डियर पिरिति,
हैपी न्यू ईयर। आज 31 दिसम्बर है। नया साल 20 से ठीक एक दिन पहले सन्देश भेज रहा हूं। तोहरा व्हाट्सअप पर। मामा जी का लावा मोबाइल घर पर छूट गया था। उसी में आइडिया का सिम लगाकर 50 का 4G नेट पैक डाला हूं, चार किलो गेहूं बेंचकर। हमें मैसेज भेजने का मूड नहीं था। बुझते हैं, तुमको आछा नहीं लगेगा। मने लिखना चालू किए त तनी जादा लिख दिए। रिक्वेस्ट है, पूरा पढ़े के बाद ही डिलीट करना, एक सांस में नहीं त थोड़ा-थोड़ा करके। सरसती माई के किरिया है।
इयाद करो, ठीक दू बरिस पहिले बाजारी पर मुन्ना सर के कोचिंग में हमलोग मिले थे। मैटिक परीक्षा के तैयारी के लिए नया-नया एडमिशन हुआ था। का बताए इहवां नाम लिखावे खातिर केतना पापड़ बेले थे। गांव के चऊक पर ढेर टिशन चलता है। पापा का कहना था, यहीं पढ़ो। बाजार पर जाएगा त बिगड़ जाएगा। एही से भेजने से हरकते थे। मंटू सर हाई स्कूल में साइंस के नामी टीचर थे। लेकिन इस नाम का प्रयोग स्कूल के पढ़ाई से जादा मेहनत अपना कोचिंग चमकाने में करते थे।
तीन कोस के एरिया में जेतना भी मैटिक का छात्र था। सबको यहीं विश्वास था कि उनके कोचिंग में एक बार जेकर नाम लिखा गया। उसका पास होना तय है, मैटिक, आईए, आईआईटी, पोलटेक्निक फलाना-ढिकाना परीक्षा। बेतिया के 'अहमद भाई दवा वाले' जइसन चरचा था। जेकरा परचार गाड़ी में रखल एके गो दवाई में दाद, खाज-खुजली, बवासीर, भगन्दर, हारनिया आदि केतना बेमारी का इलाज हो जाता है।
'सर' बहुते चालक किसिम के आदमी ठहरे। कोई कुछ पूछता-टोकता त जवाब देते, का करे एगो त कुछ हजार के महीना पर नियोजित शिक्षक हैं। सरकार कहती है कि चपरासी हमारा स्टाफ है, मने नियोजित शिक्षक नहीं। ओपर से वेतन छव-छव महीना पर मिलता है। अपने घर से दू जिला टपके एतना दूर आकर भाड़ा के मकान में रहते हैं। एतना कमरतोड़ महंगाई में खरचा कइसे चलेगा। बीवी, बच्चा, परिवार के गुजारा चलावे खातिर कुछ न कुछ त करना होगा।
हम और कुछ दोस्त सेटिंग किए सर से। वे जाकर पापा को अइसन ना पट्टी पढ़ाए कि परमिशन मिल गया पढ़ने के लिए। वहां जाने पर पता चला कि सर के कोचिंग के हिट होखे का राज का है। एगो छोटा हॉल में 25 गो बेंच आ एक बैच में 100 विद्यार्थी। अगिला पांच बरेंच लड़की सब के लिए रिजर्व। सर तो पढ़ाते बहुते आछा थे। मैथ, केमेस्ट्री, फिजिक्स तीनु विषय पर बराबर पकड़ था। उनकर बोली, एतना महीन कि का मजाल छठा बरेंच से आगे किसी को कुछो सुना जाए।
बोर्ड पर लिखते त सब कॉपी पर एकदम रचकर लिख लेते। समझ में आए चाहे नहीं। ऊ खुदे कहते थे, साइंस त समझे आला चीज है रटे आला थोड़े। क्लास के बाद नोट्स के फोटो कॉपी लेवे खातिर अइसन हल्ला मचता। जइसे तकिया के नीचे रखकर कोई सुत भी जाएगा त फर्स्ट डिवीजन मिल जाएगा एक्जाम में। रहीं बात हमारी तो एक बरिस में गिनती के 30-40 क्लास अटेंड किए होंगे। एतना दिन में किताब का एको चैप्टर माथा में नहीं घुसा। मने भीड़ जुटावे खातिर लड़की सबको अगिला बरेंच पर बैठाने का राज हमको जरूर बुझा गया।
