अंजोर Anjor

अब पढ़ता कोई नहीं लिखते सभी हैं, शायद इसलिए कि सबसे अच्छा लिखा जाना अभी बाकी है!

22 September, 2020

चोर कौन?

›
कल बाजार में एक चोर को पीटते देखा घेरी थी दर्जनों की भीड़, मारो साले को... पूछा मैंने सामान इसने क्या हाथ लगाया है झट बोले, चुराए मोबाइल के स...
1 comment:
21 September, 2020

अझुराइल जमाना

›
खेती बाड़ी से नाता टूटल सउसे खेत बटाई उठल खायन पियन जाता छूटल भाई से बा भाई रूठल जेकरा से पूछ$ टाइम नइखे एके भइल बहाना बा फेसबुक-व्हाट्सअप मे...
2 comments:
18 September, 2020

जिनगी नून तेल चाउर दाल ना ह$

›
बीती जाला लड़िकाई हंसी खेल में बिना मेहरिया जवानी जाल ना ह$ बुझाला बादे जब चढ़ेला मउर माथे हर घड़ी गोटी एकर लाल ना ह$ जिनगी के आधार ह$ गृहस्थी ...
1 comment:
16 September, 2020

कुआर के सिधरी

›
जब चढ़ेला महीनवा कुआर खूबे छछनेला मनवा हमार नीक लागेना बहरा के नोकरी बड़ी इयाद आवे गांवे के सिधरी चेवरा होखे भा खेतवा बधार सगरो बहेला पनिया के...
2 comments:
04 August, 2020

रोमांचक कहानी - CONFESSION

›
"ऑर्डर...ऑर्डर, तमाम सबूतों व गवाहों के मद्देनज़र अदालत इस नतीज़े पर पहुंची है कि डॉ. आशीष अरोड़ा ने अपने स्टाफ़ पर इरादतन दबाव बनाया था। ...
01 August, 2020

कहानी - अवसर

›
पिछले एक सप्ताह से मौसम खराब था, इस कदर कि खुलने का नाम ही नहीं ले रहा था। और आज तो हद हो गई थी, सुबह से मूसलाधार बारिश हो रही थी। कोसों तक...
30 July, 2020

नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति में त्रि-स्तरीय भाषा का स्वागत है, लेकिन...

›
मेरी पांच वर्षीय बेटी गांव के एक निजी कान्वेंट में अपर किंडर गार्डन (यूकेजी) की छात्रा है। लॉकडाउन के कारण स्कूल बंद है। इस कारण से घर पर ह...
12 July, 2020

"भोजपुरी में बतिआए के होखे त बोल$ ना त राम-राम"

›
सोशल साइट्स पर गुजरात की महिला सिपाही सुनीता यादव का वीडियो तेजी से वायरल हो रहा है। जिसमें वो अपने अधिकारी से एक मंत्री के लड़के की उदंडता ...
4 comments:
26 June, 2020

"धीरे-धीरे हरवा चलइहे हरवहवा, गिरहत मिलले..!"

›
अदरा चढ़े दो दिन हो गया था। देर रात से ही तेज बारिश हो रही थी। तीन बजे भोर में बालेसर काका की नींद टूट गई। ऐसे भी वे रोज़ चार बजे उठ ही जाते ...
1 comment:
24 June, 2020

साहित्य में प्रेमचंद्र जैसा हो जाना सबके वश का नहीं

›
मूसलाधार बरसात में गांव की फुस वाली मड़ई की ओरियानी चु रही हो। उसी मड़ई में आप खटिया पर लेटकर 'गबन' पढ़ रहे हों! तभी पुरवैया हवा के झो...
19 June, 2020

क्या सच में बिहार के नियोजित शिक्षक बोझ हैं?

