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02 January, 2022

पुरानी जींस और गिटार...

चुरा लिया है तुमने जो दिल को..! दम मारो दम मिट जाए गम फिर बोलो सुबह शाम...! नीले नीले अंबर पर चांद जब आए, ऐ मेरे हमसफ़र एक ज़रा इंतज़ार..! ओ ओ जाने जाना ढूंढे तेरा दीवाना...! आंख है भरी भरी और तुम मुस्कुराने..! सन 1980 से लेकर वर्ष 00 तक के इन गानों में एक बात ख़ास है। सभी में म्यूजिक डायरेक्टर ने गिटार का भरपूर प्रयोग किया है। 

गिटार की धुन की मधुर लगती है। भले ही इसमें ठहराव नहीं होता। फिर भी इसकी आवाज़ सीधे किसी के भी रूह को छू जाती है। हर आदमी के जीवन में एक पड़ाव जरूर आता है। जब वह किसी न किसी वाद्य यंत्र की ओर आकर्षित जरूर होता है। पूरी दुनिया के युवाओं में गिटार का जितना क्रेज़ है, उसकी दूसरी कोई सानी नहीं। 

गिटार सीखने के लिए महीनों कम पड़ जाएंगे। इसे सीखने के शुरुआती दिन भी कम कष्ट से भरे नहीं होते। रियाज़ के दरम्यान स्ट्रिंग्स (तारों) को दबाने से, बाएं हाथ की चार अंगलियों (अंगूठा को छोड़कर) का उपरी भाग घिस जाता है। किसी-किसी की अंगलियों से तो फटकर खून भी निकल जाता है। उनमें गड्ढे पड़ने से काले व बदसूरत दिखने लिखते हैं।

आप किसी एक वाद्य यंत्र में पारंगत हों तो अन्य इंस्ट्रुमेंट बजाना भी आसान हो जाता है। बता दें कि गिटार का अविष्कार 17वीं सदी में स्पेन में हुआ था। जबकि 18वीं सदी में ब्रिटेन के युवाओं पर यह छा गया था। गिटार दो तरह के होते हैं, हवाईयन और स्पेनिश। 'हवाईयन' में ठहराव होता है। इससे क्लासिकल सांग्स बजाए जा सकते हैं। लेकिन परेशानी ये है कि इसे पोर्टेबल रखकर बजाना पड़ता है। 

वहीं 'स्पेनिश' की धुन में ठहराव नहीं होने के बावजूद मोबिलिटी है। बिना किसी सहारे के कोई भी, कहीं भी खड़े होकर कॉर्ड बजाते हुए गा सकता है। यह लकड़ी से बना होता है जिसमें मोटे-पतले नायलॉन के छह स्ट्रिंग (तार) लगे होते हैं। इन्हें ट्यून करने के लिए छह घुंडियां भी लगी होती हैं। इसकी कीमत चार हजार से लेकर 50 हजार रुपए तक होती है। 

शुरु में सीखने के लिए चार हजार रुपए वाला एकॉस्टिक गिटार ही मुफ़ीद रहता है। इस पर अच्छे से कॉर्ड बजाया जा सकता है। सीखने के बाद ग्रुप परफॉर्मेंस या म्यूजिक कंपोज के दौरान लीड, बेस और रिदम बजाने के लिए इलेक्ट्रॉनिक गिटार लिया जा सकेता है। जहां तक सीखने का सवाल है, यदि कोई पहले से किसी एक वाद्य यंत्र को बजाना नहीं जानता। उसे बुनियादी चीजें समझने में थोड़ा समय लगता है। 

ड्राइंग रूम की शोभा बढ़ानी या हाथों में लेकर फ़ोटो खिंचानी हो तो अलग बात है। लेकिन सही मायने यदि गिटार सीखने की ललक है। तो एक पुरानी कहावत है, "जल पियो छानकर, गुरू करो जानकर!" गुरु उसे ही बनाइए, जिसका ध्यान आपकी पॉकेट से ज़्यादा सिखाने पर हो। देश की किसी भी छोटे-बड़े शहर में ऐसे गुरुओं की संख्या भले ही कम है। लेकिन ढूंढने से तो भगवान भी..!

©️®️श्रीकांत सौरभ 





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