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17 July, 2014

N.H. 28 की वो मिडनाइट हसीनाएं और मेरा सफर

ये लड़की सुनो, साहब के साथ जाएगी क्या? उस सुनसान अंधेरी रात में सड़क के किनारे अचानक से एक आभासी छाया को देख ड्राइवर ने गाड़ी धीमी कर दी. और यही शब्द उसकी ओर देखते हुए उसने कहा था. हालांकि उस घुप अंधियारे में कुछ सूझ तो नहीं रहा था. कुछ देर के अंतराल पर गाडियां आतीं भी तो तेज रफ्तार में, जो सेकेंडों में आंखों से ओझल हो जातीं. मैंने गौर फरमाया कि वह जींस, टी शर्ट के लिबास में कोई युवती थी. जिसने काले दुपट्टे से मुंह ढक रखा था. ड्राइवर की आवाज सुनते ही थोड़ा बगल में हटके उसने विपरीत दिशा में मुंह कर ली. तभी हाथ में टार्च लिए एक नाटा सा मोटा आदमी हमारे करीब आया.
मॉडल फोटो 
उसने ड्राइवर को पहचानते ही कहा, का भैया, रोजी रोटी का समय है. और आप मसखरी कर रहे हैं. अरे ना हो. मजाक नहीं कर रहे हैं. ये पत्रकार साहब है इनको टंच माल चाहिए. बोले क्या रेट लोगे? ड्राइवर की बात सुनते ही वह आदमी थोड़ा अकबका गया. फिर सामान्य होकर कहा, गाड़ी में ही या होटल में जाना है. उसने कहा, दोनों का रेट बताओ. गाड़ी के पांच सौ और होटल में हजार रूपए, वह भी एक घंटे के लिए. ड्राइवर कुछ जवाब देता इसके पहले मैंने उसे चिकोटी काटते हुए फुसफुसाया, ये कहां फंसा दिए यार! चलो यहां से. तो उसने झटके से गाड़ी तेज कर दी. 

दरअसल पिछले दिनों एक काम को लेकर पटना जाना हुआ था. लौटने में रात हो गई. मुजफ्फरपुर तक बस से आया उस वक्त 12 बज रहे थे. पता चला यह बस मोतिहारी के लिए भोर में खुलेगी. मैं नीचे उतर टहलने लगा कि एक सज्जन ने बताया. भोर तक काहे इंतजार कीजिएगा, बैरिया गोलंबर चले जाइए. वहीँ से अखबार ढोने वाली कोई गाड़ी मिल जाएगी. मैं गोलंबर पहुंचा ही था कि एक पिक अप वाला मोतिहारी मोतिहारी चिल्ला रहा था. मैंने देखा गाड़ी के पिछले सीट पर अखबार का बंडल रखा हुआ था. सो थोड़ा सा असमंजस में पूछा, भाई बैठना कहां होगा. उसने कहा कि आगे की सीट पर मेरे बाजू में. मैं ने अपनी जगह पकड़ ली तो मेरे बैठेते ही उसने हवा की गति से गाड़ी तेज कर दी.

थोड़ी ही देर में चिकनी सपाट एनएच पर गाड़ी सरपट भागने लगी. शहर पीछे छूट गया. खेत खलिहान के साए में बहुत दूर दूर पर थोड़ी रौशनी नजर आ जाती. अपनी वाचाल आदत के कारण मैं समूह में चुप नहीं रह सकता, ना ही यात्रा के दौरान नींद ही आती है. क्योंकि बोरियत महसूस होती है. सो टाइम पास के इरादे से ड्राइवर से उसका नाम, पता व पढ़ाई के बारे में पूछा. उसने कोई तिवारी करके नाम बताया. बोला, यहीं पास के गांव का रहने वाला हूं. आठवीं तक पढ़ा हूं. घर पर पत्नी व मां हैं, दो बच्चे भी. 

