बीती जाला लड़िकाई हंसी खेल में
बिना मेहरिया जवानी जाल ना ह$
बुझाला बादे जब चढ़ेला मउर माथे
हर घड़ी गोटी एकर लाल ना ह$
जिनगी के आधार ह$ गृहस्थी
बस नून तेल चाउर दाल ना ह$
दादा के भरोसे अदौरी भात
हरदम मिले ऊ थाल ना ह$
भूखे पेट कबो सहेके पड़ेला
एक निहर समय के चाल ना ह$
जिनगी के आधार ह गृहस्थी
बस नून तेल चाउर दाल ना ह$
बुझेली चिलम जेहि प चढ़ेला अंगार
खलिहा बजावे वाला गाल ना ह$
सुर ताल मातरा सीखेके पड़ेला
संगत पुगावे भर झाल ना ह$
जिनगी के आधार ह गृहस्थी
बस नून तेल चाउर दाल ना ह$
मुड़ी के पसेना एड़ी ले चुएला
खटाके मुआवे मने काल ना ह$
केतनो कमइब$ गरज पूरा होई
दोसरा प लुटावे वाला माल न ह$
जिनगी के आधार ह गृहस्थी
बस नून तेल चाउर दाल ना ह$
चूल्हि में जोराके तपेके पड़ेला
दूध में जामल कवनो छाल ना ह$
बितेला जुग त बरियार होला रिस्ता
दिन महीना घटे वाला साल ना ह$
जिनगी के आधार ह गृहस्थी
बस नून तेल चाउर दाल ना ह$
©श्रीकांत सौरभ, पूर्वी चंपारण
1 comment:
यथार्थपरक रचना।
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