सोशल साइट्स पर गुजरात की महिला सिपाही सुनीता यादव का वीडियो तेजी से वायरल हो रहा है। जिसमें वो अपने अधिकारी से एक मंत्री के लड़के की उदंडता की शिकायत निडरता से कर रही है। वह भी मातृभाषा में। इसे ना समझने वाले भी वीडियो को बेहद चाव से शेयर कर रहे हैं। देख, सुन रहे हैं। शायद मातृभाषा की यहीं ताकत होती है।
इसी प्रसंग से याद आया। दो-तीन दिन पहले मेरे पास एक लड़के का फ़ोन आया था। बोला, "सर मोतिहारी से हूं। फ़िलहाल दिल्ली में रहना होता है। बहुत अच्छा लिखते हैं। आपको पढ़ते रहते हूं।"
"हां बोलिए, क्या सेवा करूं?" उसने बताया, "मैंने एक डॉक्टर एप्प बनाया है। इसमें पूर्वी चंपारण के रहनिहारों को स्थानीय डॉक्टर्स का डाटा मिल जाएगा। कोई भी इसे गूगल प्ले स्टोर से अपलोड कर अपनी पसंद के डॉक्टर से अपॉइंटमेंट ले सकेंगे। इस एप्प के बारे में अपनी वाल पर प्रोमोट कर दीजिए।"
मैंने कहा, "मोतिहारी से बानी त भोजपुरी बोले आवेला कि ना?"
"जी नहीं, मुझे भोजपुरी नहीं आती है। कभी बोला ही नहीं।"
"तनिका परयास कके देखीं। उम्मेद बा बोले लागेम।", ये मेरा जवाब था।
"नहीं सर ये मुमकिन नहीं है। आपको मेरा एप्प प्रोमोट करना है या नहीं। ये बताइए..?"
अब उसकी प्रोफेशनल बतकही मुझे चुभने लगी थी। मैंने झट से कहा, "जब तोहरा मोतिहारी घर होते हुए भी मातृभाषा से जुड़ाव नइखे। त हमहु तोहार मदद फ्री में ना करेम। पांच हजार लागी बोल$ देब$?"
यह सुनते ही उसने फ़ोन काट दिया। अब मैंने भी दिनचर्या बना लिया है, ऐसे बनतुअरों से निपटने के लिए। कोई भी भोजपुरी क्षेत्र का आदमी यदि मुझे फ़ोन करता है। या सामने मिलने पर हिंदी में बात करता हूं। मैं उसे टोक देता हूं, "भाई, भोजपुरी में बतिआए के होखे त बोल$ ना त राम-राम। हम चलनी।"
मुझे लगता है, 1.20 करोड़ की आबादी वाले चंपारण समेत तमाम भोजपुरी भाषी जिले के युवाओं को, मातृभाषा प्रेमियों को यहीं हठधर्मी रवैया अपनाने की जरूरत है। वैसे मैंने तो शुरुआत कर दी। आप कब कर रहे हैं?
©श्रीकांत सौरभ
ब्लॉग लिंक - srikantsaurabh.com
इसी प्रसंग से याद आया। दो-तीन दिन पहले मेरे पास एक लड़के का फ़ोन आया था। बोला, "सर मोतिहारी से हूं। फ़िलहाल दिल्ली में रहना होता है। बहुत अच्छा लिखते हैं। आपको पढ़ते रहते हूं।"
"हां बोलिए, क्या सेवा करूं?" उसने बताया, "मैंने एक डॉक्टर एप्प बनाया है। इसमें पूर्वी चंपारण के रहनिहारों को स्थानीय डॉक्टर्स का डाटा मिल जाएगा। कोई भी इसे गूगल प्ले स्टोर से अपलोड कर अपनी पसंद के डॉक्टर से अपॉइंटमेंट ले सकेंगे। इस एप्प के बारे में अपनी वाल पर प्रोमोट कर दीजिए।"
मैंने कहा, "मोतिहारी से बानी त भोजपुरी बोले आवेला कि ना?"
"जी नहीं, मुझे भोजपुरी नहीं आती है। कभी बोला ही नहीं।"
"तनिका परयास कके देखीं। उम्मेद बा बोले लागेम।", ये मेरा जवाब था।
"नहीं सर ये मुमकिन नहीं है। आपको मेरा एप्प प्रोमोट करना है या नहीं। ये बताइए..?"
अब उसकी प्रोफेशनल बतकही मुझे चुभने लगी थी। मैंने झट से कहा, "जब तोहरा मोतिहारी घर होते हुए भी मातृभाषा से जुड़ाव नइखे। त हमहु तोहार मदद फ्री में ना करेम। पांच हजार लागी बोल$ देब$?"
यह सुनते ही उसने फ़ोन काट दिया। अब मैंने भी दिनचर्या बना लिया है, ऐसे बनतुअरों से निपटने के लिए। कोई भी भोजपुरी क्षेत्र का आदमी यदि मुझे फ़ोन करता है। या सामने मिलने पर हिंदी में बात करता हूं। मैं उसे टोक देता हूं, "भाई, भोजपुरी में बतिआए के होखे त बोल$ ना त राम-राम। हम चलनी।"
मुझे लगता है, 1.20 करोड़ की आबादी वाले चंपारण समेत तमाम भोजपुरी भाषी जिले के युवाओं को, मातृभाषा प्रेमियों को यहीं हठधर्मी रवैया अपनाने की जरूरत है। वैसे मैंने तो शुरुआत कर दी। आप कब कर रहे हैं?
©श्रीकांत सौरभ
ब्लॉग लिंक - srikantsaurabh.com
4 comments:
आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज सोमवार 13 जुलाई 2020 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
राम राम
बहुत बढ़िया। जय हो।
आ श्रीकांत सौरभ जी, रउआ भोजपुरी में लिख तानी ई जानके बहुत खुशी भइल। हम राउर ब्लॉग के लिंक आपन रीडिंग लिस्ट में डाल देले बानी। हमर ब्लॉग के एड्रेस बा : marmagyanet.blogspot.com . रउआ पढ़ी। राउर विचार के इन्तजार रही। -- ब्रजेन्द्र नाथ
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