और आप?, उसने मेरी तरफ देखते कहा. मोतिहारी के एक छोटे से गांव से हूं. वही पर रहकर पत्रकारिता करता हूं. मेरा जवाब सुनकर उसने कहा, आप पत्रकार लोग तो खूबे पैसा कमाते हैं. नाम भी रहता है. मेरे भी एक चचेरे भाई भोपाल में पत्रकार हैं. घर से गए तो कुछो नहीं था उनके पास. लेकिन अब सुनता हूं वहीँ पर जमीन खरीद मकान बना लिए हैं. मिनिस्टर लोग के पास उठते बैठते हैं. उसकी बात को बीच में ही काटते हुए मैं बोला, नहीं, यार. मैं तो शौकिया ये काम करता हूं. और जीविका के लिए मेरा पेशा दूसरा है. ये सब चल ही रहा था कि उपर वाला वाकया हो गया. मोतीपुर के आस पास कोई जगह थी वह. जहां बगल में ही लाइन होटल था.

घड़ी देखी, रात के डेढ़ बज रहे थे. मैंने आश्चर्य भरी नजरों से तिवारी को ओर देखते हुए कहा, क्या माजरा है ये? इतनी रात को कहीं भी गाड़ी रोक देते हो, डर नहीं लगता. आए दिन अखबार में पढ़ते रहता हूं. एनएच पर ड्राइवर की हत्या कर गाड़ी की लूट. तो उसने छूटते ही कहा, आप भी कइसन बात करते है. डर काहे और किससे लगेगा. हम भी इसी माटी के जीव हैं. दस बरिस से चला रहे हैं गाड़ी इस रूट में. है किसी को मजाल की हाथ भी दे दे. वइसे भी आपको हम कवनो शरीफ बुझाते हैं. अपने जमाना में एक नंबर के लफुआ थे. समझ लीजिए कि सूरजभान सिंह, राजन तिवारी आ मुन्ना शुक्ला पाकिटे में था सब. ई कहिए कि घरवाला सब बियाह कर दिया. आ पत्नी ने हमको कसम लगा दिया. जे इस लाइन में आना पड़ा. मैंने भांप लिया कि तिवारी कुछ ज्यादा ही फेंक रहा है. वैसे भी कम पढ़े लिखे लोग गजब के मौलिक, आत्मविश्वासी होते हैं और व्यवहारिक भी. लेकिन पढ़े लिखे कथित सभ्य जनों की तरह अपनी हर जायज नाजायज भावनाओं को चतुराई से छुपाने की कला में माहिर नहीं होते.


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मैंने बातों को यू टर्न देते हुए पूछा, कौन थे वे लोग? रंडी थी साहब, बंगाल की. आर्केस्ट्रा का सीजन खत्म हो गया है. अब रात में यही सब करके कमाती हैं, छिनाल..! अच्छा ये बात है, मैंने हामी भरी. वो तो सड़क पर खड़ी शो पीस थी साहब. खजाना तो अंदर होटल में मिल जाएगा. जैसा चाहिए वैसा आइटम. इसी दौरान तिवारी ने जानकारी दी कि गोपालगंज से लेकर मुजफ्फरपुर तक ऐसे दर्जनों लाइन होटल हैं. जहां रात में धड़ल्ले से जिस्म का कारोबार होता है. उसने बताया, पहले इस धंधे में केवल वैसी महिलाएं रहती थीं. जो गरीब व लाचार विधवा थीं. जिसका पति शराबी या बाहर कमाने चला गया हो. इनके सबसे बड़े ग्राहक होते थे, ट्रक ड्राइवर. लेकिन जब से ये बंगाली लडकियां आईं इनकी पूछ घट गई. अब तो कम उम्र की देहाती लड़कियां भी इस पेशे में लाई जा रही हैं. और इनके रईसजादे कद्रदान भी बढ़े हैं. आखिरकार उम्दा रहन सहन, महंगे दाम के मोबाइल और फैशनदार कपड़े की चाहत जो ना करवाए.
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मैंने चुस्की लेते कहा, इसका मतलब तुमने भी उनकी सेवा ली है. वह तुनकते बोला, का भईया, हम आपको अइसने आदमी लगते है. दिन भर शहर में गाड़ी चलाना. और रात में अखबार ढोने की ड्यूटी से मिजाज थक जाता है. इसलिए रास्ते में इनसे ठिठोली कर जी बहला लेता हूं. मैंने पूछा, तो हाईवे पुलिस गश्ती में क्या करती है. उसने कहा, सर पुलिस ही तो सब करवा रही है. वे चाह दें तो एक दिन में खेला बंद हो जाएगा. बातें करते करते हम अपने शहर की सीमा में कब प्रवेश कर गए, पता ही न चला. और भी बातें होतीं लेकिन हमारी मंजिल आ गई. मैंने मोतिहारी में उतर उससे विदा ली. और मन ही मन सोचते हुए चल दिया कि बचपन में मां अक्सर कहां करती थीं, 'राति के लईकन के अकेले सड़क प न घूमे के चाही. काहे कि ओही बेरा ‘निशाचर’ घूमेले सन जवन पकड़ के भाग जाले सन.' तो... इस लिहाज से आधुनिक जमाने में ये हाईवे गर्ल भी एक प्रकार की ‘निशाचर’ ही हुई. जिनके शिकार केवल 'बड़े' होते हैं. है कि नहीं.

