************************* (1.)
'हेल्लो, कवन बोल रहे हैं उधर से? मिस कॉल आया है आपका मेरे नम्बर पर।' मोबाइल पर अंजान नंबर से आए मिस काल को देख फोन लगा प्रीतम ने पूछा।
'जी, सॉरी। गलती से लग गया था आप पर। ऊ त हम अपना मौसी के यहां परसा फोन लगाए थे।'
'त एमे सॉरी के कवन बात है। कबो-कबो गलती से आछा काम हो जाता है।' फोन पर उधर से लड़की की मीठी
आवाज को सुन प्रीतम ने लपेटना शुरू कर दिया।
'आछा काम मने?' लड़की ने चिहुकते हुए पूछा।
'मने का? आपसे हमारा बात करना आछा ही न है।'
'ई हमको नहीं पता, का आछा है और का बुरा? मने एकरा बाद ई नंबर पर फोन मत कीजिएगा। पापा जी का मोबाइल है। जान जाएंगे त पिटाने लगूंगी।'
'आछा, नहीं करेंगे। अपना नाम तो बता दो?'
'नाम काहे बता दे आपको? हम त आपको जानते भी नहीं।'
'एमे जानना क्या है। पिरितम नाम है हमारा। घर बहादुरपुर। बहलोलपुर हाई स्कूल से इंटर कर रहा हूं, सकेंड ईयर में।'
'अरे वाह, हम भी त ओही स्कूल से दसवां कर रहे हैं। अगिला साल मैटिक का एक्जाम है।'
'एतना बता दी त नामो बता दो ना?'
'हमर नाम पिरीति है। घर सोनगंज, बस एह से जादा नहीं बताएंगे। अब चलिए फोन रखिए। नहीं त पापा जी सुन लिए त जुलुम कर देंगे।'
'अरे वाह! आप पिरीति हम पिरितम। हमारा-आपका गांव भी अगले-बगल में है। का सन्जोग है! वइसे हम फोन रख देते हैं। ई बताओ फेरु कब बतियाओगी?'
'अब ई नहीं बता सकती कि बात होगी कि नहीं। अभिये परिचय हुआ और आप तो एकदमे लाइने मारे लगे।'
************************* (2.)
'हां, हेल्लो। के बोलत बा, कहवां से बोला तानी?'
'हम रमेस बोलत बानी खजुरिया से। ई डुमरिया लागल बा नु?'
प्रीतम ने फोन पर एक उम्रदराज महिला की आवाज भांपते हुए पैतरा बदलकर बोला। आज सात दिन बाद उसने प्रीति को फोन लगाया था। लेकिन उसकी मां रामकली देवी ने फोन रिसीव किया और सवालों की झड़ी लगा दी।
'ना ई सोनगंज लागल बा। हम पिरीति के माई बोलत बानी।'
'आछा रखीं फोन। बुझाता रांग नम्बर लागल बा।' प्रीतम ने झूठ बोला।
'के ह मां, का कहत बा?
'कवनो मरदा रहल ह खजुरिया के। कहत रहे डुमरिया लगवले बानी।' रामकली देवी ने प्रीति के पूछने पर बताया।
'आछा, तनि फोनवा देबू हमके गेम खेले के बा।' प्रीति ने उनके हाथों से फोन लपकते हुए कहा।
'हाली से खेल के दे दिहे फोनवा। तोर पापा देख लिहे त मुआ दिहे। तोरा संगे हमरो के। हर दफे मना करे ले तोरा के फोन ना देवे के। कहत रहले एह घड़ी फोने पर लड़का-लड़की बिगड़ जाता लोग।' उन्होंने फोन देते हुए हिदायत दी।
'आछा त ई ओह दिनवा आला रांग नम्बर से आइल रहल ह।' प्रीति ने चुपके से छत पर जाकर मोबाइल में नम्बर को देख बुदबुदाया और मिस काल दे दी।
'आपको बोल थे न उस दिन। यहां फोन मत करिएगा। फिर काहे किए हैं। पापा जी जान गए त घर में रहल मुश्किल कर देंगे। आप बुझ काहे नहीं रहे।' उधर से कॉल आते ही वह शरु हो गई।
'आपका आवाज बहुत नीमन लगा। ओहि से फोन किए। सुनने का मन किया आज।'
'एकर का मतलब हुआ। दुनिया में जवन लड़की के आवाज आछा लगेगा ओकरा पिछ्ही पड़ जाइएगा।'
'अरे खिसिया काहे रही हो। आपन किरिया खाके कहते हैं। जिनगी के पहिला लड़की हैं आप। जिससे बतिया रहे हैं।'
'मने हमको आपसे नहीं बतियाना। चलिए फोन रखिए।'
'आपको बात नहीं करना है तो काट दीजिए। हम नहीं रखेंगे।'
'तनि सा बतिया का लिए आपसे। आप तो पिछ्ही पड़ गए हमारे।'
'ऐसा बात नहीं है पिरीति। ई सब बोलकर हमको लजवाओ मत। आज तुम्हारा इयाद आ रहा था तो फोन कर दिए। बाकि हमारे मन में तुम्हारे लिए ऐसा-वैसा कुछो नहीं है।'
'आप समझते काहे नहीं। राजपुत हैं हम लोग। उसमें भी पापा जी बड़ी खिसियाह हैं। जान गए उनकर बेटी कवनो लड़का से बतियाती है। तो कचरवाकर फेंकवा देंगे। घर में खानदानी बन्दूक रखल है। जब गांव में केहू से झगड़ा होता है। तो बात-बात पर निकाल लेते हैं। आ हमको खून-खराबा से बड़ी डर लगता है। मैं दुनू हाथ जोड़कर निहोरा करती हूं कि एकरा बाद फोन मत कीजिएगा।'
'अब एमे जात के बात कहां से आ गया। आप राजपुत हो तो हम भी कवनो ननकी जात नहीं है। जो डेरा जाएंगे। पंडी जी हैं हम भी। आचार्य उमा शंकर त्रिवेदी को जवार में कवन नहीं जानता उनकर बेटा हैं हम।'
'पिरीति... ए पिरीतिया, कहां बाड़े रे लड़की। गोड़ में एकरा चक्कर हो गइल बा। अगिला साल मैटिक के परीक्षा बा। मने किताब के ओरी ताकतो ना बिया। तनि पापा के पानी लेआ के दे त बेटी।'
'आवत बानी मां। छत पर आइल रहनी ह कपड़ा पसारे।'
'आछा। हम फोन रख रहे हैं। बुझा रहा है पापा जी घरे आ गए। मां बोला रही है।' फोन के Recieve व Miss Call से नम्बर को डिलीट करते हुए हुए प्रीति छत से नीचे की तरफ भागी।
************************* (3.)
प्रीति के पिता रणविजय सिंह घर के ओसारे में बैठे हुए थे। तभी उनका मोबाइल बज उठा। बार-बार फोन उठाते और बिना उधर से जवाब दिए कट जाता था।
'हेल्लो, हेल्लो...!'
'का जाने कवन फोन करता? ओने से आवाजे नइखे आवत।' चौथी बार भी दूसरी ओर से कोई आवाज नहीं पर उन्होंने झल्लाते हुए कहा।
बगल के कमरे में प्रीति गोल्डेन प्रकाशन का मैट्रिक परीक्षा की तैयारी वाला गेस पेपर विषयवार अलग-अलग कर स्टेपलर से पिन मार रही थी। पापा की कड़क बोली सुन अंजाने डर से उसका दिल धड़कने लगा, 'तीन दिन पहले जो फोन आया था, कहीं वहीं लड़का तो नहीं..?'
'हई देख त पिरीतिया केकर नमरवा से फोन आवता।'
'बाप रे, ई त उहे नमरवा ह। आजु मुआ दिहे पापा हमरा के।' उसने मोबाइल का नम्बर देख मन ही मन बुदबुदाया।
तभी उन्होंने प्रीति से कहा, 'आछा, तनि फोनवा चार्ज में लगा दे। केहू के फोन आवे त बोल दिहे कि घरे नइखी अबही। हम तनि सुखड़िया किहा से आवत बानी एगो पंचायत कके।'
उनके जाते ही वह छत पर गई और उस नम्बर पर मिस कॉल मार दिया। थोड़ी ही देर में फोन आ गया।
'आप काहे हाथ-गोड़ धोके हमरा पीछे पड़ गए हैं। पता है आजु पापा जी के हाथ में मोबाइल था। ई कहिए कि ऊ नहीं बुझ पाए।'
'आछा तो हम कवनो बुरबक है का! हम त आवाजे सुन के समझ गए कि केकरा लगे मोबाइल है। एहि से त खाली हेल्लो-हेल्लो कहके फोनवा काट दिए थे।'
'आप बुझते नहीं हमारे घर वाले केतना खतरनाक हैं। एक बार हमारी फुआ के साथ का हुआ था, आपको पते नहीं है। उन पर हाई स्कुल में पढ़ाई के समय एगो लड़का अइसही दीवाना था। एक दिन ऊ फुआ को चिठी दे दिया। ई बात के जानकारी जब बाबा को हुआ। तो ऊ आ पापा मिलके ओह लईका के हाथे तुड़वा दिए थे।'
'तुम अपने खानदान का नाम लेकर हमको डराती काहे हो? अब तुमको बतियाने का मन नहीं करता त ऊ दोसर बात है। एक बार खाली अपना करेजा पर हाथ रखके कह दो, तुमको हमारा आवाज आछा नहीं लगता। हम किरिया खाकर कहते हैं फोन नहीं करेंगे।'
'देखिए ऐसा बात नहीं है। आप हमारा मजबूरी समझिए। आ हमेशा किरिया खाने वाला बात काहे कहते हैं। ई बताइए फोन काहेला किए थे?'
'तुमसे एगो मन का बात कहना था। लेकिन अभी नहीं कहेंगे। मूड ऑफ़ हो गया।'
'ठीक है मत कहिए। नीचे जा रही हूं मां बुला रही है।'
'ई तो बता दो अब कब बात होगा?'
'कबो नहीं।'
'देखो, एतना किसी को तड़पाना आछा नहीं है। शाम को मिस कॉल देना एगो जरूरी बात कहना है।'
'कवन बात?'
'अभी नहीं शामे को बताएंगे।'
'आछा, समय मिलेगा तो देखेंगे।'
'देखेंगे नहीं, परोमिस करो। हम तुम्हारे मिस कॉल का इन्तजार करेंगे।'
'आछा परोमिस! करेंगे। अब फोन रखिए।'
************************* (4.)
जब मन में कोई चोर छुपा हो तो आदमी हर चीज को संदेह से देखता है। यहीं स्थिति प्रीति की भी हो गई थी। शाम में प्रीतम को Miss Call देने का वादा क्या किया था। उसे पल-पल मां या पापा की नजरें अपनी तरफ घूरती नजर आतीं। और उसकी नजर रह रहकर घड़ी की सुई पर टिक जाती। घर में इस वक्त कुल जमे तीन प्राणी ही थे। जबकि प्रीति का इकलौता भाई विजय पटना में इंजीनियरिंग की तैयारी कर रहा था।
इस समय आठ बज गया था। रणविजय सिंह खाना खाकर बथान पर सोने चले गए। वहीं रामकली देवी पड़ोस में शिव चर्चा सुनने जा रहे थीं।
उन्होंने प्रीति को आवाज लगाते हुए कहा, 'मन त रहल हो तोहरो के ले चले के। मने घरो के देखल त चाहि। केवाड़ी के छिटकिलि ठीक से लगा दिहे बबी। हम एक-दू घण्टा में आएम।'
'ए मां तू चल जइबू त डर लागी हमरा। मत जा।' उसने बनावटी डर दिखाते हुए कहा।
'भगवान के काम में 'ना' बोलल असुभ ह। आ केहू किहां ना जाईल जाई त उहो अपना इहां ना आई।'
'ठीक बा। मोबाइल देले जा हमराके गेम खेलेला।'
'दे तानी। बाकिर जादे पेर-पार मत करिहे ओकरा के। एने-ओने फोन कईला प पईसा काट लेत बिया कम्पनी।'
'आछा ना करेम।' उसने आश्वस्त करते हुए मोबाइल ले लिया।
मां के घर से जाते ही उसने झट से किवाड़ी बंद कर दिया। नीचे Aircel का टावर अक्सर गायब रहता। बातचीत में रुकावट ना हो इसलिए छत की सीढ़ी पर जाकर उसने प्रीतम के पास Miss Call दे दिया। अबकी छत पर नहीं गई। उसे अच्छी तरह पता था कि रात में ऊपर से आवाज दूर-दूर तक जाती है। पांच मिनट तक उधर से फोन नहीं आया तो उसने खीजते हुए लगातार तीन बार Miss Call मार दिया।
दस, पन्द्रह, बीस मिनट...। और अब पूरे आधे घण्टे बीतने को थे। कोई जवाब नहीं आया। जाने क्यों, उसे प्रीतम के ऊपर थोड़ा गुस्सा आने लगा था। उसी अनुपात में खुद के ऊपर शर्मिंदगी भी महसूस हुई। यह सोचकर कि मैं होती कौन हूं एक अंजान लड़के के फोन का इन्तजार करने वाली। तभी उसके मोबाइल का Ring Tone बज उठा। उसने Screen पर नम्बर देख बिना देरी किए उठा लिया। अचानक से उसका टेंशन उड़न छू हो गया और चेहरे का रंग गुलाबी।
'हेल्लो... सॉरी तुमको देर से फोन किए। अबगे टयूशन पढ़के आ रहे हैं। पॉकेट में मोबाइल भाईब्रेशन में था। अभिए तुम्हारा मिस कॉल देखे हैं। हमको विस्वास था तुम जरुरे मिस करोगी'। प्रीतम ने बढ़ी हुई धडकन पर काबू पा एक सांस में कह डाला।
'सवेरे कवन बात कह रहे थे मुझसे कि शाम में बताएंगे? वह सवाल करते हुए बोली।
'आछा छोडो उस बात को। ऊ त अइसही मजाक में बोले थे।'
'मजाक में मने का? एकरा मतलब तुमको कुछो नहीं कहना था हमसे। फिर मिस कॉल करे ला काहे बोले।'
'सोचते हैं कि कहीं बता दूं तो तुमको बुरा न लग जाए।'
'नहीं बुरा मानेंगे। कहिए।'
'तो फिर परोमिस करो।'
'परोमिस।'
'तुम बहुते सुन्दर हो। दुनिया के सब लड़की से बढ़कर ब्यूटीफुल हो मेरे लिए।'
'भाक, ई कवन कह दिया कि हम सुनर हैं। और हमको देखे बिना आप कईसे मान लिए कि कईसन हैं?' उसने शर्माते हुए कहा।
'अपना मन के आंख से देखे हैं और का?'
'आछा। आप तो बड़का अंतरधानी बाबा हैं।' वह मंत्रमुग्ध हो चली थी।
'एकदमे अंतरधानी हैं हम। पूछो, तुम्हारे बारे में कुछो बता सकते हैं।'
'त ई बता दीजिए अभी हम का पहने हैं?'
'ए ए ए... सलवार सुट पहनी हो।' उसने आवाज को खींचते हुए अंदाजा लगाया।
'किस रंग का है?'
