सबसे अच्छा कंटेंट अभी बाकी है, आते रहिएगा

17 January, 2013

रूकती सांसे सांसें... थमते नब्ज... और झूठा दिलासा

जिंदगी तो बेवफा है... एक दिन ठुकराएगी, मौत दिलरूबा है यारों संग लेके जाएगी...! मौत यानी जिंदगी का सबसे भयावह क्षण. खासकर अल्प आयु में किसी अपने के जाने की कल्पना से ही लोग सिहर जाते हैं. इसकी संवेदना व गहराई वही समझ सकता है, जिसके सामने उसका करीबी या परिजन गुजरा हो.

...और जिसने इस नाजुक पल को जिया हो. क्या...ह्रदय विदारक दृश्य होता है वह! जब जिंदगी से जद्दोजहद कर रहा कोई अपना घड़ी दर घड़ी मौत के आगोश में जाने को बेताब हो.

अधखुले मुंह... रूकती साँसे...थमते नब्ज...शून्य में पथराई आँखें. जिंदगी है कि साथ नहीं छोड़ना चाहती. और मौत साथ ले जाने को बेताब. समीप बैठे परिजनों का दिल भी अनहोनी की आशंका से बैठा जाता है. आशा-निराशा के जबरदस्त उधेड़बुन में फंसे सभी एक-दूसरे को देते कोरी संतावना.

इस बेबसी व लाचारी के बीच एक झूठा दिलासा भी कि...कुछ नहीं हुआ है. सब ठीक हो जाएगा. फिर इसी रस्साकशी में आत्मा शरीर का साथ छोड़ जाती है. मचती है ख़ामोशी को चीरती अपनों की चीख-पुकार. कुछ दिल से रोते हुए व कुछ समाज को दिखाने के लिए. कुछ न चाहते हुए भी गमगीन माहौल की वजह से आंसू ढलका ही देते है. क्योंकि यह सनातनी परम्परा है. 

No comments: