझा की गई है...... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

Kamini Sinha said...

बहुत ही सुंदर ,मोतिहारी की क्षेत्रीय भाषा में लिखी ये कहानी 1990 की दुनिया में ले जा रही हैं ,आगे पढ़ने की उत्सुकता बनी हैं ,सादर नमस्कार