'गुलाबी समीज और पियर सलवार।'
'झूठ पकड़ा गया आपका। हम तो आसमानी कलर का नाईट सुट पहने हैं।' उसकी पकड़ी गई चोरी पर वह चहकते हुए बोली।
************************* (5.)
लड़कियों में Common Sense कूट-कूट कर भरा होता है। जिसके सहारे वह लड़कों का झूठ आसानी से पकड़ लेती हैं। प्रीतम अपनी पकड़ी गई चोरी पर झेंप सा गया। 'अब क्या होगा?', अंजाने भय से उसका आत्मविश्वास थोड़ा डगमगाने लगा।
तभी उधर से प्रीति का की खिलखिलाती आवाज सुन उसे काफी राहत मिली। 'हां..हां...हां, चलिए अब हमसे लबरई मत बोलिएगा। हमें झूठे लोग तनिको पसंद नहीं।'
'आछा, तुम्हें बुरा लगा हो तो माफ़ कर दो। मेरा इरादा तुम्हारा दिल दुखाना नहीं था। मने परोमिस करते हैं एकरा बाद झूठ नहीं बोलेंगे।'
'अब एमे माफ़ी मांगने का बात कहां से आ गया। दोस्ती में त ई सब चलते रहता है।'
प्रीति के मुंह से दोस्ती की बात सुन उसे भीतर तक गुदगुदी हुई। एक अंजान लड़की जिससे कभी मिला नहीं। महज एक Miss Call से इतने करीब आ जाएगी कि उसे दोस्त मानने लगे। एकबारगी उसे यकीन नहीं हो रहा था। शायद Teen Age का एहसास ही कुछ ऐसा होता है। किसी भी हिंदी Love Story फ़िल्म से ज्यादा रोमांटिक और काल्पनिक भी। हकीकत कम फ़साना ज्यादा।
'जब दोस्त मान ही ली त एगो बात पूछे?' प्रीतम ने भीतर की हलचल को चतुराई से दबा दिया और खुद को नियंत्रित करते हुए पूछा। थोड़ा-थोड़ा भावुक भी हो चला था।
'हां, पूछिए।'
'हम कईसन लगते हैं आपको?'
'फिर वहीं बात। ई त झूठे बोलना न हुआ। बिना आपसे मिले कइसे बता दें कि आप कईसन हैं।'
'अपना दिल से पूछो जवाब जरुरे मिल जाएगा। वइसे तुम्हें बता दें कि हम पूरा करिया-कलूटे हैं।'
'इसमें पूछना का है। जब आप दोस्त होइए गए तो जो भी हैं, जइसे भी हैं। मेरे लिए सबसे आछा इंसान हैं आप।'
'एतना जल्दी हम पर भरोसा हो गया तुमको?'
'देखिए, भरोसा का बात नहीं है। मां कहती है कि मरद का गुण देखा जाता है, सूरत नहीं।'
'जब तुमको एतना विश्वास हम पर होइए गया। तो हम भी वादा करते हैं। ई दोस्ती अंत-अंत तक निभाएंगे।'
'आछा, अब फोन रखिए कल बतियाएंगे। लाउड स्पीकर बन्द हो गया। बुझा रहा है शिव चरचा खत्म हो गया। मां आइए रही होगी।'
'ठीक है रखते हैं। ई बताओ कल कब बात होगी?'
'कल दस बजे हाई स्कूल जाना है। रस्ते में एगो सखी के मोबाइल से मिस कॉल करूंगी।'
'ओके Bye। गुड नाईट।'
'Same to You!'
(भाग 8)
'हमरे खाति दुनिया में तोहरा के भेजवले बाड़े, भगवान बड़ी फुर्सत से तोहरा के बनवले बाड़े..!' जैसे ही मोबाइल की घण्टी में यह रिंग टोन बजा प्रीतम का ध्यान टेबल पर रखे फोन की ओर गया।
उसने कम्बल से निकल कर राजनीति विज्ञान के गेस को एक तरफ रखा और फोन को रिसीव किया।
'हेल्लो, कौन?'
'जी, नमस्ते। हैपी न्यू ईयर! हम पिरीति बोल रहे हैं।' उधर से कानों में मिश्री घोलने वाली आवाज सुनते ही प्रीतम का मानो यकीन नहीं हुआ। लगा पूरे देह में सनसनी फैल गई।
'सेम टू यू! पिरीति हमको विश्वास था तुम जरूरे फोन करोगी। तुमसे बतिया के हमको केतना रिलैक्स बुझा रहा है। पास में रहती त आपन करेजा चीर के देखा देते। आछा, तुम फोन रखो। हमारा जियो का सिम फिरी वाला है एने से करते हैं।'
फोन काटके प्रीतम कॉल लगाने लगा। लेकिन इधर जियो और उधर यूनिनॉर का सिम। जैसे दोनों का जन्मजात बैर हो। एक, दो, तीन, चार, पांच... दस। बार-बार उधर से कंप्यूटर वाली बहन जी 'नॉट रिचेबल' बोले जा रही थी।
'सा... चू... ई अंबनियो सभकर हाथ में फिरी सिम पहुचाके बुरबक बना दिया है। मेन मोके पर फेल हो जाता है।' प्रीतम मन ही मन झल्लाया।
ठीक पचासवे बार में फोन लगा। तो उसे राहत महसूस हुई।
'ई बताओ आजु चार जनवरी को बतिया रही हो। हम हेमा को फस्टे जनवरी को तोहरा लगे ग्रीटिंग कार्ड पहुचावे आ बात करावे ला बोले थे।'
'हेमा के मां का तबियत खराब था। एही से ओह दिन नहीं आई। आजुए आई है मिले के बहाने। उसी का नम्बर से आपसे बतिया रहे हैं। आपका ग्रीटिंग्स पढ़े हैं। का बताए, पढ़ला के बाद मने-मने केतना बेचैन हैं। रो नहीं रहे बाकि सब करम हो गया है।'
'सुनो पिरीति हमार किरिया, रोने का बात करोगी त हमहु रो देंगे। हिम्मत से काम लो हम जल्दिए कवनो ना रास्ता निकाल लेंगे मिले खाति।'
'डारलिंग, अपने दिल से नु पराया दिल का हाल बुझा जाता है। कइसे बताए आपको हम पर का बीत रहा है? जहिया से पापा जी आपसे बतिआत में मोबाइल छीने हैं। हर दमे पहरा लागल रहता है। पापा जी त दिन में केतना बेर रूम में झांकते रहते हैं। उनका चकुदारी से तंग आ गई हूं। लग रहा है जइसे उनकर बेटी केहु के संगे उड़हर जा रही है। मानते हैं आप पंडी जी है आ हम बाबू साहेब। दुनू जने के मिलन में समाज एगो लमहर दीवार है। मने पेयारे नु किए हैं आपसे, कवनो बड़का पाप थोड़े किए हैं।'
'पिरीति, दुनिया में पेयार से बड़ा कुछो नहीं है। सबसे पवित्र रिस्ता है ई, मने जालिम जमाना नहीं बुझता है इसको। आछा, ई बताओ अभी तोहर मम्मी-पापा कहां हैं?
'पापा जी पंपिंग सेट लेके गहु पटवाने गए हैं। अउरी मां दुअरा पर मकर सक्रान्ति के चिउरा के लिए धान सुखा रही है। हम त छत पर सीढ़ी आला रूम से नुका के बतिया रहे हैं।'
'ओ...हो, आ मां तोहरा साथे कइसन बिहैव करती हैं?'
'उहो कम नहीं है पापा जी से। अब तो हर दफे बानी मारते रहती है। मैटिक कर लो फिर तुम्हारा बिआह कर देंगे। एक दिन राति के बथानी पर पापा जी से बतिया भी रही थी। हम खाना लेके गए थे नुका के सुन लिए। कह रही थी 'जमाना खराब हो गइल बा। कवनो उच-नीच हो जाए। एह से नीमन बा जल्दिए इनकरा के कवनो खात-पियत घर देखके हाथ पिअर क देहल जाई।'
'त ठीके नु कहती है मां एमे बुरा क्या है? लड़की जब सज्ञान हो जाए तो बिआह कर ही देना चाहिए।' प्रीतम ने चुस्की लेते कहा।
'मारेंगे न आपको। अब आप भी जरल पर नमक छिड़क रहे हैं।' प्रीति में मीठी झिड़की दी।
'त तुम्हारा विचार क्या करने का है?' प्रीतम का सवाल था।
'एमे करना क्या है। जब हो गया त हो गया। ओखरी में मुड़ी पड़िए गया तो मोट-पातर का डर केकरा है। पापा जी के जिद्द है कि हमर बिआह दोसर जघे करेंगे। त हमहु ओही राजपूत बाप के लड़की हैं। पेयार किए हैं आपसे तो बिआह भी आपसे ही करेंगे। चाहे कुछो हो जाए।'
'देखो प्रीति खिसियाते नहीं हैं मां-बाप पर। ऊ लोग कुछो करता है। हमारे भलाई के लिए ही करता है।'
'ऊ त ठीक है बाकिर जवान बेटी को हर घड़ी ताना देना मां-बाप को शोभा देता है क्या? एक दिन त हम खींस-पित्त में कह दिए मां से। हमको अबही बिआह-उआह नहीं करना। एमए ले पढ़ाई करेंगे। आ आप लोग जादे टेंशन दीजिएगा त कुछो कर लेंगे।'
'मेरी करेजा, मरने-जीने का बात काहे करती हो। दिल धुकधुकाने लगता है। जब तुम कुछो कर लोगी त हम जिन्दे रहेंगे का। जियेंगे त एक-दोसरा के लिए आ मरेंगे भी त साथे-साथे। हम भी वचन देते हैं।'
तभी टे-टे की आवाज के साथ मोबाइल डिसकनेक्ट हो गया। प्रीतम ने मोबाइल पर टाइम देखा। आधा घण्टा हुआ था बात करते। उसने फिर फोन लगाया।
'अरे हां देखो न फोन कट गया था। जियो से लगातार आधा घण्टा से जादे नहीं बतिया सकते। एक बात कहना भूल गए थे। 29 जनवरी के हमरा दोस्त विक्रम के फुफेरा भाई के बरिआत तोहरा गांवे आ रहा है। फरवरी में हमर इंटर के एक्जाम है। मन त नहीं था आने का। मने तोहरा के देखे ला नाता-खोता जोड़के बरिआत अइबे करेंगे।'
'अरे वाह, ई त बड़का खुश खबरी सुनाए हैं। ऊ बरिआत त हमरा पट्टीदारिए में आ रहा है। फुआ लगेगी हमारी। लेकिन देखे त हइये नहीं हैं, पहचानेंगे कइसे आपको?'
'ई कवन बड़का बात है। हेमा पहचानती है न उसे बोला लेना। हम करिया कोट आ ब्लू टाई में रहेंगे। नागिन डांस करे में हमको खूबे मजा आता है। छत पर से तुम देखना। आ द्वार पूजा में त देखा-देखी होइए जाएगा।'
तभी आंगन में रामकली देवी की आने की आवाज गूंज उठी। प्रीति को लगा इससे पहले कि बातें करते पकड़े जाए। उसने मोबाइल ऑफ़ करके हेमा को थमा दिया।
'आछा त अब फोन रखते है। मां ओसारा से अंगना में आ गई है। मोबाइल से बतियाते देख ली त जुलुम हो जाएगा।'
'अइसे नहीं, पहले एगो 'किस' दे दो तब रखेंगे।' प्रीतम ने रोमांटिक मूड में कहा।
'एमे पूछना का है? सब त आपके ही नामे कर दिए है। जवन चीज लेना है ले लीजिए।'
फिर पुच... पु...च की लंबी ध्वनि के साथ बाए-बाए की आवाज गूंजी और फोन कट गया।
(भाग 9)
'सोने के कचोरवा में पीसे ली हरदिया भउजी लाहे-लाहे, हो भउजी लाहे-लाहे..!' एने प्रीति की पट्टीदारी में उसकी फुआ को भउजाई व सखी सब उबटन लगा रही थी। ओने डीजे साउंड पर बज रहे इस गाने से बहादुरपुर गांव वैवाहिक रस्म में डूब चला था। आज 29 जनवरी था यानी फुआ का बरिआत आने वाला था। लेकिन जितनी खुशी उसके चेहरे पर छलक रही थी, लग रहा था दुनिया की सबसे खुशनसीब इंसान वहीं है।
और हो भी क्यों नहीं? आज ठीक एक वर्ष बाद पहली बार उसका 'वो' आने वाला था। अजीब सी हालत हो चली थी। कभी मन में गुदगुदी उठती और चहकने लगती। फिर अगले ही पल अंजाने भय से दिल धड़कने लगता। जवाब कई सारे पर सवाल सिर्फ एक। कहीं उसने मुझे देखकर छोड़ दिया तो..?
हर पल मन में आ रहे अजीब-अजीब ख्याल से वह चिहुंक उठती। दोपहर में ही बहलोलपुर से हेमा भी उसके घर आ गई। रात के पहनावे को लेकर चर्चा होने लगी। गोदरेज की अल्मारी खुली, उसमे रखे जीन्स-टॉप, लेगिज, लहंगा शूट, सलवार शूट..।
दर्जनों कपड़े निकालकर बिछावन पर रख दिए। पहनावे को लेकर खूबे माथा-पच्ची हुई। लेकिन फाइनली हेमा का आईडिया ही काम आया। द्वार पूजा के समय जींस टॉप और रात को माड़ो में लहंगा साड़ी जो दिल्ली वाली मौसी के लड़की पिछले साल गिफ्ट में दी थी।
'हेमा एगो बात पूछे?' प्रीति ने कहा।
'हां बोलो।'
'कहीं उनको हम पसन नहीं पड़े तो?'
'कइसन बुरबक निहर बतियाती है। तुम एतना गोरी है। ऊ तोहरा सामने भले हाईट में तनी जादे हैं। मने हैं सावरे नु। तू उनकरा से बीस नहीं पच्चीस है।'
पता नहीं क्यों प्रीति को हेमा का यह जवाब जंचा नहीं। उसने तपाक से कहा, 'सुनरता लड़की में देखा जाता है। लड़का में त गुने नु देखा जाता है। ऊ भले सावर हैं, करिया-कलूट हैं। आ हम सुनर-भभुका। मने एतना विश्वास है कि हम उनकर गोड़ के धोवनो में नहीं हैं।'
'एही से न कहती हूं कि तुम उनकर पेयार में पगला गई हो।'
'हां, होइए गई हूं पागल त बोलो का करोगी एमे?'