अरे हम भी केतना बुरबक हैं। कहना था क्या और क्या लिखने लगे। इयाद आया, वह जनवरी का हाड़ कंपकपाता ठंडा का महीना था। जब कोचिंग में नाम लिखवाया। पहला क्लास और सबसे पछिला बरेंच पर बैठा था। तभी 'मे आई कम इन सर' के कोयल जइसन आवाज से पूरा क्लास में गरदा उड़ गया। सभे केहु का धेयान गेट पर चला गया। बॉडी पर करिया सुइटर, ब्लू जीन्स, गला में गुलाबी दुपट्टा, खुलल केस। अब का बताए, तोहरा के देखते ही हमरा जइसन केतना लइका का करेजा धुक-धुकाने लगा।
हम त पहिला नजर में ही तुमको दिल दे दिए। तुम्हारे रूप जाल में अइसे फंसे कि कब तुम्हारा पीछा करे लगे। पता नहीं चला। सवेरे सात बजे क्लास था आ हम पांच बजे घरे से साइकिल से निकल जाते। मेन रोड में बेखबरा चेवर के पास एकदम सुनसान रहता। वहीं से तुम्हारे पीछे लग जाता। केतना बार साइड लेवे के हड़बड़ी में ट्रक के नीचे आने से बचे थे।
फिर भी तुमसे पहले कोचिंग के गेट पर हाजिर रहता। जब तुम क्लास में 'इन' कर जाती तो मैं प्रवेश करता। क्लास खत्म होखे से पहिले भी गेट पर खड़ा रखता। लेकिन तुम हमारे तरफ ताकती नहीं थी। शायद ऐसा करने की नाटक करती होती थी।
तुम्हारे पास मोबाइल नहीं था। केतना बार कागज पर अपना नम्बर लिखकर रास्ते में गिराए थे। तुमने एक बार भी उसे उठाना मुनासिब नहीं समझा। गांव के नाते लगने वाली मुन्नी फुआ और तुम्हारी सखी से भी केतना बार तुम्हारे किताब में चिट्ठी रखवाए। कोई जवाब नहीं मिला। भगवान जाने कवन माटी से तुमको बनाए हैं। तुम्हारे फेरा में एक बरिस कइसे बीत गया, कुछो नहीं बुझाया।
बोर्ड का एक्जाम हुआ। तुम फर्स्ट डिवीजन से पास कर गई। और हम मैथ में कम आए तीन नम्बर से थर्ड डिवीजन लाते-लाते रह गए। पापा जी त एतना न फायर हुए रिजल्ट देखकर कि उनकर पुरनका संडक चप्पल हम्मर देहे पर टूट गया। केतना हंगामा मचा था घर में। पढ़ाई छोड़ावे के मूड में थे पापा। लेकिन मम्मी के रात-दिन निहोरा कइला के बाद मान गए।
इसके बाद तुम बेतिया चली गई आईएससी की तैयारी के लिए। और मैं रह गया गांव पर। तबहु फुआ से तोहर खबर लेते रहा। उसी से मालूम हुआ कि तुमको एंड्राइड सेट मिला है जियो वाला, घरे बतियाने के लिए। तोहार मोबाइल नम्बर भी मिल गया। कहीं रिजेक्ट नहीं कर दो इस डर से तुमसे बतियाने की हिम्मत नहीं हुई।
तुम अबकी साल में दो बार आई अपने घर। होली आ छठ पूजा में। होली के दिन रजुआ के संगे प्लेटिना पर बैठकर तुम्हारे गांव गए थे। तुम बरामदा में खड़ी थी। मने रमपुरवा गांव आला छुछेर लइका सब हरिहरका रंग पोत के हमारा मुंह एकदमे बानर बना दिया था। तुम चिन्ह नहीं पाई। तुम्हारे छठ घाट पर भी गए थे।