›
जब भी नियोजित शिक्षकों के बारे में लोगों की उल्टी-सीधी प्रतिक्रिया पढ़ता हूं। मन बेचैन हो जाता है। यदि कोई शिक्षक फेसबुक पर वेतनमान की मांग ...
17 June, 2020

डियर सुशांत, सहानुभूति तुमसे नहीं, बिहारी कलाकारों की बदक़िस्मती से है

›
प्रिय सुशांत, नमस्ते अलविदा! मुझे पता है, यह चिट्ठी तुम तक नहीं पहुंच पाएगी। फिर भी लिख रहा हूं, बिना किसी आसरा के। इसमें कोई शक नहीं, ...
09 June, 2020

कॉलेजिया लईकी ढूंढने वाले बाबूजी के बेरहम दुख!!!

›
चनेसर काका का बड़का बेटा जब बीटेक कर गया तो अगुआ दुआर कोड़ने लगे। और लड़की थी कि कोई भी उनको जंच ही नहीं रही थी। कोई पढ़ी-लिखी थी तो कद छोटा मि...
11 comments:
03 June, 2020

अब माड़ो में दूल्हे साईकिल, घड़ी, रेडियो तो समधी दही लगाने के लिए नहीं रूठते!

›
'भरी भरी अंजुरी में मोतिया लुटाइब हे दूल्हा दुल्हनिया के...,' 'कथी के चटइया पापा जी बइठल बानी...,' 'दूल्हा के माई बनारस...
1 comment:
02 June, 2020

बिहार में रहेगा नहीं 'लाला' तो क्या करेगा जीकर हजार साला!

›
भले ही भूल जाइए कि आप क्या हैं! लेकिन याद जरूर रखिए कि हम बिहारी हैं! जब गुजरात वालों को गुजराती, पंजाब वालों को पंजाबी, असम वालों को असमिय...
3 comments:
01 June, 2020

सच्ची घटना : जब हैजा से अयोध्या वाले 'महात्मा जी' मरे

›
यह किस्सा वर्ष 1940 का है। तब पूरे देश में हैजा महामारी फैली थी। इलाज नहीं होने और छूत रोग के चलते यह जानलेवा बीमारी तेज से पसरी। शायद ही...
1 comment:
31 May, 2020

तहे तहेे दिल से लहे लहे दिल से सुक्रिया आदा कर$..!

›
अथ श्री नाच महातम कथा : चम्पारण में पलल-बढ़ल ऊ अदमी के लड़िकाई भी कवनो लड़िकाई भइल। जवन लवंडा नाच देखिके सग्यान ना भइल। तनिका इयाद करीं बरिस 1...
1 comment:
29 May, 2020

"काका हो माल खरचा कर$, सब एहिजे बेवस्था हो..!"

›
जब से गेनापुर जैसे पिछड़े गांव में मिनी बैंक यानी सीएसपी खुला था। सुभाष के बल्ले-बल्ले हो गए थे। मैट्रिक तक पढ़ा था। कम्प्यूटर चलाने की जानका...
1 comment:
28 May, 2020

गाते, बजाते या संगीत सृजन करते समय, आप दुनिया का सबसे खूबसूरत इंसान होते हैं!

›
चुरा लिया है तुमने जो दिल को..! दम मारो दम मिट जाए गम फिर बोलो सुबह शाम...! नीले नीले अंबर पर चांद जब आए, ऐ मेरे हमसफ़र एक ज़रा इंतज़ार..! ओ ओ...
1 comment:

वो जेठ की तपती दुपहरी, नहर में डुबकी लगाना और गाछी का आम तोड़कर खाना!

›
जंगल जंगल बात चली है पता चला है, चड्डी पहन के फूल खिला है..! वर्ष 1990 का दशक, यानी एक ऐसा दौर जिसके आस-पास जन्मे लोग, कई सारे बदलाव का गवा...
2 comments:
‹
›
Home
View web version

नाचीज़ की तारीफ़

My photo
श्रीकांत सौरभ
कनछेदवा, मोतिहारी, बिहार, India
साहित्य के अथाह समंदर का नवोदित तैराक हूं। किसी भी एक भाषा का मुक़म्मल ज्ञान नहीं, देवनागरी से बेपनाह मोहब्बत है। मेरा लिखा पढ़कर प्यार लुटाइए या नाराज़गी जताइए। लेकिन अपनी भावनाओं को छुपाइएगा मत।
View my complete profile
Powered by Blogger.