'बड़ी जल्दी तुम खिसिया जाती है। तुमको मिलवाने के लिए हम ओतना दूर से घरे से झूठ बोल के आए है, बिआह देखे के बहाने। आ पूछ रही हो हम का करेंगे एमे? त हम जा रहे हैं वापस।'
'तुम एतना सीरियस काहे हो जाती हो दिलजानी। मने हम ई थोड़े कह रहे हैं कि उनसे मिलवाने में हमको मदद नहीं कर रही हो। मामला एतना अगाड़ी बढ़ा है ऊ तोहरे चलते हुआ है। ई एहसान हम मानते हैं।' प्रीति ने उसके मूड को भांपकर खुशामदी की।
'आछा, रहे दे। अब जादे पॉलिश मत लगा। ना त हमहु अगरा जाएंगे।'
'कवनो उपाय लगाओ हेमा कि राति के पांचों मिनट ला उनसे भेंट हो जाए। कनिया आला रूमवा राति के जब ऊ माड़ो में जाएगी त खालिए नु रहेगा। ओही में..।'
'ऊ त ठीक है मने सउसे घर पहुना आ पहुनी से भरल रहेगा। मिलवाने में हमको रिस्क बुझा रहा है, कहीं पकड़ा गए त पूरा हाला मच जाएगा।'
'हेमा, जब तोहरा जइसन सखी हमरा लगे है त रिस्क के कवन बात है। 'ऊ' माड़ो में बिआह देखे अइबे करेंगे। जइसे ही कनिया माड़ो में जाएगी। सब केहु त गीत-गवनई आ लइका-लइकी के परिछे में लागल रहेगा। मोका देख के घर में उनकरा के बोला लेना आ गेट पर खड़िया के तुम पहरा देना। एगो काम करो अबहिए फोन करो उनका लगे आ सेटिंग कर लो।'
(भाग 10)
'जिमी जिमी जिमी आजा आजा आजा, आजा रे मेरे पुकारे तेरा प्यार, पुकारे मेरा दिल जिमी जिमी जिमी..!' इसी गाने की धुन पर ट्रॉली पर खड़ी थिरक कर बरातियों को लुभा रही थी हॉफ कटी ड्रेस में बंगाली डांसर। और चारो तरफ बैंड-बाजे की धूम गूंज रही थी। यानी बहादुरपुर में पहुंची बारात जनवासे से बेटिहा के दरवाजे की ओर निकल चुकी थी। पीछे-पीछे लड़को की टोली मस्त होकर उछल-कूद मचाए हुए थी। मानो धान की कुटाई चल रही हो।
वैसे भी कोई कितना ही खराब काहे नहीं नाचता हो। समूह में खुद को माइकल जैक्शन ही बुझता है। नए लड़कों से तो जादा उमंग दूल्हे के मामा, मउसा व फूफा में लउक रहा था। नगिनिया डांस करते हुए सब जमीन पर ऐसे लोटा रहे थे कि नवही लोग भी उनके सामने फिंका पड़ जाए। हालांकि एमे 'हजारा' खर्च कर लिए गए 'पऊआ' का भी असर साफ़-साफ़ बुझा रहा था।
जइसे ही लड़की वाले का घर नजदीक आया फिर तो बाजा वाले के पास फरमाइशी गीतों का दौर शुरू हो गया। इस वक्त 'लॉली पॉप लागेलु' बज रहा था। नचनियों की इसी भीड़ में प्रीतम भी हाथ उठाए झूमने में मग्न था। लेकिन उसकी चोर निगाहें छत की और बेसबरी से किसी की खोज रही थीं।
'ए पिरीति देखो ना ऊ करियका सूट में जो लड़का नाच रहा है न उहे पिरितम हैं।' छत पर खड़ी होकर बारात के धूम गजर को निहार रही लड़कियों की झुंड में हेमा ने प्रीति के कानों में फुसफुसाते हुए कहा।
तभी प्रीतम व प्रीति की नजर टकराई। और मानो वक्त कुछ पल के लिए ठहर सा गया। नीली जीन्स पर उजला टॉप और कथई रंग का हाफ जैकेट। कंधे तक लटकते अधकटे खुले बालों में प्रीति को देख पहली बार में ही प्रीतम ने भांप लिया। यहीं है उसके सपनों की रानी जिसकी एक झलक पालक पाने के लिए वह महीनों से बेताब था।
'चलअ स रे सभे नीचे, दवार पूजा के मंगल गीत गावे। बरिआत दुअरा प चहुप गइल बडुए।' तेजी से सभी लड़कियां व महिलाएं व लड़किया नीचे जाने के लिए सीढ़ी की ओर भागी। एकाएक प्रीति का ध्यान उधर से हटा। उसने तिरछी नजरों से चारों ओर देखा। कहीं उसकी चोरी पकड़ी तो नहीं गई। लेकिन हेमा के अलावा कोई वहां नहीं था। वे दोनों भी नीचे उतर गईं।
चौकी पर द्वार पूजा का विद्द हो रहा था। दूल्हा अपनी अंजुरी में अक्षत वगैरह लेकर बैठ गया। नाई ठाकुर आम का पल्लो सजाने में लगे थे। और पंडी जी तेजी से मंत्र पढ़े जा रहे थे। वीडियो कैमरा के साथ लगे हैलोजन लाइट की रौशनी से दिन जैसा उजाला हो गया था। प्रीति व हेमा ठीक दूल्हे के पीछे खड़ी थी। वहीं प्रीतम भी देखनिहारों की रेलमपेल भीड़ को चीरते हुए पंडी जी के पीछे खड़िया गया।
हेमा ने धीमे से अंगुली के इशारे से प्रीति की ओर प्रीतम का धेयान आकर्षित कराया। ठीक आमने-सामने दोनों की आंखें चार हुई। और नजरों के रास्ते दिल की बात होने लगी। इधर, बाजे का एनाउंसर गा रहा था, जिसका मुझे था इंतिजार, जिसके लिए दिल था बेकरार, वो घड़ी आ गई..!
तभी महिलाएं गाली गाने लगी, 'दूल्हा के माई बनारस के रंडी, मीठा लागल खीर खइली हो दूल्हा भइले करिया...।' इस पर हेमा ने प्रीतम की ओर देखते हुए धीरे से एक आंख मारी। प्रीतम झेंप सा गया। उसे लगा मानो गाली उसी के लिए हो रही है।
इधर, हजाम ठाकुर सगुन का चाउर अक्षत के लिए में सभी विवाहितों को बांटने लगे। हालांकि चलावे के मुताबिक कुंवारे लड़के अक्षत नहीं लेते। लेकिन प्रीतम को जाने क्या सुझा उसने भी दायां हाथ बढ़ाकर मुठ्ठी में अक्षत ले लिया। जैसे ही पंडी जी ने इशारा किया सभी कोई दूल्हे के ऊपर अक्षत फेंक कर आशीष देने लगे।
इसी बीच प्रीतम ने तेजी से मुठ्ठी को उठा प्रीति को निशाना बना कर उछाला। और वह सिर से पांव तक चावल के दाने से भर गई। वह मारे शरम के सहम गई। उसक गोरे गाल सुर्ख गुलाबी हो उठे। लेकिन शुक्र था खुदा का कि उतनी भीड़ में से किसी ने भी इस अप्रत्याशित वाकये पर धेयान नहीं दिया। बस इस रोमांटिक क्षण के तीन जने ही गवाह थे।
(भाग 11)
दवार पूजा का नेग पूरा हुआ। और दूल्हा अपनी दहेजुआ स्विफ्ट डिजायर कार से जनवासे में लौट गया।
'पिरीति, जब ले जनवासे से दूल्हा माड़ो में आएगा, तब ले चलो ना ड्रेस चेंज कके आ जाते हैं।' हेमा के कहने पर दोनों सखियां तेज कदमों से घर की ओर चल दीं।
हेमा व प्रीति घरे पहुंचते ही बाथरूम में घुस गई। मुंह पर पानी डाला और लक्मे फेसवाश से चेहरे की सफाई की दोनों ने। फिर ऐनक के पास बैठकर एक दूसरे की मदद से चेहरे पर फाउंडेशन, आंखों में काजल, ओठों पर हल्के ग्रे शेड की लिपस्टिक, पलकों पर गुलाबी मस्कारा लगाया और भौह को आई लाइनर से चमकाया।
हेमा ने तो फटाफट सलवार-शूट बदलकर घर से लाई अपनी पसंदीदा मां की आसमानी रंग की सिल्क साड़ी पहन ली। लेकिन प्रीति को लहंगा साड़ी पहनने ही नहीं आ रहा था। अजीब तरह से वह साड़ी को कमर में कभी इधर से उधर तो दाएं-बाएं लपेट रही थी।
यह देखकर हेमा खिलखिलाकर हंस दी। 'अरे तुमको तो साड़ियों पहिने नहीं आ रहा। ऊ भी हमको ही सिखाना पड़ेगा। कइसे तुम ऊ लड़का के हैंडिल करेगी। ओमे त हमको बोलएबी नहीं करेगी।' उसने चुस्की ली तो प्रीति शरमा गई।
'ई देखो अइसे पहना जाता है लहंगा साड़ी, बुरबक।' हेमा ने उसे सही तरीके से पहनाया।
प्रीति ने एक बार फिर से हाथों में विको क्रीम पोतकर गालों पर मसाज किया। नाक में नथिया व कानों में झुमका पहना। और वह शीशे के पास जाकर खुद को निहारने लगी। लाल ड्रेस में क्या गजब कहर ढाह रही थी वह। बिल्कुल कनिया जैसी बुझा रही थी।
'हाय हमर पिरीति रानी, केतना सुनर लग रही हो! एक दमे परी बुझा रही हो। आजु त जुलुम कर दोगी मड़वा में। केतना लड़िका सब तोहके देखके पगला जाएगा। कास हम लड़का रहते तो तोहरे के भगा ले जाते।'
'भाक, अइसन बात नहीं है। हमारे दिल में त एके गो लइका का तस्वीर कैदे हैं। फेरु दोसरा लड़िकन पर जुलुम हो चाहे रहम, हमको का है? केहू के देखके से ओकरा के रोक नहीं नु सकते। बाकिर हमारा मन बुझ रहा है न कि हमारे देह पर केकर अधिकार है।' प्रीति का जवाब था।
'आय-हाय, पेयार के रंग में रंगा के तुम त एकदम फिलौसपरे हो गई है।'
एने जैसेे ही दूल्हे की गाड़ी दुआरे पर दोबारा पहुंची। उसको माड़ो में ले जाने के लिए लड़कियां सब मोमबतियां जलाकर, अकछत, चन्दन से भरी आरती की थाली लेकर आईं।
Engineering व MBA ग्रेजुएट, NCR के एक MNC में सेट दूल्हा हल्के पीले रंग की शेरवानी खूबे स्मार्ट लग रहा था। हालांकि बचपन से ही Convent में हुई स्कूलिंग के कारण वह गांव में बिल्कुल नहीं रहा था। अब तक उसने शहर में तो कई शादियों में भाग लिया था।
लेकिन गांव के रीति-रिवाज का अनुभव पहली बार हो रहा था उसे। थोड़ा नकचढ़ा व रिजर्व टाइप का होने के कारण असहज महसूस कर रहा था उस वक्त।
दुल्हन की मौसेरी बहन हाथों में थाली लिए आगे-आगे लड़कियों की झुण्ड की अगुआई कर रही थी। हेमा व प्रीति भी संग हो लिए।
'चलनी के चालल दूल्हा, सूपा के फटकारल हे। आ गइले बकलोल दूल्हा कहवां के बाकल हे..!' कार का फाटक खुला और दूल्हे की आरती उतारते हुए यहीं गीत गाई जाने लगी।
तभी मोमबती का गर्म मोम पिघलकर दूल्हे के पैंट पर चू गया। उसने कराहते हुए 'ओ शिट' भर कहा।
लेकिन गाने व चुहलबाजी में मगन लड़कियों ने इस पर धेयान नहीं दिया। कोई पेयार से उसके गाल को खींच रही थी तो कोई शायरी सुनाने की फरमाइश कर रही थी।
इन सबके बीच खुद को बेचारा महसूस कर रहा वह मन ही मन में सोचने लगा किस आफत में फंस गया हूं यहां? बिल्कुल गंवार की तरह मुझसे बिहैव कर रहे हैं सभी।
अचानक हेमा ने दूल्हे के गले में दोनों हाथों से अपना दुपट्टा फंसाया और धीरे से गाड़ी से बाहर उसे खींचने लगी। लेकिन अब बात बरदास्त से बाहर हो चली थी। सो गुस्से में उसे बोलना ही पड़ा।
'What the hell? I don't like such types of rude manner!'
'आय-हाय जीजा जी तो अभिए से अंगरेजी झाड़ने लगे। आगे क्या गुजरेगी दीदी पर?'
'त रउए सभन के बाबू जी नु पांव पूजाई के लिए अइसन लईका खोजे हैं। ओह बेरा नहीं बुझाया।'
यह दूल्हे के ममेरे भाई विक्रम का स्वर था। फुफेरे भाई को अकेले पड़ता देख वह साथ देने आ गया। पास में ही प्रीतम भी खड़ा था। अब जाकर वर पक्ष का पलड़ा संतुलन में आया था।
'एतना गुमान है अपना पर त तनी शायरी बोले में फरिया लीजिए ना, आटा-चाउर का भाव बुझा जाएगा। जब ले हमनी सब के हाराइएगा नहीं आप लोग। जीजा जी मड़वा में नहीं जाएंगे।' दुल्हन के सहेली आरती ने ताव दी।
'हां त एमे कम केकरा के बुझते हैं आप लोग। चलिए आपही लोग शुरू कीजिए।' विक्रम भी पूरे मूड में आ गया था।
भाग (12)
दुआर पूजा के बाद दूल्हा के माड़ो में जाने का रस्म ही ऐसा होता हैं। वहां पर मौजूद तमाम लड़कें या लड़कियां रोमांटिक होकर शायराना मूड के हो जाते हैं। हेमा का प्रस्ताव कि पहले लड़केे पक्ष वाले शायरी शुरू करें, विक्रम को पसंद आया। और वह दिलफेंक अंदाज में शुरू हो गया।
"इश्क ने हमें बेनाम कर दिया,
हर खुशी से अंजान कर दिया,
हमने तो कभी नहीं चाहा कि
हमें भी मोहब्बत हो जाए,
लेकिन आप की एक नजर ने
हमें नीलाम कर दिया !!"
इस पर दुल्हन की चचेरी बहन काजल ने हेमा की ओर देखा। और जवाब में सुना दी...
"मुहब्बत में ना जाने कितने अफसाने बन जाते हैं,
शमां जिसको भी जलाती है वो परवाने बन जाते हैं,
कुछ हासिल करना ही इश्क कि मंजिल नही होती,
किसी को खोकर भी कुछ लोग दिवाने बन जाते है !!"
विक्रम ने पूरी अदा के साथ फिर से एक शेर दागा, मानो वह बख्शने के मिजाज में नहीं था।
"खूबसूरत क्या कह दिया उनको,
हमें छोड़ कर वो शीशे की हो गई,
तराशा नहीं था तो पत्थर जैसी थी,
जो तराश दिया तो खुदा हो गई !!"
इस चौके पर छक्का मारते हुए हेमा ने सुनाया,
नदी से किनारे छूट जाते हैं,
आसमान से तारे टूट जाते हैं,
जिन्दगी में अक्सर ऐसा होता है,
जिसे हम दिलसे चाहते हैं,
वही हमसे रूठ जाते हैं !!
अब बारी विक्रम की थी। थोड़ा यादाश्त पर जोर लगाया और...
"रब से आपकी खुशी मांगते हैं,
दुआओं में आपकी हंसी मांगते हैं,
सोचते हैं मांगे भी तो आपसे क्या मांगें
चलो उम्र भर की मोहब्बत ही मांगते हैं !!"
विक्रम की इस शायरी को सुन हेमा झेंप सी गई। मारे शर्म के उसके गाल लाल हो गए। वह काजल व प्रीति की ओर देखकर मन ही मन सोचने लगी, 'कहां फंस गई इस उलझन में, कुछ सूझ ही नहीं रहा।'
'चलिए आप लोग हार मान लिए न। बड़ी नाम सुने थे बहादुरपुर का। आप सब त गांव का नाके कटा दिए। अब लिख कर दीजिए कॉपी पर कि हार मान गए।' विक्रम ने मुस्कुराते हुए टोन मारी।
'जमुनिया के बाबू साहेब लो में एतना दम नहीं कि बहादुरपुर के हरा के चल जाए। ऊ भी हमनी के रहते हुए। हमनियो के कवनो छोटकन टोला के नहीं बबुआन के हैं। हरदी-कबड्डी बोलाके छोड़ेंगे।' यह प्रीति का स्वर था।
दरअसल कुछ महीने पहले ही वह नवरात्रा मेले से शायरी की एक किताब खरीद लाई थी। जिसके कुछ शेर उसे मुहजुबानी याद थे। अच्छा मौका था यहां सुनाने का। उसकी बातों से काजल व हेमा को काफी राहत मिली।
'प्रेमी जोड़े की किस्मत बुरी होती है,
हर जुदाई मिलन से शुरू होती है,
रिश्तों को कभी परख कर देखना,
दोस्ती हर रिश्ते से बड़ी होती है !!'
इस पंक्ति को सुनते ही हेमा उसके कंधे पर हाथ रखकर बोली, 'जियो पिरीती डार्लिंग। हम सब तो तुमको चुप्पा बुझते थे। तुम तो गजबे ढाह दी, एकदमे छुपा रुस्तम निकली।'
'ई सब तोहरे संगत में नु सीखी हूं।' प्रीति को बोलते देख प्रीतम को भी ताव आ गया। उसे लगा कि इस वक्त उसने भी कुछ नहीं सुनाया तो महफ़िल में बड़ी बदनामी हो जाएगी। शुरू हो गया...
'किसी न किसी पे ऐतबार हो जाता है,
अजनबी कोई शख्स भी यार हो जाता है,
खूबियों से ही नहीं होती मोहब्बत सदा,
खामियों से भी अक्सर प्यार हो जाता है !!"
