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11 February, 2020

विद्या कसम है तुमको, ये 'लभ लेटर' जरूर पढ़ना

प्यारी सैंकी ,

आज नौ फरवरी है। हिंदी के लास्ट परीक्षा के साथ हमारा आईएससी का एक्जाम बीत गया। अंगरेजी आ केमेस्ट्री तनि कमजोर गया है। मने चिंता की बात नहीं है। प्रैक्टिकल का नंबर बढ़ाने के लिए कॉलेज से मैनेज कर लिए हैं। मम्मी भी गांव के तीन पेड़ियां वाले जीन बाबा की भखौती भाखी है। हमारे लिए आछा नम्बर से पास करना, जीवन-मरण का सवाल है। पापा जी बोल दिए हैं कि रिजल्ट में फस्ट डिवीजन से कम लाया। तो मामा जी के संगे लुधियाना कम्बल फैक्ट्री में भेज देंगे, काम सीखे।

फिलहाल तुमको बहुत मिस कर रहा हूं। चिट्ठी भेजने का नहीं, तुमसे बतियाने का मूड था। लेकिन बतियाए कैसे? जबसे तुम्हारा मोबाइल छिनाया है, बात भी तो नहीं हुई। मने दोसर उपाय का है। वैसे दिल का हाल लिखकर बताने में जो मजा है। उतना फोन पर बतियाने में नहीं। कल कइसहु तुम्हारे पास हेमवा से चिट्ठी भेज देंगे। तनी जादा लिखा गया है। रिक्वेस्ट है, पूरा पढ़ना। एक सांस में नहीं त थोड़ा-थोड़ा करके।

याद करो। ठीक तीन बरिस पहिले पकड़ी बाजार पर गोलू सर के कोचिंग में हमलोग मिले थे। मैटिक परीक्षा के तैयारी के लिए नया-नया एडमिशन हुआ था। सर हाई स्कूल में साइंस के नामी टीचर थे। लेकिन 'नाम' का प्रयोग स्कूल की पढ़ाई से जादा अपना 'दोकान' चमकाने में करते थे। गजबे भीड़ जुटती थी। दू कोस के एरिया में जेतना भी मैटिक का छात्र था। सब इहे कहता था कि उनके पास एक बार जेकर नाम लिखा गया। ओकर पास होना तय है।

कोचिंग हॉल में 25 गो बरेंच रखा था। एक बैच में 100 विद्यार्थी पढ़ते। अगिला पांच बरेंच लड़की सब के लिए रिजर्व। सर के बारे में चरचा थी। मैथ, केमेस्ट्री, फिजिक्स तीनों विषय पर बराबर पकड़ रखते हैं। बोर्ड पर लिखते तो सभी कोई अपनी कॉपी पर एकदम रचकर लिख लेते। समझ में आए या नहीं। वो खुदे कहते थे कि साइंस समझे वाला चीज है, रटे वाला नहीं। क्लास के बाद नोट्स के फोटो कॉपी लेवे खातिर अइसन हल्ला मचता। जइसे तकिया के नीचे रखकर कोई सुत जाएगा। तो भी फस्ट डिवीजन मिल जाएगा एक्जाम में।

हम तो एक बरिस में 30-40 क्लास अटेंड किए होंगे। एतना दिन में किताब का कवनो चैप्टर माथा में पूरी घुसा कि नहीं। याद नहीं। मने लड़की सबको अगिला बरेंच पर बैठाने का राज, हमको जरूर बुझा गया। बोर्ड का एक्जाम हुआ। मैथ में कम आए तीन नम्बर से हम फस्ट डिवीजन लाते-लाते रह गया। तब केतना हंगामा मचा था घर में। पापा जी तो पूरा फायर हुए थे सुनकर। एतना कि आपन बाटा के पुरनका संडक चप्पल हमरा देहे पर तोड़ दिए। पढ़ाई छोड़ावे के मूड में थे। लेकिन मम्मी के निहोरा कइला के बाद मान गए। ओकरा बाद हम आईएससी करने शहर चले गए।



शहर के कोचिंग में भी उहे हाल है। हर साल गांव से हजारों बच्चा पहुंचते हैं। यहां पढ़ाई के नाम पर भरपूर लुटाई है। अलग-अलग नाम से सैकड़ों 'गोलू सर' करोड़पति हो गए हैं। 95 परसेंट पढ़निहार भले चपरासिया ना बने। मने सरकारी कम्पीटिशन निकाले के पूरा गारंटी लेते हैं। लमहर दुरभाग है बिहार का। सरकारी स्कूल में पढ़ाई तो कहिया से रामभरोसे है। मातृभाषा भोजपुरी के बदले बचपन से हमनी के हिन्दी में साइंस का कोरामिन दिया जाता रहा है। नतीजा का हुआ, भोजपुरी बिगड़ी। हिंदी भी गड़बड़ा गई। और अंगरेजी तो जिनगी भर सीखना ही है। अब तो भगवाने मालिक हैं हिंदी मेडियम वालों का।

अरे हम भी केतना बुरबक है? का अटपट लिखे जा रहे हैं। मेन बात पर आते हैं। तुमको पता है पिछले साल दो बार घर आया था। होली के दिन ललुआ के संगे अपाची से तुम्हारे गांव गए थे। तुम बरामदा में खड़ी दिखी थी। मने हमको चिन्ह नहीं पाई। रमपुरवा वाला 'छुछेर' सब एतना ना हरिहरका रंग पोत दिया। हमको एकदमे बानर बना दिया था।

दूसरी बार, तुम्हारे छठ घाट पर गए थे। सिरसोपता के आगे चउका-मउका बैठे हुए गुलाबी सलवार शूट में केतना सुनर लग रही थी। मन हुआ कि सेल्फी खींच ले नुका कर। मने मुस्टंडे लड़के मुझ अजनबी को कटाह नजर से घूर रहे थे। एहि से उहां से चलते बने। मने इस बार वादा है। बहुत जल्दी तुमसे मिलकर रहेंगे, चाहे कुछो हो जाए। दिन और समय तय कर तुम लौटती चिट्ठी में बता देना। अब बहुत हो गया रखते हैं।

चलते चलते बस एतने कहेंगे, आई लभ यू मेरी करेजा!

तुम्हारे जवाब के इंतिजार में,

तुम्हारा अपना,

सोनू

©️®️श्रीकांत सौरभ (नोट - इस लघु व्यंग्य कहानी के पात्र, जगह पूरी तरह से काल्पनिक हैं। इसे सिर्फ मनोरंजन, मनोरंजन और मनोरंजन के लिए लिखा गया है।)

5 comments:

Alaknanda Singh said...

कोचिंग हॉल में 25 गो बरेंच पर की लवस्टोर , वाह सौरभ जी

श्रीकांत सौरभ said...

धन्यवाद!

श्रीकांत सौरभ said...

धन्यवाद!

Kamini Sinha said...

लव लेटर के बहाने बिहार की शिक्षा व्यवस्था का अच्छा आईना दिखाया आपने, लाज़बाब ,सादर नमन

श्रीकांत सौरभ said...

सादर प्रणाम!