सबसे अच्छा कंटेंट अभी बाकी है, आते रहिएगा

17 July, 2014

N.H. 28 की वो मिडनाइट हसीनाएं और मेरा सफर

ये लड़की सुनो, साहब के साथ जाएगी क्या? उस सुनसान अंधेरी रात में सड़क के किनारे अचानक से एक आभासी छाया को देख ड्राइवर ने गाड़ी धीमी कर दी. और यही शब्द उसकी ओर देखते हुए उसने कहा था. हालांकि उस घुप अंधियारे में कुछ सूझ तो नहीं रहा था. कुछ देर के अंतराल पर गाडियां आतीं भी तो तेज रफ्तार में, जो सेकेंडों में आंखों से ओझल हो जातीं. मैंने गौर फरमाया कि वह जींस, टी शर्ट के लिबास में कोई युवती थी. जिसने काले दुपट्टे से मुंह ढक रखा था. ड्राइवर की आवाज सुनते ही थोड़ा बगल में हटके उसने विपरीत दिशा में मुंह कर ली. तभी हाथ में टार्च लिए एक नाटा सा मोटा आदमी हमारे करीब आया.
मॉडल फोटो 
उसने ड्राइवर को पहचानते ही कहा, का भैया, रोजी रोटी का समय है. और आप मसखरी कर रहे हैं. अरे ना हो. मजाक नहीं कर रहे हैं. ये पत्रकार साहब है इनको टंच माल चाहिए. बोले क्या रेट लोगे? ड्राइवर की बात सुनते ही वह आदमी थोड़ा अकबका गया. फिर सामान्य होकर कहा, गाड़ी में ही या होटल में जाना है. उसने कहा, दोनों का रेट बताओ. गाड़ी के पांच सौ और होटल में हजार रूपए, वह भी एक घंटे के लिए. ड्राइवर कुछ जवाब देता इसके पहले मैंने उसे चिकोटी काटते हुए फुसफुसाया, ये कहां फंसा दिए यार! चलो यहां से. तो उसने झटके से गाड़ी तेज कर दी. 

दरअसल पिछले दिनों एक काम को लेकर पटना जाना हुआ था. लौटने में रात हो गई. मुजफ्फरपुर तक बस से आया उस वक्त 12 बज रहे थे. पता चला यह बस मोतिहारी के लिए भोर में खुलेगी. मैं नीचे उतर टहलने लगा कि एक सज्जन ने बताया. भोर तक काहे इंतजार कीजिएगा, बैरिया गोलंबर चले जाइए. वहीँ से अखबार ढोने वाली कोई गाड़ी मिल जाएगी. मैं गोलंबर पहुंचा ही था कि एक पिक अप वाला मोतिहारी मोतिहारी चिल्ला रहा था. मैंने देखा गाड़ी के पिछले सीट पर अखबार का बंडल रखा हुआ था. सो थोड़ा सा असमंजस में पूछा, भाई बैठना कहां होगा. उसने कहा कि आगे की सीट पर मेरे बाजू में. मैं ने अपनी जगह पकड़ ली तो मेरे बैठेते ही उसने हवा की गति से गाड़ी तेज कर दी.

थोड़ी ही देर में चिकनी सपाट एनएच पर गाड़ी सरपट भागने लगी. शहर पीछे छूट गया. खेत खलिहान के साए में बहुत दूर दूर पर थोड़ी रौशनी नजर आ जाती. अपनी वाचाल आदत के कारण मैं समूह में चुप नहीं रह सकता, ना ही यात्रा के दौरान नींद ही आती है. क्योंकि बोरियत महसूस होती है. सो टाइम पास के इरादे से ड्राइवर से उसका नाम, पता व पढ़ाई के बारे में पूछा. उसने कोई तिवारी करके नाम बताया. बोला, यहीं पास के गांव का रहने वाला हूं. आठवीं तक पढ़ा हूं. घर पर पत्नी व मां हैं, दो बच्चे भी. 