इसको सुनकर प्रीति अंदर ही अंदर से भावुक हो गई। वह इसके जवाब में एक प्यारा सा शायरी बोलना चाहती थी। लेकिन अगले ही पल दिल में ख्याल कि यह प्रेम प्रदर्शन की जगह नहीं जो मिलता-जुलता शेर सुनाकर सहमति बनाए। यह तो प्रतियोगिता है जिसमें गांव की इज्जत दांव पर थी और सामने वाले प्रतिद्वंदी। सो उसने जवाब में नहले पर दहला मारा...
प्यार करने वालों की नसीब खोटी होती है,
दिन-महीने या साल की हो, हर रात रोती है,
कभी मौका मिले तो प्रेम ग्रन्थ पढ़ लेना,
हर प्रेमी जोड़े की कहानी अधूरी होती है !!"
'वर के हाली से माड़ो में ले चली लोगन बबुनी। पंडी जी कहनी ह कि बिआह के मुहूर्त हो गइल बा।' हज्जाम ठाकुर ने जैसे यह संदेश सुनाया। सब कोई एक-दूसरे का मुंह ताकने लगा। कितना बढ़िया तकरार चल रहा था।
'इहो सरऊ के अब्बे आवे के रहल ह का? मय रंग में भंग क देले आके ससुर...।' विक्रम प्रीतम के कानों में धीमे से फुसफुसाया।
'एही से नु माड़ो में मेहरारू सभे नउआ लोगन के गरियावेली सन, जइसन रेलिया के चाका वइसन हजमा उचाका...!' प्रीतम ने हज्जाम को सुनाते हुए कहा। लेकिन बढ़ती उम्र से कानों में आई खराबी के कारण वह नहीं सुन सका।
'चलअ स रे जीजा जी के लेके अंगना में।' सभी लड़कियां दूल्हे को लेकर चल पड़ी।
'हां, हां जाइए आप सब। मने ई मत बुझिएगा कि रिजल्ट फाइनल हो गया। बाकी-साकी मड़वो में पूरा होगा।' विक्रम ने चैलेंज देने के अंदाज में कहा तो लड़कियां सब अंगूठा दिखाते हुए हंस पड़ीं।
'हां हां, जाई लोगन ना भीतरा। कनिया के भउजाई सभे दही-हरदी लेके राउर सुआगत में खाड़ बाड़ी जा।' यह हज्जाम ठाकुर बोल रहे थे। और बोलें काहे नहीं? बरिआत में इनसे बड़ा मजाकिया कौन होता है भला? एही से त दुनु पक्ष से गारी भी सुनते हैं।
(भाग 13)
खर-बांस से बना माड़ो रंग-बिरंगे झालर व फूल से चकमक था। और उसके नीचे दुल्हन की सहेली के साथ ही भउजाई, चाची, फुआ से लड़कर दादी भी खड़े होकर दूल्हे की अगुवानी में खड़ी थीं। लड़कियां ज्यादातर सलवार शूट में थीं।
कोई-कोई जीन्स व टॉप पहने थीं जो इनके बीच चर्चा का विषय था बना हुआ था। पीले रंग की बनारसी साड़ी में बेतिया वाली फुआ तो इतना ना गाढ़ा लाल लिपस्टिक लगाई थी। 40 वर्ष की उम्र में उनका गहरा मेक अप देखकर काजल से रहा नहीं गया।
उसने मुंह बिचकाते हुए कहा, 'फुआ तू त साफा बिजली गिराव$ तारू। देखिह$ कहीं समधी लो पसन ना कर लेवे।'
'हमरा के समधी पसन के लिहे त तोर फूफा जी के का होई?'
यह सुनकर उनकी नौवीं में पढ़ने वाली बेटी गोल्डी शरमा गई। बोलीं, 'ए मां तोहरो नु उमिर के ख्याल ना रहेला। केन$हु शुरू हो जालु।'
'त कवनो अभिए फुआ कवनो बूढा थोड़े गइल बाड़ी। ई त हमनियो प बीस बाड़ी।' हेमा का इतना कहते ही सभी कोई खिल-खिलाकर हंसने लगा।
तभी दूल्हे ने आंगन में प्रवेश किया और महिलाएं गीत गाने लगीं, 'आपन मुंहवा निरेख$ ए वर$ चननो नाहि, माई तोर पंडितवा बहू चनन ना करे जान$ ए बाबु, कतेक$ लुलुअइबू से सासु कतेक$ परे गारी..!'
परिछावन में अक्षत की बौछार से दूल्हे का पूरा शरीर भर गया। तभी एक चावल का दाना उसकी बायीं आंख में लग गया। उसने हाथ से पपनी को मसला कि लोर बह चले। माजरा समझ काजल रुमाल से उसकी आंखों को धीरे-धीरे पोछने लगी।
'आय-हाय, दीदी त अभी मड़वा में अइली ना कि जीजा जी उनके इयाद में रोवे लगले।' इस पर सभी लड़कियां एक बार फिर से हंस पड़ीं।
काजल को मजाक सूझ रहा उधर दूल्हा को हंसी के साथ गुस्सा भी आ रहा था। एक पल के लिए मन में आया कि कह दे, 'इस अकेले बच्चा का आप लोग जान लेकर ही छोड़ोगे क्या?'
लेकिन अगले ही पल घर से चलते वक्त मां, मौसी व फुआ की दी हुई हिदायत याद आ गई, 'बबुआ केतनो केहू ससुरार में कुछो करी मने जन बोलिह$ माड़ो में तोहार शिकायत हो जाई।'
थोड़ी देर में पंडी जी ने दूल्हे को आसन ग्रहण करने का आदेश दिया। उसने तिरछी नजर से मुआयना कर वस्तु स्थिति का जायजा लिया। एक पतले कम्बल पर चावल के पीले दाने से कुछ बनाया गया था जिस पर बैठना था। बगल में कलश में आम का पल्लो, खेत जोतने वाला हल, ओखर-मूसर, हवन की वेदी...।
और चारों तरफ से घेरकर बैठा लड़कियों और महिलाओं का झुंड एकटक उसे ही निहार रहा था। इस तरह के Get-Together का पहले से अनुभव ना होने वह थोड़ा झेंप गया।
घर से मिले निर्देश के मुताबिक बैठनी वाली जगह का गम्भीरता से निरीक्षण किया। कुछ गड़बड़ नहीं होने के प्रति आश्वस्त हो गया। उसने आराम से अपने लाल रंग का बिहउती चमड़े का जुत्ता खोला और बैठ गया। लेकिन ये क्या... जांघ के ऐन नीचे कोई ठोस चीज गड़ने का एहसास हुआ। और एक बार फिर जोरदार ठहाके से माहौल गुलजार हो उठा।
दरअसल सालियों ने चतुराई से उसका जुत्ता नीचे लगा दिया था। बिआह के समय माड़ो में नकचढ़े दूल्हे को काफी परेशानी झेलनी पड़ती है।
'ॐ मंगलम भगवान विष्णु पुण्डरीकाक्षः... मंत्र का उच्चारण कर पंडी जी ने प्रक्रिया को आगे बढ़ाया। उम्रदराज महिलाएं बरामदे में नीचे ही समूह में एक जगह बैठकर गवनई में व्यस्त थीं। जबकि लड़किया सब दूल्हे के पीछे कुर्सी लगाकर बैठ गईं। उन्हें तो चुहलबाजी और शरारत सूझ रही थी। कनिया वाले रूम के पास दो कुर्सी रखी थीं। हेमा ना आंखों से इशारा किया तो प्रीतम व विक्रम वहीं बैठ गए।
थोड़ी ही देर में विक्रम को लगा कि मुंह में कुछ लभेरा गया। अरे यह तो लड़की की मामी थी हाथ में हल्दी मिलाया दही लिए। प्रीतम तो झटके से खड़ा हो गया था। लेकिन शर्ट के बाजू में लग ही गया।
'का मामी जी, रउरा अकेले काहे बानी? ऊ सभे का करेगी? जे आपको बुढौती में एतना मेहनत करना पड़ रहा है। उनको भेजिए ना।' विक्रम ने रुमाल से बाएं ओर के आंख व गाल को पोछते हुए लड़कियों की तरफ इशारा किया।
तो नई बिआह कर आई पट्टीदारी की सरहज ने चस्की ली, 'जा ए साले खाए के रहल ह त मंगनी ह काहे ना जे दही के नदिये में मुंह लगा देनी ह!'
'अब अइसनो जन कहीं। हमनी के चोरा-नुका के ना खानी स$। प्रेम से ना मिले त बरिआई छिनहु के हाल जाने ली जा।' प्रीतम ने विक्रम का पक्ष लिया।
'कनिया दान के बेरा हो गइल बा। लइकी के बोलाई सभे।' पंडी जी ने आवाज लगाई।
भाग - 14
हई लीं बबुआ, कनिया के आवे से पहिले खाड़ होखे मरदानी पहिन लीं।' हज्जाम ठाकुर ने दूल्हे को धोती सौपते हुए कहा।
उसने पीली धोती को तह लगाकर लपेट रहे हज्जाम की ओर ऐसे देखा मानो वह दूसरे ग्रह से आया प्राणी हो। मन ही मन कहा, अब ये क्या बला है?'
'अरे ये इतना लंबा है। मुझे नहीं आता ये सब पहनना। नहीं पहनूंगा, ऐसे ही ठीक हूं।'
'बबुआ ई मरजाद आ सगुन ह। बिना पहिनले विद्द कइसे पूरा होई? रउआ खड़ा रही हम लपेटे के सीखा देत बानी।'
वह बेचारा चुपचाप खड़ा हो गया। और धोती को लुंगी की तरह लपेट कर फूल पैंट निकाल दिया। लेकिन पीछे मुड़कर देखा तो उसका जुत्ता गायब था।
'अरे मेरा शू क्या हुआ?'
'ऊ त नहीं मिलेगा जीजा जी। अब नेग दीजिएगा तभिये भेटाएगा।' काजल ने अंगूठा दिखाते हुए कहा।
तभी लम्बी घूंघट काढ़े दुल्हन का आगमन हुआ माड़ो में। हेमा उसे लेकर आई थी। दूल्हा मन मानकर वहीं पर बैठ गया।
इधर, प्रीति ने हेमा की ओर देखा तो उसने इशारे से कुछ कहा। वह दुल्हन वाले कमरे में चली गई। हालांकि कमरे में उस वक्त कोई नहीं था लेकिन अंजाने भय से उसका कलेजा धड़कने लगा। कहीं हमारी चोरी पकड़ी गई तो...
माड़ो में वर-वधू के बैठते एक साथ बैठेते ही सभी की नजरें उस तरफ ही तल्लीन हो गई। पंडी जी के मंत्रोच्चारण से लग्नमय दृश्य बन गया। जबकि महिलाएं गीत गाने में विभोर हो चली थीं।
हेमा बेहद होशियारी से दुल्हन वाले कमरे के गेट पर पहरेदार की तरह खड़ी हो गई। कि कोई शक नहीं करे। पास में विक्रम व प्रीतम भी बैठे थे।
'प्रीतम जी आप भीतर जाइए, पांव रंगाई का रस्म होगा।' उसने धीरे से कहा तो वह चुपके से उठकर कमरे के अंदर चला गया।
सीएफएल की दूधिया रौशनी में रेड कलर की लहंगा साड़ी पहने पलंग पर बैठी प्रीति गजब की खूबसूरत दिख रही थी। और थोड़ा Matured भी। लग ही नहीं रहा था का मैट्रिक की छात्रा है। वैसे भी साड़ी में लड़कियां असमय ही उम्र से ज्यादा व गम्भीर दिखने लगती हैं।
हाथ में लिए लक्मे की ग्रे रंग वाला नेल पॉलिश के ढक्कन को खोल रही थी। प्रीतम को देखते ही वह शर्माकर बगल झांकने लगी।
'का हम पसन्द नहीं तुमको जो देखकर मुंह चोरा रही हो?' प्रीतम उसके करीब जाकर पलंग बैठते ही बोला।
'भाक, अइसा बात नहीं है। आपको देखकर करेजा धुकधुकाए लगा। आ मन में गुदगुदी उठ रहा है।'
'तो ई बात है। हमको तो कुछ और ही बुझाया...'
'का बुझाया?'
'अब रहने दो दिल का बात दिले में रहे त आछा है।'
'ठीक है राखिए बात दिल में। आ दाहिना हाथ दीजिए। रंगना है। नहीं तो बतियाए में ही टाइम बीत जाएगा।'
'आ हम नहीं रंगवाएं त का करोगी?' प्रीतम ने भाव बनाया।
'ई आपका मरजी है हम कवन जबरदस्ती थोड़े बोल रहे हैं।' प्रीति ने बनावटी नाराजगी जताई।
इसपर प्रीतम ने उसका बायां हाथ अपनी कलाई में जकड़ लिया। लेकिन यह क्या वह तो कांपने लगी और हाथ भी मानो तवे सा गर्म हो गया।
'अरे, तुम कांप काहे रही हो। हम कवनो भूत हैं का?
'कापेंगे नहीं तो और का होगा। एगो अंजान लड़की दोसरा लड़का के संगे बैठी है। कोई देख ले ई हाल में तो क्या होगा?
'ओहो, तो ई बात है।'
'और का? आप भूत तो नहीं मने जादूगर तो हइए हैं। जादू से हमारा दिल चोरा लिए हैं।'
'इहे बात तो हम तुमको भी कह सकते हैं। अकेले मुझे ही दोषी काहे बना रही हो?'
'उ त हइए हैं। आग त दूनो ओर बराबर लगा है।' प्रीति उसके हाथों का अंगूठा रंगते हुए बोली।
'पिरीति एगो बात बोलें?'
'हां बोलिए।'
'तुम एतना ना सुंदर दिख रही हो कि का बताए। हमको तो सपना में भी नहीं एहसास था कि एतना जल्दी
मुलाकात होगा।'
'सब देवी माई के किरपा है। नवरात्र में हम उनसे भखौती माने थे। देवी माई आपसे मुलाकात करा दे तो खोइछा भरेंगे।'
'चलो, माता रानी ने तुम्हें सुन लिया। आ एही बहाने हम लोग मिल भी लिए।'
'आछा ई बताओ हम तुमको कइसन लग रहे हैं?' प्रीतम ने एक और सवाल छोड़ते हुए बातों का सिलसिला आगे बढ़ाया।
'आप बार-बार ई बात पूछकर हमको शर्मिंदा काहे करते हैं। हम तो पहिलही कह दिए हैं आपसे। आप कइसनो हैं मेरे लिए तो भगवान है, जो मेरे में दिल में बस गए हैं।' प्रीति ने उसकी दसवीं अंगुली को रंगते हुए कहा।
'ओह, तो एतना विश्वास करती हो हम पर कि भगवाने बना ली हो। आ मैं ई बात पर खरा नहीं उतरा और तुमको छोड़ दिया तो..?'
'करेंगे का, एक चिटकी जहर खाकर परान दे देंगे। आउर का।'
'राम-राम, शुभ-शुभ बोलो। मैं तो मजाक कर रहा था।'
'हेल्लो, कवन बोल रहे हैं उधर से? मिस कॉल आया है आपका मेरे नम्बर पर।' मोबाइल पर अंजान नंबर से आए मिस काल को देख फोन लगा प्रीतम ने पूछा।
'जी, सॉरी। गलती से लग गया था आप पर। ऊ त हम अपना मौसी के यहां परसा फोन लगाए थे।'
'त एमे सॉरी के कवन बात है। कबो-कबो गलती से आछा काम हो जाता है।' फोन पर उधर से लड़की की मीठी
आवाज को सुन प्रीतम ने लपेटना शुरू कर दिया।
'आछा काम मने?' लड़की ने चिहुकते हुए पूछा।
'मने का? आपसे हमारा बात करना आछा ही न है।'
'ई हमको नहीं पता, का आछा है और का बुरा? मने एकरा बाद ई नंबर पर फोन मत कीजिएगा। पापा जी का मोबाइल है। जान जाएंगे त पिटाने लगूंगी।'
'आछा, नहीं करेंगे। अपना नाम तो बता दो?'
'नाम काहे बता दे आपको? हम त आपको जानते भी नहीं।'
'एमे जानना क्या है। पिरितम नाम है हमारा। घर बहादुरपुर। बहलोलपुर हाई स्कूल से इंटर कर रहा हूं, सकेंड ईयर में।'
'अरे वाह, हम भी त ओही स्कूल से दसवां कर रहे हैं। अगिला साल मैटिक का एक्जाम है।'
'एतना बता दी त नामो बता दो ना?'
'हमर नाम पिरीति है। घर सोनगंज, बस एह से जादा नहीं बताएंगे। अब चलिए फोन रखिए। नहीं त पापा जी सुन लिए त जुलुम कर देंगे।'
'अरे वाह! आप पिरीति हम पिरितम। हमारा-आपका गांव भी अगले-बगल में है। का सन्जोग है! वइसे हम फोन रख देते हैं। ई बताओ फेरु कब बतियाओगी?'
'अब ई नहीं बता सकती कि बात होगी कि नहीं। अभिये परिचय हुआ और आप तो एकदमे लाइने मारे लगे।'
************************* (2.)
'हां, हेल्लो। के बोलत बा, कहवां से बोला तानी?'
'हम रमेस बोलत बानी खजुरिया से। ई डुमरिया लागल बा नु?'
प्रीतम ने फोन पर एक उम्रदराज महिला की आवाज भांपते हुए पैतरा बदलकर बोला। आज सात दिन बाद उसने प्रीति को फोन लगाया था। लेकिन उसकी मां रामकली देवी ने फोन रिसीव किया और सवालों की झड़ी लगा दी।
'ना ई सोनगंज लागल बा। हम पिरीति के माई बोलत बानी।'
'आछा रखीं फोन। बुझाता रांग नम्बर लागल बा।' प्रीतम ने झूठ बोला।
'के ह मां, का कहत बा?
'कवनो मरदा रहल ह खजुरिया के। कहत रहे डुमरिया लगवले बानी।' रामकली देवी ने प्रीति के पूछने पर बताया।
'आछा, तनि फोनवा देबू हमके गेम खेले के बा।' प्रीति ने उनके हाथों से फोन लपकते हुए कहा।
'हाली से खेल के दे दिहे फोनवा। तोर पापा देख लिहे त मुआ दिहे। तोरा संगे हमरो के। हर दफे मना करे ले तोरा के फोन ना देवे के। कहत रहले एह घड़ी फोने पर लड़का-लड़की बिगड़ जाता लोग।' उन्होंने फोन देते हुए हिदायत दी।
'आछा त ई ओह दिनवा आला रांग नम्बर से आइल रहल ह।' प्रीति ने चुपके से छत पर जाकर मोबाइल में नम्बर को देख बुदबुदाया और मिस काल दे दी।
'आपको बोल थे न उस दिन। यहां फोन मत करिएगा। फिर काहे किए हैं। पापा जी जान गए त घर में रहल मुश्किल कर देंगे। आप बुझ काहे नहीं रहे।' उधर से कॉल आते ही वह शरु हो गई।
'आपका आवाज बहुत नीमन लगा। ओहि से फोन किए। सुनने का मन किया आज।'
'एकर का मतलब हुआ। दुनिया में जवन लड़की के आवाज आछा लगेगा ओकरा पिछ्ही पड़ जाइएगा।'
'अरे खिसिया काहे रही हो। आपन किरिया खाके कहते हैं। जिनगी के पहिला लड़की हैं आप। जिससे बतिया रहे हैं।'
'मने हमको आपसे नहीं बतियाना। चलिए फोन रखिए।'
'आपको बात नहीं करना है तो काट दीजिए। हम नहीं रखेंगे।'
'तनि सा बतिया का लिए आपसे। आप तो पिछ्ही पड़ गए हमारे।'
'ऐसा बात नहीं है पिरीति। ई सब बोलकर हमको लजवाओ मत। आज तुम्हारा इयाद आ रहा था तो फोन कर दिए। बाकि हमारे मन में तुम्हारे लिए ऐसा-वैसा कुछो नहीं है।'
'आप समझते काहे नहीं। राजपुत हैं हम लोग। उसमें भी पापा जी बड़ी खिसियाह हैं। जान गए उनकर बेटी कवनो लड़का से बतियाती है। तो कचरवाकर फेंकवा देंगे। घर में खानदानी बन्दूक रखल है। जब गांव में केहू से झगड़ा होता है। तो बात-बात पर निकाल लेते हैं। आ हमको खून-खराबा से बड़ी डर लगता है। मैं दुनू हाथ जोड़कर निहोरा करती हूं कि एकरा बाद फोन मत कीजिएगा।'
'अब एमे जात के बात कहां से आ गया। आप राजपुत हो तो हम भी कवनो ननकी जात नहीं है। जो डेरा जाएंगे। पंडी जी हैं हम भी। आचार्य उमा शंकर त्रिवेदी को जवार में कवन नहीं जानता उनकर बेटा हैं हम।'
'पिरीति... ए पिरीतिया, कहां बाड़े रे लड़की। गोड़ में एकरा चक्कर हो गइल बा। अगिला साल मैटिक के परीक्षा बा। मने किताब के ओरी ताकतो ना बिया। तनि पापा के पानी लेआ के दे त बेटी।'
'आवत बानी मां। छत पर आइल रहनी ह कपड़ा पसारे।'
'आछा। हम फोन रख रहे हैं। बुझा रहा है पापा जी घरे आ गए। मां बोला रही है।' फोन के Recieve व Miss Call से नम्बर को डिलीट करते हुए हुए प्रीति छत से नीचे की तरफ भागी।
************************* (3.)
प्रीति के पिता रणविजय सिंह घर के ओसारे में बैठे हुए थे। तभी उनका मोबाइल बज उठा। बार-बार फोन उठाते और बिना उधर से जवाब दिए कट जाता था।
'हेल्लो, हेल्लो...!'
'का जाने कवन फोन करता? ओने से आवाजे नइखे आवत।' चौथी बार भी दूसरी ओर से कोई आवाज नहीं पर उन्होंने झल्लाते हुए कहा।
बगल के कमरे में प्रीति गोल्डेन प्रकाशन का मैट्रिक परीक्षा की तैयारी वाला गेस पेपर विषयवार अलग-अलग कर स्टेपलर से पिन मार रही थी। पापा की कड़क बोली सुन अंजाने डर से उसका दिल धड़कने लगा, 'तीन दिन पहले जो फोन आया था, कहीं वहीं लड़का तो नहीं..?'
'हई देख त पिरीतिया केकर नमरवा से फोन आवता।'
'बाप रे, ई त उहे नमरवा ह। आजु मुआ दिहे पापा हमरा के।' उसने मोबाइल का नम्बर देख मन ही मन बुदबुदाया।
तभी उन्होंने प्रीति से कहा, 'आछा, तनि फोनवा चार्ज में लगा दे। केहू के फोन आवे त बोल दिहे कि घरे नइखी अबही। हम तनि सुखड़िया किहा से आवत बानी एगो पंचायत कके।'
उनके जाते ही वह छत पर गई और उस नम्बर पर मिस कॉल मार दिया। थोड़ी ही देर में फोन आ गया।
'आप काहे हाथ-गोड़ धोके हमरा पीछे पड़ गए हैं। पता है आजु पापा जी के हाथ में मोबाइल था। ई कहिए कि ऊ नहीं बुझ पाए।'
'आछा तो हम कवनो बुरबक है का! हम त आवाजे सुन के समझ गए कि केकरा लगे मोबाइल है। एहि से त खाली हेल्लो-हेल्लो कहके फोनवा काट दिए थे।'
'आप बुझते नहीं हमारे घर वाले केतना खतरनाक हैं। एक बार हमारी फुआ के साथ का हुआ था, आपको पते नहीं है। उन पर हाई स्कुल में पढ़ाई के समय एगो लड़का अइसही दीवाना था। एक दिन ऊ फुआ को चिठी दे दिया। ई बात के जानकारी जब बाबा को हुआ। तो ऊ आ पापा मिलके ओह लईका के हाथे तुड़वा दिए थे।'
'तुम अपने खानदान का नाम लेकर हमको डराती काहे हो? अब तुमको बतियाने का मन नहीं करता त ऊ दोसर बात है। एक बार खाली अपना करेजा पर हाथ रखके कह दो, तुमको हमारा आवाज आछा नहीं लगता। हम किरिया खाकर कहते हैं फोन नहीं करेंगे।'
'देखिए ऐसा बात नहीं है। आप हमारा मजबूरी समझिए। आ हमेशा किरिया खाने वाला बात काहे कहते हैं। ई बताइए फोन काहेला किए थे?'
'तुमसे एगो मन का बात कहना था। लेकिन अभी नहीं कहेंगे। मूड ऑफ़ हो गया।'
'ठीक है मत कहिए। नीचे जा रही हूं मां बुला रही है।'
'ई तो बता दो अब कब बात होगा?'
'कबो नहीं।'
'देखो, एतना किसी को तड़पाना आछा नहीं है। शाम को मिस कॉल देना एगो जरूरी बात कहना है।'
'कवन बात?'
'अभी नहीं शामे को बताएंगे।'
'आछा, समय मिलेगा तो देखेंगे।'
'देखेंगे नहीं, परोमिस करो। हम तुम्हारे मिस कॉल का इन्तजार करेंगे।'
'आछा परोमिस! करेंगे। अब फोन रखिए।'
************************* (4.)
जब मन में कोई चोर छुपा हो तो आदमी हर चीज को संदेह से देखता है। यहीं स्थिति प्रीति की भी हो गई थी। शाम में प्रीतम को Miss Call देने का वादा क्या किया था। उसे पल-पल मां या पापा की नजरें अपनी तरफ घूरती नजर आतीं। और उसकी नजर रह रहकर घड़ी की सुई पर टिक जाती। घर में इस वक्त कुल जमे तीन प्राणी ही थे। जबकि प्रीति का इकलौता भाई विजय पटना में इंजीनियरिंग की तैयारी कर रहा था।
इस समय आठ बज गया था। रणविजय सिंह खाना खाकर बथान पर सोने चले गए। वहीं रामकली देवी पड़ोस में शिव चर्चा सुनने जा रहे थीं।
उन्होंने प्रीति को आवाज लगाते हुए कहा, 'मन त रहल हो तोहरो के ले चले के। मने घरो के देखल त चाहि। केवाड़ी के छिटकिलि ठीक से लगा दिहे बबी। हम एक-दू घण्टा में आएम।'
'ए मां तू चल जइबू त डर लागी हमरा। मत जा।' उसने बनावटी डर दिखाते हुए कहा।
'भगवान के काम में 'ना' बोलल असुभ ह। आ केहू किहां ना जाईल जाई त उहो अपना इहां ना आई।'
'ठीक बा। मोबाइल देले जा हमराके गेम खेलेला।'
'दे तानी। बाकिर जादे पेर-पार मत करिहे ओकरा के। एने-ओने फोन कईला प पईसा काट लेत बिया कम्पनी।'
'आछा ना करेम।' उसने आश्वस्त करते हुए मोबाइल ले लिया।
मां के घर से जाते ही उसने झट से किवाड़ी बंद कर दिया। नीचे Aircel का टावर अक्सर गायब रहता। बातचीत में रुकावट ना हो इसलिए छत की सीढ़ी पर जाकर उसने प्रीतम के पास Miss Call दे दिया। अबकी छत पर नहीं गई। उसे अच्छी तरह पता था कि रात में ऊपर से आवाज दूर-दूर तक जाती है। पांच मिनट तक उधर से फोन नहीं आया तो उसने खीजते हुए लगातार तीन बार Miss Call मार दिया।
दस, पन्द्रह, बीस मिनट...। और अब पूरे आधे घण्टे बीतने को थे। कोई जवाब नहीं आया। जाने क्यों, उसे प्रीतम के ऊपर थोड़ा गुस्सा आने लगा था। उसी अनुपात में खुद के ऊपर शर्मिंदगी भी महसूस हुई। यह सोचकर कि मैं होती कौन हूं एक अंजान लड़के के फोन का इन्तजार करने वाली। तभी उसके मोबाइल का Ring Tone बज उठा। उसने Screen पर नम्बर देख बिना देरी किए उठा लिया। अचानक से उसका टेंशन उड़न छू हो गया और चेहरे का रंग गुलाबी।
'हेल्लो... सॉरी तुमको देर से फोन किए। अबगे टयूशन पढ़के आ रहे हैं। पॉकेट में मोबाइल भाईब्रेशन में था। अभिए तुम्हारा मिस कॉल देखे हैं। हमको विस्वास था तुम जरुरे मिस करोगी'। प्रीतम ने बढ़ी हुई धडकन पर काबू पा एक सांस में कह डाला।
'सवेरे कवन बात कह रहे थे मुझसे कि शाम में बताएंगे? वह सवाल करते हुए बोली।
'आछा छोडो उस बात को। ऊ त अइसही मजाक में बोले थे।'
'मजाक में मने का? एकरा मतलब तुमको कुछो नहीं कहना था हमसे। फिर मिस कॉल करे ला काहे बोले।'
'सोचते हैं कि कहीं बता दूं तो तुमको बुरा न लग जाए।'
'नहीं बुरा मानेंगे। कहिए।'
'तो फिर परोमिस करो।'
'परोमिस।'
'तुम बहुते सुन्दर हो। दुनिया के सब लड़की से बढ़कर ब्यूटीफुल हो मेरे लिए।'
'भाक, ई कवन कह दिया कि हम सुनर हैं। और हमको देखे बिना आप कईसे मान लिए कि कईसन हैं?' उसने शर्माते हुए कहा।
'अपना मन के आंख से देखे हैं और का?'
'आछा। आप तो बड़का अंतरधानी बाबा हैं।' वह मंत्रमुग्ध हो चली थी।
'एकदमे अंतरधानी हैं हम। पूछो, तुम्हारे बारे में कुछो बता सकते हैं।'
'त ई बता दीजिए अभी हम का पहने हैं?'
'ए ए ए... सलवार सुट पहनी हो।' उसने आवाज को खींचते हुए अंदाजा लगाया।
'किस रंग का है?'
'गुलाबी समीज और पियर सलवार।'
'झूठ पकड़ा गया आपका। हम तो आसमानी कलर का नाईट सुट पहने हैं।' उसकी पकड़ी गई चोरी पर वह चहकते हुए बोली।
************************* (5.)
लड़कियों में Common Sense कूट-कूट कर भरा होता है। जिसके सहारे वह लड़कों का झूठ आसानी से पकड़ लेती हैं। प्रीतम अपनी पकड़ी गई चोरी पर झेंप सा गया। 'अब क्या होगा?', अंजाने भय से उसका आत्मविश्वास थोड़ा डगमगाने लगा।
तभी उधर से प्रीति का की खिलखिलाती आवाज सुन उसे काफी राहत मिली। 'हां..हां...हां, चलिए अब हमसे लबरई मत बोलिएगा। हमें झूठे लोग तनिको पसंद नहीं।'
'आछा, तुम्हें बुरा लगा हो तो माफ़ कर दो। मेरा इरादा तुम्हारा दिल दुखाना नहीं था। मने परोमिस करते हैं एकरा बाद झूठ नहीं बोलेंगे।'
'अब एमे माफ़ी मांगने का बात कहां से आ गया। दोस्ती में त ई सब चलते रहता है।'
प्रीति के मुंह से दोस्ती की बात सुन उसे भीतर तक गुदगुदी हुई। एक अंजान लड़की जिससे कभी मिला नहीं। महज एक Miss Call से इतने करीब आ जाएगी कि उसे दोस्त मानने लगे। एकबारगी उसे यकीन नहीं हो रहा था। शायद Teen Age का एहसास ही कुछ ऐसा होता है। किसी भी हिंदी Love Story फ़िल्म से ज्यादा रोमांटिक और काल्पनिक भी। हकीकत कम फ़साना ज्यादा।
'जब दोस्त मान ही ली त एगो बात पूछे?' प्रीतम ने भीतर की हलचल को चतुराई से दबा दिया और खुद को नियंत्रित करते हुए पूछा। थोड़ा-थोड़ा भावुक भी हो चला था।
'हां, पूछिए।'
'हम कईसन लगते हैं आपको?'