उतर बिहार में तेजी से बढ़ रहे एचआईवी पीड़ित

पल भर का मजा और जीवन भर की सजा. हजारों ट्रक ड्राइवर पर आज यहीं पंक्ति सटीक साबित हो रही है. मुजफ्फरपुर समेत 12 जिलों में एचआईवी पॉजीटिव तेजी से बढ़ रहे हैं. नाको (नेशनल एड्स कंट्रोल ऑर्गेनाइजेशन) की जानकारी के बाद यह सच सामने आया है. मुजफ्फरपुर, मोतिहारी, वैशाली, सीतामढ़ी, बेगूसराय, पटना, सारण, मधुबनी, दरभंगा, गोपालगंज, सीवान में एड्स पीड़ित तेजी से बढ़े हैं. नाको ने सभी को हाई रिस्क जोन के रूप में घोषित किया है. दूसरी ओर सूबे में पिछले दो साल से 65 हजार एचआईवी पीड़ितों का इलाज चल रहा है. दस हजार से अधिक एआरटी दवा पर हैं, जिनकी कभी भी मौत हो सकती है. जानकार बताते हैं कि कुल एचआईवी पीड़ितों में 90 प्रतिशत को यह बिमारी असुरक्षित यौन संबंधों से हुई है. इनमें 60 प्रतिशत पीड़ित ट्रक ड्राइवर हैं. इनमें अधिकांश को यह बीमारी प्रवास के दौरान रेड लाइट एरिया में या फिर हाईवे पर असुरक्षित सेक्स के दौरान हुई है. एचआईवी पीड़ित घर में भी पत्नी से यौन संबंध स्थापित कर उन्हें बीमारी की सौगात दे देते हैं.

13 July, 2014

अरेराज : देखो बबुआ, ई है सोमेश्वर धाम!

जाने वह कौन सी घड़ी और... क्या खासियत लगी होगी इस जगह में. जब देवों के देव महादेव ने यहां बसने का फैसला किया होगा. आज दुनिया इसे अरेराज के सोमेश्वर धाम के नाम से जानती है. जहां सालों भर बोल बम के जयकारे से आस्था की बूंदें छलकते रहती हैं. पड़ोसी होने के कारण बचपन से ही यहां आना जाना लगा रहता है. वो जमाना भी कुछ और ही था. जब उन दिनों मां, भाइयों, पट्टीदारी की बहनें, भौजाइयों, चाचियों, दादियों के संग वर्ष में एक दो बार यहां घूम ही आता था. बहाने कई होते थे, शादी के बाद किसी का माथ लगाना हो, मां या दादी की भखौती में खोइच भरना, किसी बच्चे के छठियार में बाल कटाना या मुंडन कराना, या फिर नए वाहन की पूजा कराना हो. लेकिन मेरे जैसे हमउम्र बच्चों के लिए इन सब बातों से इतर ज्यादा उत्साह मेला देखने को लेकर था. हमारे लिए अरेराज का मेला जाने का मतलब मौज मस्ती, सैर सपाटे से था. जिस दिन मेला जाना रहता उससे पहली वाली रात को नींद ही नहीं आती. करवटें बदलते रहते कि कितनी जल्दी भोर हो जाए.


ट्रॉली की सवारी, धर्मशाले का भोज और अतीत की यादें 



अहले सूबह ही मां पूड़ी, आलूदम की सब्जी और सेवईयां बना कर तसला में रख देतीं. मेला देखने के बाद वहां ठहरे धर्मशाले में इसे ही सब मिल बांट कर खाते. यानी धर्मशाला गेट टू गेदर का मुफीद स्पॉट था. जाने के दिन सवारी के लिए ट्रॉली को सजाया जाता. धचका ना लगे इसलिए उसपर पुआल रख गद्देदार बनाया जाता. धूप व धूल से बचाव के लिए ऊपर से बांस की फट्टियों के सहारे मंडप बना प्लास्टिक का तिरपाल फेंक दिया जाता. फिर ट्रैक्टर से ट्रॉली को जोड़ा जाता. इसी पर सभी बैठ हिलते डुलते, सरेह को निहारते, गपियाते हुए ठहाका लगाते अरेराज पहुंच जाते. बचपन की खो चुकी स्मृतियों में बहुत कुछ तो याद नहीं.