और आप?, उसने मेरी तरफ देखते कहा. मोतिहारी के एक छोटे से गांव से हूं. वही पर रहकर पत्रकारिता करता हूं. मेरा जवाब सुनकर उसने कहा, आप पत्रकार लोग तो खूबे पैसा कमाते हैं. नाम भी रहता है. मेरे भी एक चचेरे भाई भोपाल में पत्रकार हैं. घर से गए तो कुछो नहीं था उनके पास. लेकिन अब सुनता हूं वहीँ पर जमीन खरीद मकान बना लिए हैं. मिनिस्टर लोग के पास उठते बैठते हैं. उसकी बात को बीच में ही काटते हुए मैं बोला, नहीं, यार. मैं तो शौकिया ये काम करता हूं. और जीविका के लिए मेरा पेशा दूसरा है. ये सब चल ही रहा था कि उपर वाला वाकया हो गया. मोतीपुर के आस पास कोई जगह थी वह. जहां बगल में ही लाइन होटल था.

घड़ी देखी, रात के डेढ़ बज रहे थे. मैंने आश्चर्य भरी नजरों से तिवारी को ओर देखते हुए कहा, क्या माजरा है ये? इतनी रात को कहीं भी गाड़ी रोक देते हो, डर नहीं लगता. आए दिन अखबार में पढ़ते रहता हूं. एनएच पर ड्राइवर की हत्या कर गाड़ी की लूट. तो उसने छूटते ही कहा, आप भी कइसन बात करते है. डर काहे और किससे लगेगा. हम भी इसी माटी के जीव हैं. दस बरिस से चला रहे हैं गाड़ी इस रूट में. है किसी को मजाल की हाथ भी दे दे. वइसे भी आपको हम कवनो शरीफ बुझाते हैं. अपने जमाना में एक नंबर के लफुआ थे. समझ लीजिए कि सूरजभान सिंह, राजन तिवारी आ मुन्ना शुक्ला पाकिटे में था सब. ई कहिए कि घरवाला सब बियाह कर दिया. आ पत्नी ने हमको कसम लगा दिया. जे इस लाइन में आना पड़ा. मैंने भांप लिया कि तिवारी कुछ ज्यादा ही फेंक रहा है. वैसे भी कम पढ़े लिखे लोग गजब के मौलिक, आत्मविश्वासी होते हैं और व्यवहारिक भी. लेकिन पढ़े लिखे कथित सभ्य जनों की तरह अपनी हर जायज नाजायज भावनाओं को चतुराई से छुपाने की कला में माहिर नहीं होते.


मॉडल फोटो
मैंने बातों को यू टर्न देते हुए पूछा, कौन थे वे लोग? रंडी थी साहब, बंगाल की. आर्केस्ट्रा का सीजन खत्म हो गया है. अब रात में यही सब करके कमाती हैं, छिनाल..! अच्छा ये बात है, मैंने हामी भरी. वो तो सड़क पर खड़ी शो पीस थी साहब. खजाना तो अंदर होटल में मिल जाएगा. जैसा चाहिए वैसा आइटम. इसी दौरान तिवारी ने जानकारी दी कि गोपालगंज से लेकर मुजफ्फरपुर तक ऐसे दर्जनों लाइन होटल हैं. जहां रात में धड़ल्ले से जिस्म का कारोबार होता है. उसने बताया, पहले इस धंधे में केवल वैसी महिलाएं रहती थीं. जो गरीब व लाचार विधवा थीं. जिसका पति शराबी या बाहर कमाने चला गया हो. इनके सबसे बड़े ग्राहक होते थे, ट्रक ड्राइवर. लेकिन जब से ये बंगाली लडकियां आईं इनकी पूछ घट गई. अब तो कम उम्र की देहाती लड़कियां भी इस पेशे में लाई जा रही हैं. और इनके रईसजादे कद्रदान भी बढ़े हैं. आखिरकार उम्दा रहन सहन, महंगे दाम के मोबाइल और फैशनदार कपड़े की चाहत जो ना करवाए.
मॉडल फोटो
मैंने चुस्की लेते कहा, इसका मतलब तुमने भी उनकी सेवा ली है. वह तुनकते बोला, का भईया, हम आपको अइसने आदमी लगते है. दिन भर शहर में गाड़ी चलाना. और रात में अखबार ढोने की ड्यूटी से मिजाज थक जाता है. इसलिए रास्ते में इनसे ठिठोली कर जी बहला लेता हूं. मैंने पूछा, तो हाईवे पुलिस गश्ती में क्या करती है. उसने कहा, सर पुलिस ही तो सब करवा रही है. वे चाह दें तो एक दिन में खेला बंद हो जाएगा. बातें करते करते हम अपने शहर की सीमा में कब प्रवेश कर गए, पता ही न चला. और भी बातें होतीं लेकिन हमारी मंजिल आ गई. मैंने मोतिहारी में उतर उससे विदा ली. और मन ही मन सोचते हुए चल दिया कि बचपन में मां अक्सर कहां करती थीं, 'राति के लईकन के अकेले सड़क प न घूमे के चाही. काहे कि ओही बेरा ‘निशाचर’ घूमेले सन जवन पकड़ के भाग जाले सन.' तो... इस लिहाज से आधुनिक जमाने में ये हाईवे गर्ल भी एक प्रकार की ‘निशाचर’ ही हुई. जिनके शिकार केवल 'बड़े' होते हैं. है कि नहीं.