सिरसोपता के आगे चउका-मउका बैठी गुलाबी सलवार शूट में झक्कास लग रही थी। मन हुआ कि सेल्फी खींच ले लगे खड़िया कर। मने अगल-बगल का माहौल उस लायक नहीं था। तुम्हारे गांव के मुस्टंडे लड़के अजनबी बूझकर कटाह नजरों से से घूर रहे थे। वहां से चलते बने।
तुमको बता दूं कि सपलमेंट्री नहीं दिया। सीधे परीक्षा का फार्म भरे हैं। इस बार कइसे भी फर्स्ट करना है, जीवन-मरण का सवाल है। पापा जी बोल दिए है कि अबकी मैटिक नहीं पास किया। तो मामा जी के संगे लुधियाना कम्बल फैक्ट्री में भेज देंगे काम सीखे। मारे डर के केतना पीर-फकीर, सन्त, बाबा के दिहल भभूत-चूरन खा गए। मम्मी गांव के तीन पेड़ियां आला बरगज गाछ के जीन बाबा की भखौती भाखी है। कइसे बताए जब भी एमबीडी का गेस खोलकर पढ़े बैठते हैं। सामने तोहार सुरत घूमने लगता है।
तुम हमको कुछ बूझो या नहीं। लेकिन हमको तुमसे बहुते प्यार है। बस एक बार तुम जवाब में 'हां' लिखकर भेज दो उधर से। अपना डीह आला दस कठिया खेत में फुलाइल पीयर सरसो के कसम। फर्स्ट करके नहीं दिखाया तो मेरे नाम पर कुकुर पोस देना। चलते-चलते दू लाइन तुम्हारे लिए,
"जनि फेंकअ पथर नदिया में ओकरो पानी त केहू पीयेला
ना रहअ उदास जिनगी में, तोहके देखियो के केहू जियेला"
तोहरा जवाब के इंतिजार में,
तोहार पिरितम
हैपी न्यू ईयर। आज 31 दिसम्बर है। नया साल 20 से ठीक एक दिन पहले सन्देश भेज रहा हूं। तोहरा व्हाट्सअप पर। मामा जी का लावा मोबाइल घर पर छूट गया था। उसी में आइडिया का सिम लगाकर 50 का 4G नेट पैक डाला हूं, चार किलो गेहूं बेंचकर। हमें मैसेज भेजने का मूड नहीं था। बुझते हैं, तुमको आछा नहीं लगेगा। मने लिखना चालू किए त तनी जादा लिख दिए। रिक्वेस्ट है, पूरा पढ़े के बाद ही डिलीट करना, एक सांस में नहीं त थोड़ा-थोड़ा करके। सरसती माई के किरिया है।
इयाद करो, ठीक दू बरिस पहिले बाजारी पर मुन्ना सर के कोचिंग में हमलोग मिले थे। मैटिक परीक्षा के तैयारी के लिए नया-नया एडमिशन हुआ था। का बताए इहवां नाम लिखावे खातिर केतना पापड़ बेले थे। गांव के चऊक पर ढेर टिशन चलता है। पापा का कहना था, यहीं पढ़ो। बाजार पर जाएगा त बिगड़ जाएगा। एही से भेजने से हरकते थे। मंटू सर हाई स्कूल में साइंस के नामी टीचर थे। लेकिन इस नाम का प्रयोग स्कूल के पढ़ाई से जादा मेहनत अपना कोचिंग चमकाने में करते थे।
तीन कोस के एरिया में जेतना भी मैटिक का छात्र था। सबको यहीं विश्वास था कि उनके कोचिंग में एक बार जेकर नाम लिखा गया। उसका पास होना तय है, मैटिक, आईए, आईआईटी, पोलटेक्निक फलाना-ढिकाना परीक्षा। बेतिया के 'अहमद भाई दवा वाले' जइसन चरचा था। जेकरा परचार गाड़ी में रखल एके गो दवाई में दाद, खाज-खुजली, बवासीर, भगन्दर, हारनिया आदि केतना बेमारी का इलाज हो जाता है।