'फिर वहीं बात। ई त झूठे बोलना न हुआ। बिना आपसे मिले कइसे बता दें कि आप कईसन हैं।'
'अपना दिल से पूछो जवाब जरुरे मिल जाएगा। वइसे तुम्हें बता दें कि हम पूरा करिया-कलूटे हैं।'
'इसमें पूछना का है। जब आप दोस्त होइए गए तो जो भी हैं, जइसे भी हैं। मेरे लिए सबसे आछा इंसान हैं आप।'
'एतना जल्दी हम पर भरोसा हो गया तुमको?'
'देखिए, भरोसा का बात नहीं है। मां कहती है कि मरद का गुण देखा जाता है, सूरत नहीं।'
'जब तुमको एतना विश्वास हम पर होइए गया। तो हम भी वादा करते हैं। ई दोस्ती अंत-अंत तक निभाएंगे।'
'आछा, अब फोन रखिए कल बतियाएंगे। लाउड स्पीकर बन्द हो गया। बुझा रहा है शिव चरचा खत्म हो गया। मां आइए रही होगी।'
'ठीक है रखते हैं। ई बताओ कल कब बात होगी?'
'कल दस बजे हाई स्कूल जाना है। रस्ते में एगो सखी के मोबाइल से मिस कॉल करूंगी।'
'ओके Bye। गुड नाईट।'
'Same to You!'
(भाग 8)
'हमरे खाति दुनिया में तोहरा के भेजवले बाड़े, भगवान बड़ी फुर्सत से तोहरा के बनवले बाड़े..!' जैसे ही मोबाइल की घण्टी में यह रिंग टोन बजा प्रीतम का ध्यान टेबल पर रखे फोन की ओर गया।
उसने कम्बल से निकल कर राजनीति विज्ञान के गेस को एक तरफ रखा और फोन को रिसीव किया।
'हेल्लो, कौन?'
'जी, नमस्ते। हैपी न्यू ईयर! हम पिरीति बोल रहे हैं।' उधर से कानों में मिश्री घोलने वाली आवाज सुनते ही प्रीतम का मानो यकीन नहीं हुआ। लगा पूरे देह में सनसनी फैल गई।
'सेम टू यू! पिरीति हमको विश्वास था तुम जरूरे फोन करोगी। तुमसे बतिया के हमको केतना रिलैक्स बुझा रहा है। पास में रहती त आपन करेजा चीर के देखा देते। आछा, तुम फोन रखो। हमारा जियो का सिम फिरी वाला है एने से करते हैं।'
फोन काटके प्रीतम कॉल लगाने लगा। लेकिन इधर जियो और उधर यूनिनॉर का सिम। जैसे दोनों का जन्मजात बैर हो। एक, दो, तीन, चार, पांच... दस। बार-बार उधर से कंप्यूटर वाली बहन जी 'नॉट रिचेबल' बोले जा रही थी।
'सा... चू... ई अंबनियो सभकर हाथ में फिरी सिम पहुचाके बुरबक बना दिया है। मेन मोके पर फेल हो जाता है।' प्रीतम मन ही मन झल्लाया।
ठीक पचासवे बार में फोन लगा। तो उसे राहत महसूस हुई।
'ई बताओ आजु चार जनवरी को बतिया रही हो। हम हेमा को फस्टे जनवरी को तोहरा लगे ग्रीटिंग कार्ड पहुचावे आ बात करावे ला बोले थे।'
'हेमा के मां का तबियत खराब था। एही से ओह दिन नहीं आई। आजुए आई है मिले के बहाने। उसी का नम्बर से आपसे बतिया रहे हैं। आपका ग्रीटिंग्स पढ़े हैं। का बताए, पढ़ला के बाद मने-मने केतना बेचैन हैं। रो नहीं रहे बाकि सब करम हो गया है।'
'सुनो पिरीति हमार किरिया, रोने का बात करोगी त हमहु रो देंगे। हिम्मत से काम लो हम जल्दिए कवनो ना रास्ता निकाल लेंगे मिले खाति।'
'डारलिंग, अपने दिल से नु पराया दिल का हाल बुझा जाता है। कइसे बताए आपको हम पर का बीत रहा है? जहिया से पापा जी आपसे बतिआत में मोबाइल छीने हैं। हर दमे पहरा लागल रहता है। पापा जी त दिन में केतना बेर रूम में झांकते रहते हैं। उनका चकुदारी से तंग आ गई हूं। लग रहा है जइसे उनकर बेटी केहु के संगे उड़हर जा रही है। मानते हैं आप पंडी जी है आ हम बाबू साहेब। दुनू जने के मिलन में समाज एगो लमहर दीवार है। मने पेयारे नु किए हैं आपसे, कवनो बड़का पाप थोड़े किए हैं।'
'पिरीति, दुनिया में पेयार से बड़ा कुछो नहीं है। सबसे पवित्र रिस्ता है ई, मने जालिम जमाना नहीं बुझता है इसको। आछा, ई बताओ अभी तोहर मम्मी-पापा कहां हैं?
'पापा जी पंपिंग सेट लेके गहु पटवाने गए हैं। अउरी मां दुअरा पर मकर सक्रान्ति के चिउरा के लिए धान सुखा रही है। हम त छत पर सीढ़ी आला रूम से नुका के बतिया रहे हैं।'
'ओ...हो, आ मां तोहरा साथे कइसन बिहैव करती हैं?'
'उहो कम नहीं है पापा जी से। अब तो हर दफे बानी मारते रहती है। मैटिक कर लो फिर तुम्हारा बिआह कर देंगे। एक दिन राति के बथानी पर पापा जी से बतिया भी रही थी। हम खाना लेके गए थे नुका के सुन लिए। कह रही थी 'जमाना खराब हो गइल बा। कवनो उच-नीच हो जाए। एह से नीमन बा जल्दिए इनकरा के कवनो खात-पियत घर देखके हाथ पिअर क देहल जाई।'
'त ठीके नु कहती है मां एमे बुरा क्या है? लड़की जब सज्ञान हो जाए तो बिआह कर ही देना चाहिए।' प्रीतम ने चुस्की लेते कहा।
'मारेंगे न आपको। अब आप भी जरल पर नमक छिड़क रहे हैं।' प्रीति में मीठी झिड़की दी।
'त तुम्हारा विचार क्या करने का है?' प्रीतम का सवाल था।
'एमे करना क्या है। जब हो गया त हो गया। ओखरी में मुड़ी पड़िए गया तो मोट-पातर का डर केकरा है। पापा जी के जिद्द है कि हमर बिआह दोसर जघे करेंगे। त हमहु ओही राजपूत बाप के लड़की हैं। पेयार किए हैं आपसे तो बिआह भी आपसे ही करेंगे। चाहे कुछो हो जाए।'
'देखो प्रीति खिसियाते नहीं हैं मां-बाप पर। ऊ लोग कुछो करता है। हमारे भलाई के लिए ही करता है।'
'ऊ त ठीक है बाकिर जवान बेटी को हर घड़ी ताना देना मां-बाप को शोभा देता है क्या? एक दिन त हम खींस-पित्त में कह दिए मां से। हमको अबही बिआह-उआह नहीं करना। एमए ले पढ़ाई करेंगे। आ आप लोग जादे टेंशन दीजिएगा त कुछो कर लेंगे।'
'मेरी करेजा, मरने-जीने का बात काहे करती हो। दिल धुकधुकाने लगता है। जब तुम कुछो कर लोगी त हम जिन्दे रहेंगे का। जियेंगे त एक-दोसरा के लिए आ मरेंगे भी त साथे-साथे। हम भी वचन देते हैं।'
तभी टे-टे की आवाज के साथ मोबाइल डिसकनेक्ट हो गया। प्रीतम ने मोबाइल पर टाइम देखा। आधा घण्टा हुआ था बात करते। उसने फिर फोन लगाया।
'अरे हां देखो न फोन कट गया था। जियो से लगातार आधा घण्टा से जादे नहीं बतिया सकते। एक बात कहना भूल गए थे। 29 जनवरी के हमरा दोस्त विक्रम के फुफेरा भाई के बरिआत तोहरा गांवे आ रहा है। फरवरी में हमर इंटर के एक्जाम है। मन त नहीं था आने का। मने तोहरा के देखे ला नाता-खोता जोड़के बरिआत अइबे करेंगे।'
'अरे वाह, ई त बड़का खुश खबरी सुनाए हैं। ऊ बरिआत त हमरा पट्टीदारिए में आ रहा है। फुआ लगेगी हमारी। लेकिन देखे त हइये नहीं हैं, पहचानेंगे कइसे आपको?'
'ई कवन बड़का बात है। हेमा पहचानती है न उसे बोला लेना। हम करिया कोट आ ब्लू टाई में रहेंगे। नागिन डांस करे में हमको खूबे मजा आता है। छत पर से तुम देखना। आ द्वार पूजा में त देखा-देखी होइए जाएगा।'
तभी आंगन में रामकली देवी की आने की आवाज गूंज उठी। प्रीति को लगा इससे पहले कि बातें करते पकड़े जाए। उसने मोबाइल ऑफ़ करके हेमा को थमा दिया।
'आछा त अब फोन रखते है। मां ओसारा से अंगना में आ गई है। मोबाइल से बतियाते देख ली त जुलुम हो जाएगा।'
'अइसे नहीं, पहले एगो 'किस' दे दो तब रखेंगे।' प्रीतम ने रोमांटिक मूड में कहा।
'एमे पूछना का है? सब त आपके ही नामे कर दिए है। जवन चीज लेना है ले लीजिए।'
फिर पुच... पु...च की लंबी ध्वनि के साथ बाए-बाए की आवाज गूंजी और फोन कट गया।
(भाग 9)
'सोने के कचोरवा में पीसे ली हरदिया भउजी लाहे-लाहे, हो भउजी लाहे-लाहे..!' एने प्रीति की पट्टीदारी में उसकी फुआ को भउजाई व सखी सब उबटन लगा रही थी। ओने डीजे साउंड पर बज रहे इस गाने से बहादुरपुर गांव वैवाहिक रस्म में डूब चला था। आज 29 जनवरी था यानी फुआ का बरिआत आने वाला था। लेकिन जितनी खुशी उसके चेहरे पर छलक रही थी, लग रहा था दुनिया की सबसे खुशनसीब इंसान वहीं है।
और हो भी क्यों नहीं? आज ठीक एक वर्ष बाद पहली बार उसका 'वो' आने वाला था। अजीब सी हालत हो चली थी। कभी मन में गुदगुदी उठती और चहकने लगती। फिर अगले ही पल अंजाने भय से दिल धड़कने लगता। जवाब कई सारे पर सवाल सिर्फ एक। कहीं उसने मुझे देखकर छोड़ दिया तो..?
हर पल मन में आ रहे अजीब-अजीब ख्याल से वह चिहुंक उठती। दोपहर में ही बहलोलपुर से हेमा भी उसके घर आ गई। रात के पहनावे को लेकर चर्चा होने लगी। गोदरेज की अल्मारी खुली, उसमे रखे जीन्स-टॉप, लेगिज, लहंगा शूट, सलवार शूट..।
दर्जनों कपड़े निकालकर बिछावन पर रख दिए। पहनावे को लेकर खूबे माथा-पच्ची हुई। लेकिन फाइनली हेमा का आईडिया ही काम आया। द्वार पूजा के समय जींस टॉप और रात को माड़ो में लहंगा साड़ी जो दिल्ली वाली मौसी के लड़की पिछले साल गिफ्ट में दी थी।
'हेमा एगो बात पूछे?' प्रीति ने कहा।
'हां बोलो।'
'कहीं उनको हम पसन नहीं पड़े तो?'
'कइसन बुरबक निहर बतियाती है। तुम एतना गोरी है। ऊ तोहरा सामने भले हाईट में तनी जादे हैं। मने हैं सावरे नु। तू उनकरा से बीस नहीं पच्चीस है।'
पता नहीं क्यों प्रीति को हेमा का यह जवाब जंचा नहीं। उसने तपाक से कहा, 'सुनरता लड़की में देखा जाता है। लड़का में त गुने नु देखा जाता है। ऊ भले सावर हैं, करिया-कलूट हैं। आ हम सुनर-भभुका। मने एतना विश्वास है कि हम उनकर गोड़ के धोवनो में नहीं हैं।'
'एही से न कहती हूं कि तुम उनकर पेयार में पगला गई हो।'
'हां, होइए गई हूं पागल त बोलो का करोगी एमे?'
'बड़ी जल्दी तुम खिसिया जाती है। तुमको मिलवाने के लिए हम ओतना दूर से घरे से झूठ बोल के आए है, बिआह देखे के बहाने। आ पूछ रही हो हम का करेंगे एमे? त हम जा रहे हैं वापस।'
'तुम एतना सीरियस काहे हो जाती हो दिलजानी। मने हम ई थोड़े कह रहे हैं कि उनसे मिलवाने में हमको मदद नहीं कर रही हो। मामला एतना अगाड़ी बढ़ा है ऊ तोहरे चलते हुआ है। ई एहसान हम मानते हैं।' प्रीति ने उसके मूड को भांपकर खुशामदी की।
'आछा, रहे दे। अब जादे पॉलिश मत लगा। ना त हमहु अगरा जाएंगे।'
'कवनो उपाय लगाओ हेमा कि राति के पांचों मिनट ला उनसे भेंट हो जाए। कनिया आला रूमवा राति के जब ऊ माड़ो में जाएगी त खालिए नु रहेगा। ओही में..।'
'ऊ त ठीक है मने सउसे घर पहुना आ पहुनी से भरल रहेगा। मिलवाने में हमको रिस्क बुझा रहा है, कहीं पकड़ा गए त पूरा हाला मच जाएगा।'
'हेमा, जब तोहरा जइसन सखी हमरा लगे है त रिस्क के कवन बात है। 'ऊ' माड़ो में बिआह देखे अइबे करेंगे। जइसे ही कनिया माड़ो में जाएगी। सब केहु त गीत-गवनई आ लइका-लइकी के परिछे में लागल रहेगा। मोका देख के घर में उनकरा के बोला लेना आ गेट पर खड़िया के तुम पहरा देना। एगो काम करो अबहिए फोन करो उनका लगे आ सेटिंग कर लो।'
(भाग 10)
'जिमी जिमी जिमी आजा आजा आजा, आजा रे मेरे पुकारे तेरा प्यार, पुकारे मेरा दिल जिमी जिमी जिमी..!' इसी गाने की धुन पर ट्रॉली पर खड़ी थिरक कर बरातियों को लुभा रही थी हॉफ कटी ड्रेस में बंगाली डांसर। और चारो तरफ बैंड-बाजे की धूम गूंज रही थी। यानी बहादुरपुर में पहुंची बारात जनवासे से बेटिहा के दरवाजे की ओर निकल चुकी थी। पीछे-पीछे लड़को की टोली मस्त होकर उछल-कूद मचाए हुए थी। मानो धान की कुटाई चल रही हो।
वैसे भी कोई कितना ही खराब काहे नहीं नाचता हो। समूह में खुद को माइकल जैक्शन ही बुझता है। नए लड़कों से तो जादा उमंग दूल्हे के मामा, मउसा व फूफा में लउक रहा था। नगिनिया डांस करते हुए सब जमीन पर ऐसे लोटा रहे थे कि नवही लोग भी उनके सामने फिंका पड़ जाए। हालांकि एमे 'हजारा' खर्च कर लिए गए 'पऊआ' का भी असर साफ़-साफ़ बुझा रहा था।
जइसे ही लड़की वाले का घर नजदीक आया फिर तो बाजा वाले के पास फरमाइशी गीतों का दौर शुरू हो गया। इस वक्त 'लॉली पॉप लागेलु' बज रहा था। नचनियों की इसी भीड़ में प्रीतम भी हाथ उठाए झूमने में मग्न था। लेकिन उसकी चोर निगाहें छत की और बेसबरी से किसी की खोज रही थीं।
'ए पिरीति देखो ना ऊ करियका सूट में जो लड़का नाच रहा है न उहे पिरितम हैं।' छत पर खड़ी होकर बारात के धूम गजर को निहार रही लड़कियों की झुंड में हेमा ने प्रीति के कानों में फुसफुसाते हुए कहा।
तभी प्रीतम व प्रीति की नजर टकराई। और मानो वक्त कुछ पल के लिए ठहर सा गया। नीली जीन्स पर उजला टॉप और कथई रंग का हाफ जैकेट। कंधे तक लटकते अधकटे खुले बालों में प्रीति को देख पहली बार में ही प्रीतम ने भांप लिया। यहीं है उसके सपनों की रानी जिसकी एक झलक पालक पाने के लिए वह महीनों से बेताब था।
'चलअ स रे सभे नीचे, दवार पूजा के मंगल गीत गावे। बरिआत दुअरा प चहुप गइल बडुए।' तेजी से सभी लड़कियां व महिलाएं व लड़किया नीचे जाने के लिए सीढ़ी की ओर भागी। एकाएक प्रीति का ध्यान उधर से हटा। उसने तिरछी नजरों से चारों ओर देखा। कहीं उसकी चोरी पकड़ी तो नहीं गई। लेकिन हेमा के अलावा कोई वहां नहीं था। वे दोनों भी नीचे उतर गईं।
चौकी पर द्वार पूजा का विद्द हो रहा था। दूल्हा अपनी अंजुरी में अक्षत वगैरह लेकर बैठ गया। नाई ठाकुर आम का पल्लो सजाने में लगे थे। और पंडी जी तेजी से मंत्र पढ़े जा रहे थे। वीडियो कैमरा के साथ लगे हैलोजन लाइट की रौशनी से दिन जैसा उजाला हो गया था। प्रीति व हेमा ठीक दूल्हे के पीछे खड़ी थी। वहीं प्रीतम भी देखनिहारों की रेलमपेल भीड़ को चीरते हुए पंडी जी के पीछे खड़िया गया।
हेमा ने धीमे से अंगुली के इशारे से प्रीति की ओर प्रीतम का धेयान आकर्षित कराया। ठीक आमने-सामने दोनों की आंखें चार हुई। और नजरों के रास्ते दिल की बात होने लगी। इधर, बाजे का एनाउंसर गा रहा था, जिसका मुझे था इंतिजार, जिसके लिए दिल था बेकरार, वो घड़ी आ गई..!