उतर बिहार में तेजी से बढ़ रहे एचआईवी पीड़ित

पल भर का मजा और जीवन भर की सजा. हजारों ट्रक ड्राइवर पर आज यहीं पंक्ति सटीक साबित हो रही है. मुजफ्फरपुर समेत 12 जिलों में एचआईवी पॉजीटिव तेजी से बढ़ रहे हैं. नाको (नेशनल एड्स कंट्रोल ऑर्गेनाइजेशन) की जानकारी के बाद यह सच सामने आया है. मुजफ्फरपुर, मोतिहारी, वैशाली, सीतामढ़ी, बेगूसराय, पटना, सारण, मधुबनी, दरभंगा, गोपालगंज, सीवान में एड्स पीड़ित तेजी से बढ़े हैं. नाको ने सभी को हाई रिस्क जोन के रूप में घोषित किया है. दूसरी ओर सूबे में पिछले दो साल से 65 हजार एचआईवी पीड़ितों का इलाज चल रहा है. दस हजार से अधिक एआरटी दवा पर हैं, जिनकी कभी भी मौत हो सकती है. जानकार बताते हैं कि कुल एचआईवी पीड़ितों में 90 प्रतिशत को यह बिमारी असुरक्षित यौन संबंधों से हुई है. इनमें 60 प्रतिशत पीड़ित ट्रक ड्राइवर हैं. इनमें अधिकांश को यह बीमारी प्रवास के दौरान रेड लाइट एरिया में या फिर हाईवे पर असुरक्षित सेक्स के दौरान हुई है. एचआईवी पीड़ित घर में भी पत्नी से यौन संबंध स्थापित कर उन्हें बीमारी की सौगात दे देते हैं.

5 comments:

Badkimaai said...

हालात का बारीकी से विध्लेषण।
पहले मज़ा फिर जिंदगी बन जाएगी सजा... प्रशासन के नाक के नीचे फल-फूल रहे वेश्यावृति के इस धंधे का पर्दाफाश।

Dr Kiran Mishra said...

आप के ब्लाक पर आकर मिडनाइट हसीना पढ़ा उम्दा हक़ीक़त से ओतपोत लेखन है नैतिकता से दूर और भौतिकता के पास होते हुए समाज से आप क्या आशा कर सकते है। हां पर इतना जरूर कहूँगी की स्त्री को अपना मूल्यांकन खुद करना होगा उसे इंसानियत के गुणों के साथ समाज का प्रतिनिधित्व करना होगा क्योंकि पूरी दुनिया स्त्री के आस-पास होती है और सृजन का भार भी उसकेऊपर होता है

Unknown said...

Acha laga.

Unknown said...

said........ haqikat se wot prot

Unknown said...

Looking to publish Online Books, in Ebook and paperback version, publish book with best
Publish Online Books|Ebook Publishing company in India