लेकिन वहां की पुरानी धर्मशाला, खुले नल से अनवरत बहते पानी से जमा कीचड़, फूल, बेलपत्र, अक्षत... पूजन सामग्री बेचते व हाथ में थाली लिए पंडे. मंदिर परिसर में मृदंग की थाप पर अजीबो गरीब समीजनुमा लिबास में नाचते गाते नेटुए, खुरदक बाजा के साथ शहनाई की गूंज, मंदिर की ओर जाने वाली चार पांच पतली गलियां, जिनमें श्रृंगार प्रसाधन, लाइचीदाना, लाल धग्गी, माला, चुनरी, लाई घुघुनी, पकौड़ी की दूकानें सजी होने के कारण मुश्किल से एक-दो आदमी के निकलने का रास्ता बचता था. अभी तक याद है. इन्हीं गलियों में मैंने लालमुनी चिरई (जिसके चोंच व कागज के छोटे पंख तो होते लाल थे. लेकिन मिट्टी का पूरा बदन काला. अभी तक समझ नहीं पाया इसका नाम लालमुनी क्यों पड़ा?) नरकट की रंगी बिरंगी पुपुही, पलास्टिक गन, रील से हीरो हीरोइन का फोटो देखने के लिए मिनी लेंस वाला बाइस्कोप, लट्टू जैसे खिलौने कई बार खरीदे थे.

मंदिर परिसर में  नाचकर बाबा को खुश करता लोक नर्तक नेटुआ
समय के साथ बदलाव तो है लेकिन खटकती है कुव्यवस्था 

ऐसे में जबकि सावन महीने की शुरूआत है. माना जाता है कि इन दिनों जल ढारने वाले भक्तों पर बाबा की विशेष कृपा बरसती है. खासकर सोमवार या शुक्रवार को. इस बार मेरा भी अरेराज जाना हुआ, एक पत्रकार के नजरिए से स्थिति का जायजा लेने. जब उत्सुक नजरों ने पड़ताल की तो कई सारी चीजें बदली नजर आईं अपनी पुरानी जड़ों के साथ. लेकिन गुजरे अस्तित्व के साथ नयापन का घालमेल जाने क्यों मुझे रास नहीं आया. हालांकि चप्पे चप्पे पर पुलिस की सुरक्षा, मंदिर के मुख्य प्रवेश स्थल पर पर लगा बड़ा सा आयरन गेट, रौशनी के लिए लगे मॉस्क लाइट, भीतर में लगा सीसीटीवी कैमरा और मार्बल के फर्श ने सुखद एहसास भी कराया. तो बाहर में बारिश से किचाहिन टूटी फूटी सड़क, खंडहर होती धर्मशाला, पिछवाड़े स्थित तालाब में पसरी गंदगी, कूड़े कचरे के ढेर पर लोटते सूअर ने बीती यादें ताजा कर दी. ताज्जुब की बात ये है कि लोग आते हैं. कुव्यवस्था को जम कर कोसते हैं. और कीचड़ की सड़ांध से फैली बदबू के कारण नाक पर रुमाल रख निकल भी जाते हैं. 


मंदिर के पिछवाड़े में पसरी गंदगी
ऐतिहासिक पार्वती तालाब का पक्कीकरण हुआ है. लेकिन उसका गंदा जल आने वाले को मुंह चिढ़ाते नजर आता है. एक श्रद्धालु मुकेश कुमार बताते हैं कि लापरवाही इतनी है कि मंदिर के गर्भ गृह में भी अजीब तरह की दुर्गन्ध आती है. इसलिए कि सफाई का रूटीन सही नहीं है. व्यवसायी नरेश ठाकुर कहते हैं कि ई गोविंदगंज है साहेब, उसमे भी अरेराज धाम. इहां कुछो नहीं होने वाला. जमाने से चलता आ रहा है सब, अइसही चलते रहेगा. वहीँ मंदिर परिसर में पूजा की थाल लिए पंडे आपकी बिना मर्जी के कब लाल रंग का टीका-तिलक लगा दक्षिणा के लिए हाथ खड़े कर दे. कहना मुश्किल है. इससे भी बाहर से आए पर्यटकों को काफी कोफ़्त महसूस होती है. यह सब देखने के बाद कचोटते मन से यह सोचने को भी विवश हुआ कि ऐतिहासिक पर्यटन स्थलों के प्रति इतनी संवेदनहीनता या उदासीनता क्यों है.