तभी महिलाएं गाली गाने लगी, 'दूल्हा के माई बनारस के रंडी, मीठा लागल खीर खइली हो दूल्हा भइले करिया...।' इस पर हेमा ने प्रीतम की ओर देखते हुए धीरे से एक आंख मारी। प्रीतम झेंप सा गया। उसे लगा मानो गाली उसी के लिए हो रही है।
इधर, हजाम ठाकुर सगुन का चाउर अक्षत के लिए में सभी विवाहितों को बांटने लगे। हालांकि चलावे के मुताबिक कुंवारे लड़के अक्षत नहीं लेते। लेकिन प्रीतम को जाने क्या सुझा उसने भी दायां हाथ बढ़ाकर मुठ्ठी में अक्षत ले लिया। जैसे ही पंडी जी ने इशारा किया सभी कोई दूल्हे के ऊपर अक्षत फेंक कर आशीष देने लगे।
इसी बीच प्रीतम ने तेजी से मुठ्ठी को उठा प्रीति को निशाना बना कर उछाला। और वह सिर से पांव तक चावल के दाने से भर गई। वह मारे शरम के सहम गई। उसक गोरे गाल सुर्ख गुलाबी हो उठे। लेकिन शुक्र था खुदा का कि उतनी भीड़ में से किसी ने भी इस अप्रत्याशित वाकये पर धेयान नहीं दिया। बस इस रोमांटिक क्षण के तीन जने ही गवाह थे।
(भाग 11)
दवार पूजा का नेग पूरा हुआ। और दूल्हा अपनी दहेजुआ स्विफ्ट डिजायर कार से जनवासे में लौट गया।
'पिरीति, जब ले जनवासे से दूल्हा माड़ो में आएगा, तब ले चलो ना ड्रेस चेंज कके आ जाते हैं।' हेमा के कहने पर दोनों सखियां तेज कदमों से घर की ओर चल दीं।
हेमा व प्रीति घरे पहुंचते ही बाथरूम में घुस गई। मुंह पर पानी डाला और लक्मे फेसवाश से चेहरे की सफाई की दोनों ने। फिर ऐनक के पास बैठकर एक दूसरे की मदद से चेहरे पर फाउंडेशन, आंखों में काजल, ओठों पर हल्के ग्रे शेड की लिपस्टिक, पलकों पर गुलाबी मस्कारा लगाया और भौह को आई लाइनर से चमकाया।
हेमा ने तो फटाफट सलवार-शूट बदलकर घर से लाई अपनी पसंदीदा मां की आसमानी रंग की सिल्क साड़ी पहन ली। लेकिन प्रीति को लहंगा साड़ी पहनने ही नहीं आ रहा था। अजीब तरह से वह साड़ी को कमर में कभी इधर से उधर तो दाएं-बाएं लपेट रही थी।
यह देखकर हेमा खिलखिलाकर हंस दी। 'अरे तुमको तो साड़ियों पहिने नहीं आ रहा। ऊ भी हमको ही सिखाना पड़ेगा। कइसे तुम ऊ लड़का के हैंडिल करेगी। ओमे त हमको बोलएबी नहीं करेगी।' उसने चुस्की ली तो प्रीति शरमा गई।
'ई देखो अइसे पहना जाता है लहंगा साड़ी, बुरबक।' हेमा ने उसे सही तरीके से पहनाया।
प्रीति ने एक बार फिर से हाथों में विको क्रीम पोतकर गालों पर मसाज किया। नाक में नथिया व कानों में झुमका पहना। और वह शीशे के पास जाकर खुद को निहारने लगी। लाल ड्रेस में क्या गजब कहर ढाह रही थी वह। बिल्कुल कनिया जैसी बुझा रही थी।
'हाय हमर पिरीति रानी, केतना सुनर लग रही हो! एक दमे परी बुझा रही हो। आजु त जुलुम कर दोगी मड़वा में। केतना लड़िका सब तोहके देखके पगला जाएगा। कास हम लड़का रहते तो तोहरे के भगा ले जाते।'
'भाक, अइसन बात नहीं है। हमारे दिल में त एके गो लइका का तस्वीर कैदे हैं। फेरु दोसरा लड़िकन पर जुलुम हो चाहे रहम, हमको का है? केहू के देखके से ओकरा के रोक नहीं नु सकते। बाकिर हमारा मन बुझ रहा है न कि हमारे देह पर केकर अधिकार है।' प्रीति का जवाब था।
'आय-हाय, पेयार के रंग में रंगा के तुम त एकदम फिलौसपरे हो गई है।'
एने जैसेे ही दूल्हे की गाड़ी दुआरे पर दोबारा पहुंची। उसको माड़ो में ले जाने के लिए लड़कियां सब मोमबतियां जलाकर, अकछत, चन्दन से भरी आरती की थाली लेकर आईं।
Engineering व MBA ग्रेजुएट, NCR के एक MNC में सेट दूल्हा हल्के पीले रंग की शेरवानी खूबे स्मार्ट लग रहा था। हालांकि बचपन से ही Convent में हुई स्कूलिंग के कारण वह गांव में बिल्कुल नहीं रहा था। अब तक उसने शहर में तो कई शादियों में भाग लिया था।
लेकिन गांव के रीति-रिवाज का अनुभव पहली बार हो रहा था उसे। थोड़ा नकचढ़ा व रिजर्व टाइप का होने के कारण असहज महसूस कर रहा था उस वक्त।
दुल्हन की मौसेरी बहन हाथों में थाली लिए आगे-आगे लड़कियों की झुण्ड की अगुआई कर रही थी। हेमा व प्रीति भी संग हो लिए।
'चलनी के चालल दूल्हा, सूपा के फटकारल हे। आ गइले बकलोल दूल्हा कहवां के बाकल हे..!' कार का फाटक खुला और दूल्हे की आरती उतारते हुए यहीं गीत गाई जाने लगी।
तभी मोमबती का गर्म मोम पिघलकर दूल्हे के पैंट पर चू गया। उसने कराहते हुए 'ओ शिट' भर कहा।
लेकिन गाने व चुहलबाजी में मगन लड़कियों ने इस पर धेयान नहीं दिया। कोई पेयार से उसके गाल को खींच रही थी तो कोई शायरी सुनाने की फरमाइश कर रही थी।
इन सबके बीच खुद को बेचारा महसूस कर रहा वह मन ही मन में सोचने लगा किस आफत में फंस गया हूं यहां? बिल्कुल गंवार की तरह मुझसे बिहैव कर रहे हैं सभी।
अचानक हेमा ने दूल्हे के गले में दोनों हाथों से अपना दुपट्टा फंसाया और धीरे से गाड़ी से बाहर उसे खींचने लगी। लेकिन अब बात बरदास्त से बाहर हो चली थी। सो गुस्से में उसे बोलना ही पड़ा।
'What the hell? I don't like such types of rude manner!'
'आय-हाय जीजा जी तो अभिए से अंगरेजी झाड़ने लगे। आगे क्या गुजरेगी दीदी पर?'
'त रउए सभन के बाबू जी नु पांव पूजाई के लिए अइसन लईका खोजे हैं। ओह बेरा नहीं बुझाया।'
यह दूल्हे के ममेरे भाई विक्रम का स्वर था। फुफेरे भाई को अकेले पड़ता देख वह साथ देने आ गया। पास में ही प्रीतम भी खड़ा था। अब जाकर वर पक्ष का पलड़ा संतुलन में आया था।
'एतना गुमान है अपना पर त तनी शायरी बोले में फरिया लीजिए ना, आटा-चाउर का भाव बुझा जाएगा। जब ले हमनी सब के हाराइएगा नहीं आप लोग। जीजा जी मड़वा में नहीं जाएंगे।' दुल्हन के सहेली आरती ने ताव दी।
'हां त एमे कम केकरा के बुझते हैं आप लोग। चलिए आपही लोग शुरू कीजिए।' विक्रम भी पूरे मूड में आ गया था।
भाग (12)
दुआर पूजा के बाद दूल्हा के माड़ो में जाने का रस्म ही ऐसा होता हैं। वहां पर मौजूद तमाम लड़कें या लड़कियां रोमांटिक होकर शायराना मूड के हो जाते हैं। हेमा का प्रस्ताव कि पहले लड़केे पक्ष वाले शायरी शुरू करें, विक्रम को पसंद आया। और वह दिलफेंक अंदाज में शुरू हो गया।
"इश्क ने हमें बेनाम कर दिया,
हर खुशी से अंजान कर दिया,
हमने तो कभी नहीं चाहा कि
हमें भी मोहब्बत हो जाए,
लेकिन आप की एक नजर ने
हमें नीलाम कर दिया !!"
इस पर दुल्हन की चचेरी बहन काजल ने हेमा की ओर देखा। और जवाब में सुना दी...
"मुहब्बत में ना जाने कितने अफसाने बन जाते हैं,
शमां जिसको भी जलाती है वो परवाने बन जाते हैं,
कुछ हासिल करना ही इश्क कि मंजिल नही होती,
किसी को खोकर भी कुछ लोग दिवाने बन जाते है !!"
विक्रम ने पूरी अदा के साथ फिर से एक शेर दागा, मानो वह बख्शने के मिजाज में नहीं था।
"खूबसूरत क्या कह दिया उनको,
हमें छोड़ कर वो शीशे की हो गई,
तराशा नहीं था तो पत्थर जैसी थी,
जो तराश दिया तो खुदा हो गई !!"
इस चौके पर छक्का मारते हुए हेमा ने सुनाया,
नदी से किनारे छूट जाते हैं,
आसमान से तारे टूट जाते हैं,
जिन्दगी में अक्सर ऐसा होता है,
जिसे हम दिलसे चाहते हैं,
वही हमसे रूठ जाते हैं !!
अब बारी विक्रम की थी। थोड़ा यादाश्त पर जोर लगाया और...
"रब से आपकी खुशी मांगते हैं,
दुआओं में आपकी हंसी मांगते हैं,
सोचते हैं मांगे भी तो आपसे क्या मांगें
चलो उम्र भर की मोहब्बत ही मांगते हैं !!"
विक्रम की इस शायरी को सुन हेमा झेंप सी गई। मारे शर्म के उसके गाल लाल हो गए। वह काजल व प्रीति की ओर देखकर मन ही मन सोचने लगी, 'कहां फंस गई इस उलझन में, कुछ सूझ ही नहीं रहा।'
'चलिए आप लोग हार मान लिए न। बड़ी नाम सुने थे बहादुरपुर का। आप सब त गांव का नाके कटा दिए। अब लिख कर दीजिए कॉपी पर कि हार मान गए।' विक्रम ने मुस्कुराते हुए टोन मारी।
'जमुनिया के बाबू साहेब लो में एतना दम नहीं कि बहादुरपुर के हरा के चल जाए। ऊ भी हमनी के रहते हुए। हमनियो के कवनो छोटकन टोला के नहीं बबुआन के हैं। हरदी-कबड्डी बोलाके छोड़ेंगे।' यह प्रीति का स्वर था।
दरअसल कुछ महीने पहले ही वह नवरात्रा मेले से शायरी की एक किताब खरीद लाई थी। जिसके कुछ शेर उसे मुहजुबानी याद थे। अच्छा मौका था यहां सुनाने का। उसकी बातों से काजल व हेमा को काफी राहत मिली।
'प्रेमी जोड़े की किस्मत बुरी होती है,
हर जुदाई मिलन से शुरू होती है,
रिश्तों को कभी परख कर देखना,
दोस्ती हर रिश्ते से बड़ी होती है !!'
इस पंक्ति को सुनते ही हेमा उसके कंधे पर हाथ रखकर बोली, 'जियो पिरीती डार्लिंग। हम सब तो तुमको चुप्पा बुझते थे। तुम तो गजबे ढाह दी, एकदमे छुपा रुस्तम निकली।'
'ई सब तोहरे संगत में नु सीखी हूं।' प्रीति को बोलते देख प्रीतम को भी ताव आ गया। उसे लगा कि इस वक्त उसने भी कुछ नहीं सुनाया तो महफ़िल में बड़ी बदनामी हो जाएगी। शुरू हो गया...
'किसी न किसी पे ऐतबार हो जाता है,
अजनबी कोई शख्स भी यार हो जाता है,
खूबियों से ही नहीं होती मोहब्बत सदा,
खामियों से भी अक्सर प्यार हो जाता है !!"
इसको सुनकर प्रीति अंदर ही अंदर से भावुक हो गई। वह इसके जवाब में एक प्यारा सा शायरी बोलना चाहती थी। लेकिन अगले ही पल दिल में ख्याल कि यह प्रेम प्रदर्शन की जगह नहीं जो मिलता-जुलता शेर सुनाकर सहमति बनाए। यह तो प्रतियोगिता है जिसमें गांव की इज्जत दांव पर थी और सामने वाले प्रतिद्वंदी। सो उसने जवाब में नहले पर दहला मारा...
प्यार करने वालों की नसीब खोटी होती है,
दिन-महीने या साल की हो, हर रात रोती है,
कभी मौका मिले तो प्रेम ग्रन्थ पढ़ लेना,
हर प्रेमी जोड़े की कहानी अधूरी होती है !!"