'सर' बहुते चालक किसिम के आदमी ठहरे। कोई कुछ पूछता-टोकता त जवाब देते, का करे एगो त कुछ हजार के महीना पर नियोजित शिक्षक हैं। सरकार कहती है कि चपरासी हमारा स्टाफ है, मने नियोजित शिक्षक नहीं। ओपर से वेतन छव-छव महीना पर मिलता है। अपने घर से दू जिला टपके एतना दूर आकर भाड़ा के मकान में रहते हैं। एतना कमरतोड़ महंगाई में खरचा कइसे चलेगा। बीवी, बच्चा, परिवार के गुजारा चलावे खातिर कुछ न कुछ त करना होगा।
हम और कुछ दोस्त सेटिंग किए सर से। वे जाकर पापा को अइसन ना पट्टी पढ़ाए कि परमिशन मिल गया पढ़ने के लिए। वहां जाने पर पता चला कि सर के कोचिंग के हिट होखे का राज का है। एगो छोटा हॉल में 25 गो बेंच आ एक बैच में 100 विद्यार्थी। अगिला पांच बरेंच लड़की सब के लिए रिजर्व। सर तो पढ़ाते बहुते आछा थे। मैथ, केमेस्ट्री, फिजिक्स तीनु विषय पर बराबर पकड़ था। उनकर बोली, एतना महीन कि का मजाल छठा बरेंच से आगे किसी को कुछो सुना जाए।
बोर्ड पर लिखते त सब कॉपी पर एकदम रचकर लिख लेते। समझ में आए चाहे नहीं। ऊ खुदे कहते थे, साइंस त समझे आला चीज है रटे आला थोड़े। क्लास के बाद नोट्स के फोटो कॉपी लेवे खातिर अइसन हल्ला मचता। जइसे तकिया के नीचे रखकर कोई सुत भी जाएगा त फर्स्ट डिवीजन मिल जाएगा एक्जाम में। रहीं बात हमारी तो एक बरिस में गिनती के 30-40 क्लास अटेंड किए होंगे। एतना दिन में किताब का एको चैप्टर माथा में नहीं घुसा। मने भीड़ जुटावे खातिर लड़की सबको अगिला बरेंच पर बैठाने का राज हमको जरूर बुझा गया।
अरे हम भी केतना बुरबक हैं। कहना था क्या और क्या लिखने लगे। इयाद आया, वह जनवरी का हाड़ कंपकपाता ठंडा का महीना था। जब कोचिंग में नाम लिखवाया। पहला क्लास और सबसे पछिला बरेंच पर बैठा था। तभी 'मे आई कम इन सर' के कोयल जइसन आवाज से पूरा क्लास में गरदा उड़ गया। सभे केहु का धेयान गेट पर चला गया। बॉडी पर करिया सुइटर, ब्लू जीन्स, गला में गुलाबी दुपट्टा, खुलल केस। अब का बताए, तोहरा के देखते ही हमरा जइसन केतना लइका का करेजा धुक-धुकाने लगा।
हम त पहिला नजर में ही तुमको दिल दे दिए। तुम्हारे रूप जाल में अइसे फंसे कि कब तुम्हारा पीछा करे लगे। पता नहीं चला। सवेरे सात बजे क्लास था आ हम पांच बजे घरे से साइकिल से निकल जाते। मेन रोड में बेखबरा चेवर के पास एकदम सुनसान रहता। वहीं से तुम्हारे पीछे लग जाता। केतना बार साइड लेवे के हड़बड़ी में ट्रक के नीचे आने से बचे थे।
फिर भी तुमसे पहले कोचिंग के गेट पर हाजिर रहता। जब तुम क्लास में 'इन' कर जाती तो मैं प्रवेश करता। क्लास खत्म होखे से पहिले भी गेट पर खड़ा रखता। लेकिन तुम हमारे तरफ ताकती नहीं थी। शायद ऐसा करने की नाटक करती होती थी।