ऐतिहासिक पार्वती तालाब औए शिव पार्वती मंदिर
कहते हैं ट्रस्ट के सचिव

सोमेश्वरनाथ मंदिर धार्मिक न्यास बोर्ड, पटना के अधीन है. इसके सचिव मदनमोहन नाथ तिवारी ने बताया कि ट्रस्ट की आय से मंदिर के विकास का पूरा प्रयास किया जा रहा है. जो कि दिख भी रहा है. पुरानी धर्मशाला जर्जर हालात में अतिक्रमण का शिकार है. हालांकि नई धर्मशाला भी बनकर तैयार है. बस उद्घाटन की प्रतीक्षा में है. पूर्व केंद्रीय मंत्री डॉ. अखिलेश प्रसाद सिंह के सौजन्य से मंदिर में संगमरमर और मास्क लाइट लगाए गए हैं. उन्होंने बताया कि मंदिर के बाहर मूलभूत सुविधाएं दुरुस्त करने की जिम्मेवारी सरकार की है. गौरतलब है कि 12 जुलाई को डीएम अभय कुमार सिंह ने सावन पूजा की तैयारी को लेकर अरेराज का दौरा किया. उन्होंने मंदिर की ओर जाने वाली मुख्य सड़क के रिपेयर के लिए सहायता देने की बात कही.

ब्राह्मण नहीं लेते चढ़ावा पर गोस्वामी...

एक अनुमान के मुताबिक बिहार, झारखंड, उतर प्रदेश, नेपाल के कोने कोने से यहां हर वर्ष लाखों श्रद्धालु आते हैं. ट्रस्ट को इस वर्ष दान के तौर पर करीब पचास लाख रूपए मिले हैं. सोमेश्वर नाथ मंदिर में चढ़ावे की राशि पर गिरी समुदाय का हक है. जिन्हें स्थानीय लोग गोस्वामी भी कहते हैं. हालांकि ट्रस्ट बनने के बाद मंदिर से होने वाली आय उसी के खाते में जाती है. मंदिर में एक महंथ रखने की भी परंपरा है, जो कि इसी समुदाय से बनते हैं. ब्राह्मण मंदिर का दान नहीं लेते. पंडित प्रेमचंद पांडे बताते हैं कि शास्त्र में लिखा है, सब अंश ग्राह्य है शिव अंश नहीं. इस नियम का पालन नहीं करने वाला पाप का भागी बनता है. मतलब भोले बाबा का चढ़ावा दूसरे वर्ग को लेने की मनाही है.


बाबा के दर्शन के लिए महिलाओं की लगी कतार
लकमा पाउडर से लेकर फेम एंड लवली का फंडा

मेला में सबसे आकर्षण के केंद्र होते हैं गलियों में लगी रेहड़ी दूकानें. इनमें मेक अप के पहले से लेकर तीसरे दर्जे तक के कॉस्मेटिक्स आयटम्स फेम एंड लवली (फेयर एंड लवली), विमो (विको), बोरो पाल्म (बोरो प्लस), लकमा (लक्मे) पाउडर, पैरासोना (पैराशूट) नारियल तेल, चाइनीज खिलौने, इनर वियर ब्रा, पैंटी, आर्टिफिशियल गहनें अंगूठी, गोल्डन व सिल्वर चेन, चूड़ी, लहठी आदि चीजें बिकने के लिए सजी रहती हैं. जिसके खरीदारों में महिलाओं व बच्चों की भीड़ लगी रहती है. भले ही शहरों में लोग रोजमर्रे की चीजें खरीदते वक्त ब्रांड व कीमत की तुलना करते हों. लेकिन ग्रामीण खरीदारों में नए के बजाए पुराने ब्रांड का ही क्रेज है..