'वर के हाली से माड़ो में ले चली लोगन बबुनी। पंडी जी कहनी ह कि बिआह के मुहूर्त हो गइल बा।' हज्जाम ठाकुर ने जैसे यह संदेश सुनाया। सब कोई एक-दूसरे का मुंह ताकने लगा। कितना बढ़िया तकरार चल रहा था।
'इहो सरऊ के अब्बे आवे के रहल ह का? मय रंग में भंग क देले आके ससुर...।' विक्रम प्रीतम के कानों में धीमे से फुसफुसाया।
'एही से नु माड़ो में मेहरारू सभे नउआ लोगन के गरियावेली सन, जइसन रेलिया के चाका वइसन हजमा उचाका...!' प्रीतम ने हज्जाम को सुनाते हुए कहा। लेकिन बढ़ती उम्र से कानों में आई खराबी के कारण वह नहीं सुन सका।
'चलअ स रे जीजा जी के लेके अंगना में।' सभी लड़कियां दूल्हे को लेकर चल पड़ी।
'हां, हां जाइए आप सब। मने ई मत बुझिएगा कि रिजल्ट फाइनल हो गया। बाकी-साकी मड़वो में पूरा होगा।' विक्रम ने चैलेंज देने के अंदाज में कहा तो लड़कियां सब अंगूठा दिखाते हुए हंस पड़ीं।
'हां हां, जाई लोगन ना भीतरा। कनिया के भउजाई सभे दही-हरदी लेके राउर सुआगत में खाड़ बाड़ी जा।' यह हज्जाम ठाकुर बोल रहे थे। और बोलें काहे नहीं? बरिआत में इनसे बड़ा मजाकिया कौन होता है भला? एही से त दुनु पक्ष से गारी भी सुनते हैं।
(भाग 13)
खर-बांस से बना माड़ो रंग-बिरंगे झालर व फूल से चकमक था। और उसके नीचे दुल्हन की सहेली के साथ ही भउजाई, चाची, फुआ से लड़कर दादी भी खड़े होकर दूल्हे की अगुवानी में खड़ी थीं। लड़कियां ज्यादातर सलवार शूट में थीं।
कोई-कोई जीन्स व टॉप पहने थीं जो इनके बीच चर्चा का विषय था बना हुआ था। पीले रंग की बनारसी साड़ी में बेतिया वाली फुआ तो इतना ना गाढ़ा लाल लिपस्टिक लगाई थी। 40 वर्ष की उम्र में उनका गहरा मेक अप देखकर काजल से रहा नहीं गया।
उसने मुंह बिचकाते हुए कहा, 'फुआ तू त साफा बिजली गिराव$ तारू। देखिह$ कहीं समधी लो पसन ना कर लेवे।'
'हमरा के समधी पसन के लिहे त तोर फूफा जी के का होई?'
यह सुनकर उनकी नौवीं में पढ़ने वाली बेटी गोल्डी शरमा गई। बोलीं, 'ए मां तोहरो नु उमिर के ख्याल ना रहेला। केन$हु शुरू हो जालु।'
'त कवनो अभिए फुआ कवनो बूढा थोड़े गइल बाड़ी। ई त हमनियो प बीस बाड़ी।' हेमा का इतना कहते ही सभी कोई खिल-खिलाकर हंसने लगा।
तभी दूल्हे ने आंगन में प्रवेश किया और महिलाएं गीत गाने लगीं, 'आपन मुंहवा निरेख$ ए वर$ चननो नाहि, माई तोर पंडितवा बहू चनन ना करे जान$ ए बाबु, कतेक$ लुलुअइबू से सासु कतेक$ परे गारी..!'
परिछावन में अक्षत की बौछार से दूल्हे का पूरा शरीर भर गया। तभी एक चावल का दाना उसकी बायीं आंख में लग गया। उसने हाथ से पपनी को मसला कि लोर बह चले। माजरा समझ काजल रुमाल से उसकी आंखों को धीरे-धीरे पोछने लगी।
'आय-हाय, दीदी त अभी मड़वा में अइली ना कि जीजा जी उनके इयाद में रोवे लगले।' इस पर सभी लड़कियां एक बार फिर से हंस पड़ीं।
काजल को मजाक सूझ रहा उधर दूल्हा को हंसी के साथ गुस्सा भी आ रहा था। एक पल के लिए मन में आया कि कह दे, 'इस अकेले बच्चा का आप लोग जान लेकर ही छोड़ोगे क्या?'
लेकिन अगले ही पल घर से चलते वक्त मां, मौसी व फुआ की दी हुई हिदायत याद आ गई, 'बबुआ केतनो केहू ससुरार में कुछो करी मने जन बोलिह$ माड़ो में तोहार शिकायत हो जाई।'
थोड़ी देर में पंडी जी ने दूल्हे को आसन ग्रहण करने का आदेश दिया। उसने तिरछी नजर से मुआयना कर वस्तु स्थिति का जायजा लिया। एक पतले कम्बल पर चावल के पीले दाने से कुछ बनाया गया था जिस पर बैठना था। बगल में कलश में आम का पल्लो, खेत जोतने वाला हल, ओखर-मूसर, हवन की वेदी...।
और चारों तरफ से घेरकर बैठा लड़कियों और महिलाओं का झुंड एकटक उसे ही निहार रहा था। इस तरह के Get-Together का पहले से अनुभव ना होने वह थोड़ा झेंप गया।
घर से मिले निर्देश के मुताबिक बैठनी वाली जगह का गम्भीरता से निरीक्षण किया। कुछ गड़बड़ नहीं होने के प्रति आश्वस्त हो गया। उसने आराम से अपने लाल रंग का बिहउती चमड़े का जुत्ता खोला और बैठ गया। लेकिन ये क्या... जांघ के ऐन नीचे कोई ठोस चीज गड़ने का एहसास हुआ। और एक बार फिर जोरदार ठहाके से माहौल गुलजार हो उठा।
दरअसल सालियों ने चतुराई से उसका जुत्ता नीचे लगा दिया था। बिआह के समय माड़ो में नकचढ़े दूल्हे को काफी परेशानी झेलनी पड़ती है।
'ॐ मंगलम भगवान विष्णु पुण्डरीकाक्षः... मंत्र का उच्चारण कर पंडी जी ने प्रक्रिया को आगे बढ़ाया। उम्रदराज महिलाएं बरामदे में नीचे ही समूह में एक जगह बैठकर गवनई में व्यस्त थीं। जबकि लड़किया सब दूल्हे के पीछे कुर्सी लगाकर बैठ गईं। उन्हें तो चुहलबाजी और शरारत सूझ रही थी। कनिया वाले रूम के पास दो कुर्सी रखी थीं। हेमा ना आंखों से इशारा किया तो प्रीतम व विक्रम वहीं बैठ गए।
थोड़ी ही देर में विक्रम को लगा कि मुंह में कुछ लभेरा गया। अरे यह तो लड़की की मामी थी हाथ में हल्दी मिलाया दही लिए। प्रीतम तो झटके से खड़ा हो गया था। लेकिन शर्ट के बाजू में लग ही गया।
'का मामी जी, रउरा अकेले काहे बानी? ऊ सभे का करेगी? जे आपको बुढौती में एतना मेहनत करना पड़ रहा है। उनको भेजिए ना।' विक्रम ने रुमाल से बाएं ओर के आंख व गाल को पोछते हुए लड़कियों की तरफ इशारा किया।
तो नई बिआह कर आई पट्टीदारी की सरहज ने चस्की ली, 'जा ए साले खाए के रहल ह त मंगनी ह काहे ना जे दही के नदिये में मुंह लगा देनी ह!'
'अब अइसनो जन कहीं। हमनी के चोरा-नुका के ना खानी स$। प्रेम से ना मिले त बरिआई छिनहु के हाल जाने ली जा।' प्रीतम ने विक्रम का पक्ष लिया।
'कनिया दान के बेरा हो गइल बा। लइकी के बोलाई सभे।' पंडी जी ने आवाज लगाई।
भाग - 14
हई लीं बबुआ, कनिया के आवे से पहिले खाड़ होखे मरदानी पहिन लीं।' हज्जाम ठाकुर ने दूल्हे को धोती सौपते हुए कहा।
उसने पीली धोती को तह लगाकर लपेट रहे हज्जाम की ओर ऐसे देखा मानो वह दूसरे ग्रह से आया प्राणी हो। मन ही मन कहा, अब ये क्या बला है?'
'अरे ये इतना लंबा है। मुझे नहीं आता ये सब पहनना। नहीं पहनूंगा, ऐसे ही ठीक हूं।'
'बबुआ ई मरजाद आ सगुन ह। बिना पहिनले विद्द कइसे पूरा होई? रउआ खड़ा रही हम लपेटे के सीखा देत बानी।'
वह बेचारा चुपचाप खड़ा हो गया। और धोती को लुंगी की तरह लपेट कर फूल पैंट निकाल दिया। लेकिन पीछे मुड़कर देखा तो उसका जुत्ता गायब था।
'अरे मेरा शू क्या हुआ?'
'ऊ त नहीं मिलेगा जीजा जी। अब नेग दीजिएगा तभिये भेटाएगा।' काजल ने अंगूठा दिखाते हुए कहा।
तभी लम्बी घूंघट काढ़े दुल्हन का आगमन हुआ माड़ो में। हेमा उसे लेकर आई थी। दूल्हा मन मानकर वहीं पर बैठ गया।
इधर, प्रीति ने हेमा की ओर देखा तो उसने इशारे से कुछ कहा। वह दुल्हन वाले कमरे में चली गई। हालांकि कमरे में उस वक्त कोई नहीं था लेकिन अंजाने भय से उसका कलेजा धड़कने लगा। कहीं हमारी चोरी पकड़ी गई तो...
माड़ो में वर-वधू के बैठते एक साथ बैठेते ही सभी की नजरें उस तरफ ही तल्लीन हो गई। पंडी जी के मंत्रोच्चारण से लग्नमय दृश्य बन गया। जबकि महिलाएं गीत गाने में विभोर हो चली थीं।
हेमा बेहद होशियारी से दुल्हन वाले कमरे के गेट पर पहरेदार की तरह खड़ी हो गई। कि कोई शक नहीं करे। पास में विक्रम व प्रीतम भी बैठे थे।
'प्रीतम जी आप भीतर जाइए, पांव रंगाई का रस्म होगा।' उसने धीरे से कहा तो वह चुपके से उठकर कमरे के अंदर चला गया।
सीएफएल की दूधिया रौशनी में रेड कलर की लहंगा साड़ी पहने पलंग पर बैठी प्रीति गजब की खूबसूरत दिख रही थी। और थोड़ा Matured भी। लग ही नहीं रहा था का मैट्रिक की छात्रा है। वैसे भी साड़ी में लड़कियां असमय ही उम्र से ज्यादा व गम्भीर दिखने लगती हैं।
हाथ में लिए लक्मे की ग्रे रंग वाला नेल पॉलिश के ढक्कन को खोल रही थी। प्रीतम को देखते ही वह शर्माकर बगल झांकने लगी।
'का हम पसन्द नहीं तुमको जो देखकर मुंह चोरा रही हो?' प्रीतम उसके करीब जाकर पलंग बैठते ही बोला।
'भाक, अइसा बात नहीं है। आपको देखकर करेजा धुकधुकाए लगा। आ मन में गुदगुदी उठ रहा है।'
'तो ई बात है। हमको तो कुछ और ही बुझाया...'
'का बुझाया?'
'अब रहने दो दिल का बात दिले में रहे त आछा है।'
'ठीक है राखिए बात दिल में। आ दाहिना हाथ दीजिए। रंगना है। नहीं तो बतियाए में ही टाइम बीत जाएगा।'
'आ हम नहीं रंगवाएं त का करोगी?' प्रीतम ने भाव बनाया।
'ई आपका मरजी है हम कवन जबरदस्ती थोड़े बोल रहे हैं।' प्रीति ने बनावटी नाराजगी जताई।
इसपर प्रीतम ने उसका बायां हाथ अपनी कलाई में जकड़ लिया। लेकिन यह क्या वह तो कांपने लगी और हाथ भी मानो तवे सा गर्म हो गया।
'अरे, तुम कांप काहे रही हो। हम कवनो भूत हैं का?
'कापेंगे नहीं तो और का होगा। एगो अंजान लड़की दोसरा लड़का के संगे बैठी है। कोई देख ले ई हाल में तो क्या होगा?
'ओहो, तो ई बात है।'
'और का? आप भूत तो नहीं मने जादूगर तो हइए हैं। जादू से हमारा दिल चोरा लिए हैं।'
'इहे बात तो हम तुमको भी कह सकते हैं। अकेले मुझे ही दोषी काहे बना रही हो?'
'उ त हइए हैं। आग त दूनो ओर बराबर लगा है।' प्रीति उसके हाथों का अंगूठा रंगते हुए बोली।
'पिरीति एगो बात बोलें?'
'हां बोलिए।'
'तुम एतना ना सुंदर दिख रही हो कि का बताए। हमको तो सपना में भी नहीं एहसास था कि एतना जल्दी
मुलाकात होगा।'
'सब देवी माई के किरपा है। नवरात्र में हम उनसे भखौती माने थे। देवी माई आपसे मुलाकात करा दे तो खोइछा भरेंगे।'
'चलो, माता रानी ने तुम्हें सुन लिया। आ एही बहाने हम लोग मिल भी लिए।'
'आछा ई बताओ हम तुमको कइसन लग रहे हैं?' प्रीतम ने एक और सवाल छोड़ते हुए बातों का सिलसिला आगे बढ़ाया।
'आप बार-बार ई बात पूछकर हमको शर्मिंदा काहे करते हैं। हम तो पहिलही कह दिए हैं आपसे। आप कइसनो हैं मेरे लिए तो भगवान है, जो मेरे में दिल में बस गए हैं।' प्रीति ने उसकी दसवीं अंगुली को रंगते हुए कहा।
'ओह, तो एतना विश्वास करती हो हम पर कि भगवाने बना ली हो। आ मैं ई बात पर खरा नहीं उतरा और तुमको छोड़ दिया तो..?'
'करेंगे का, एक चिटकी जहर खाकर परान दे देंगे। आउर का।'
'राम-राम, शुभ-शुभ बोलो। मैं तो मजाक कर रहा था।'
'लेकिन हमको मजाक में भी छोड़े-छाड़े आला बात तनिको पसन्द नहीं है। आगे ई सब
मत बोलिएगा। हम तो तय कर लिए जिएंगे तो आपके लिए और मरेंगे भी..।
आगे जारी...
(नोट- ©® भदेस (भोजपुरी+हिन्दी) भाषा में लिखी मेरी लम्बी काल्पनिक प्रेम कहानी पिरीति आ पिरितम के Love स्टोरी' टुकड़े-टुकड़े में आगे भी जारी है। शेष भाग पढ़ने के लिए आप पोस्ट के हैश टैग या मेरे ब्लॉग www.meghvani.blogspot.in पर क्लिक कर सकते हैं। बिना रचनाकार का नाम लिए इसका कॉपी-पेस्ट कर शेयर करना निंदनीय अपराध होगा।)
(सोशल साइट्स से जुड़ी लाखों की भीड़ में पढ़ने वाले कम और लिखने वाले ज्यादा हैं। लेकिन चीज अच्छी हो तो जरूर पसंद की जाती है। भदेस भाषा में लिखी मेरी लंबी प्रेम कहानी 'बुरबक बिहारी' टुकड़े-टुकड़े में आगे भी जारी...)
आगे जारी...
(नोट- ©® भदेस (भोजपुरी+हिन्दी) भाषा में लिखी मेरी लम्बी काल्पनिक प्रेम कहानी पिरीति आ पिरितम के Love स्टोरी' टुकड़े-टुकड़े में आगे भी जारी है। शेष भाग पढ़ने के लिए आप पोस्ट के हैश टैग या मेरे ब्लॉग www.meghvani.blogspot.in पर क्लिक कर सकते हैं। बिना रचनाकार का नाम लिए इसका कॉपी-पेस्ट कर शेयर करना निंदनीय अपराध होगा।)
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