तुम्हारे पास मोबाइल नहीं था। केतना बार कागज पर अपना नम्बर लिखकर रास्ते में गिराए थे। तुमने एक बार भी उसे उठाना मुनासिब नहीं समझा। गांव के नाते लगने वाली मुन्नी फुआ और तुम्हारी सखी से भी केतना बार तुम्हारे किताब में चिट्ठी रखवाए। कोई जवाब नहीं मिला। भगवान जाने कवन माटी से तुमको बनाए हैं। तुम्हारे फेरा में एक बरिस कइसे बीत गया, कुछो नहीं बुझाया।
बोर्ड का एक्जाम हुआ। तुम फर्स्ट डिवीजन से पास कर गई। और हम मैथ में कम आए तीन नम्बर से थर्ड डिवीजन लाते-लाते रह गए। पापा जी त एतना न फायर हुए रिजल्ट देखकर कि उनकर पुरनका संडक चप्पल हम्मर देहे पर टूट गया। केतना हंगामा मचा था घर में। पढ़ाई छोड़ावे के मूड में थे पापा। लेकिन मम्मी के रात-दिन निहोरा कइला के बाद मान गए।
इसके बाद तुम बेतिया चली गई आईएससी की तैयारी के लिए। और मैं रह गया गांव पर। तबहु फुआ से तोहर खबर लेते रहा। उसी से मालूम हुआ कि तुमको एंड्राइड सेट मिला है जियो वाला, घरे बतियाने के लिए। तोहार मोबाइल नम्बर भी मिल गया। कहीं रिजेक्ट नहीं कर दो इस डर से तुमसे बतियाने की हिम्मत नहीं हुई।
तुम अबकी साल में दो बार आई अपने घर। होली आ छठ पूजा में। होली के दिन रजुआ के संगे प्लेटिना पर बैठकर तुम्हारे गांव गए थे। तुम बरामदा में खड़ी थी। मने रमपुरवा गांव आला छुछेर लइका सब हरिहरका रंग पोत के हमारा मुंह एकदमे बानर बना दिया था। तुम चिन्ह नहीं पाई। तुम्हारे छठ घाट पर भी गए थे।
सिरसोपता के आगे चउका-मउका बैठी गुलाबी सलवार शूट में झक्कास लग रही थी। मन हुआ कि सेल्फी खींच ले लगे खड़िया कर। मने अगल-बगल का माहौल उस लायक नहीं था। तुम्हारे गांव के मुस्टंडे लड़के अजनबी बूझकर कटाह नजरों से से घूर रहे थे। वहां से चलते बने।
तुमको बता दूं कि सपलमेंट्री नहीं दिया। सीधे परीक्षा का फार्म भरे हैं। इस बार कइसे भी फर्स्ट करना है, जीवन-मरण का सवाल है। पापा जी बोल दिए है कि अबकी मैटिक नहीं पास किया। तो मामा जी के संगे लुधियाना कम्बल फैक्ट्री में भेज देंगे काम सीखे। मारे डर के केतना पीर-फकीर, सन्त, बाबा के दिहल भभूत-चूरन खा गए। मम्मी गांव के तीन पेड़ियां आला बरगज गाछ के जीन बाबा की भखौती भाखी है। कइसे बताए जब भी एमबीडी का गेस खोलकर पढ़े बैठते हैं। सामने तोहार सुरत घूमने लगता है।
तुम हमको कुछ बूझो या नहीं। लेकिन हमको तुमसे बहुते प्यार है। बस एक बार तुम जवाब में 'हां' लिखकर भेज दो उधर से। अपना डीह आला दस कठिया खेत में फुलाइल पीयर सरसो के कसम। फर्स्ट करके नहीं दिखाया तो मेरे नाम पर कुकुर पोस देना। चलते-चलते दू लाइन तुम्हारे लिए,
"जनि फेंकअ पथर नदिया में ओकरो पानी त केहू पीयेला
ना रहअ उदास जिनगी में, तोहके देखियो के केहू जियेला"
तोहरा जवाब के इंतिजार में,
तोहार पिरितम