वजह, देहाती कस्बों में अभी भी नाम ही बिकता है. चाहे ब्रांड के नाम पर कोई नकली माल ही क्यों ना थमा दे. इसका आसान शिकार होती हैं ग्रामीण महिलाएं. ऐसे ही एक दूकान पर बूढ़ी महिला ने फेयर एंड लवली क्रीम मांगा. तो दुकानदार ने चट से फेम एंड लवली थमा दिया. मैं नाम पढ़कर चौंका. महिला से पूछा, माई, ई क्रीमवा केकरा खाति किनले बानी. वे बोलीं, बबुआ, आवत रहनी ह त हमर पतोह कहली कि अम्मा जी मेला से फेयर लबली लेले आइल जाई. इससे पहले कि क्रीम के नाम के बाबत और कुछ और पूछता. उस दुकानदार ने सच्चाई भांप मुझे खा जाने वाली नजरों से घूरा. मानो पूछ रहा हो कि धंधे का टाइम क्यों खोटा कर रहे हो भाई. और मैंने वहां से रुखसत होने में ही अपनी भलाई समझी.
पवित्र पंचमुखी शिव लिंग

इतिहास के आईने में अरेराज

वर्ष 00 में बिहार का झारखंड से अलग होने के बाद धार्मिक पर्यटन के लिहाज से सोमेश्वर धाम की लोकप्रियता और भी बढ़ गई. मोतिहारी से 30 किलोमीटर दक्षिण पश्चिम में तिलावे मन के समीप स्थित बाबा भोले की यह छोटी से नगरी, अनुमंडल मुख्यालय भी है. यहां से छह किलोमीटर दक्षिण में नारायणी नदी बहती है. अभी बिहार में तीन शिव धाम प्रसिद्ध हैं. जिनमें अरेराज का स्थान सबसे उपर है. इसके बाद मुजफ्फरपुर के गरीब नाथ व बक्सर, ब्रह्पुर के शंकर मंदिर आते हैं. माना जाता है कि सोमेश्वरनाथ एक कामनापरक पंचमुखी शिवलिंग हैं. जिसपर सावन महीने में कमल का फूल व गंगा जल चढ़ाने से सारी मनोकामना पूरी होती हैं.

पुराणों में भी है जिक्र


तिलावे मन के किनारे  से सोमेश्वरनाथ मंदिर का दृश्य
मंदिर का जिक्र स्कंद, पदम व बाराह पुराण में भी है. त्रेता युग में अपनी पत्नी सीता के साथ विवाह कर जनकपुर से अयोध्या लौटने के क्रम भगवान राम ने यहां पूजा की थी. इसी कारण, हर वर्ष जनकपुर में अगहन पंचमी को आयोजित होने वाले राम विवाह में अयोध्यवाशी भाग लेते हैं. और लौटते वक्त अरेराज मंदिर में जल जरूर चढ़ाते हैं. वर्ष 1983 में प्रसिद्ध साहित्यकार सच्चितानंद वात्स्यायन (अज्ञेय) व शंकर दयाल सिंह की खोजी टीम आई थी. उन्होंने भी इस तथ्य की पुष्टि की. रोटक व्रत कथा के मुताबिक, द्वापर में अज्ञातवास के दौरान राजा युधिष्ठिर ने अपने भाइयों व पत्नी द्रौपदी के साथ यहां पूजा की थी.

जबकि उगम पांडे कॉलेज, मोतिहारी में प्राचीन इतिहास व कला संस्कृति के विभागाध्यक्ष प्रदीपनाथ तिवारी बताते हैं, वर्ष 1816 ई. में भारत व नेपाल के बीच सुगौली में संधि हुई. पहले इस जगह का नाम संगौली था. और यहां से लेकर सिवान, हाजीपुर तक का क्षेत्र नेपाल में आता था. इसका लिखित इतिहास करीब एक हजार वर्ष पुराना है. इसके मुताबिक वर्ष 1000 ई. में इधर आर्य आए. तब इसे अरण्यराज के नाम से जाना जाता था. यहां से नेपाल के तराई क्षेत्रों तक जंगल ही जंगल था. श्री तिवारी बताते हैं कि मंदिर के संबंध में आधुनिक इतिहास उपलब्ध नहीं है. साक्ष्य के लिए इतिहासकारों को भी पुराणों पर ही निर्भर रहना पड़ता है.