कल बाजार में एक चोर को पीटते देखा
घेरी थी दर्जनों की भीड़, मारो साले को...
पूछा मैंने सामान इसने क्या हाथ लगाया है
झट बोले, चुराए मोबाइल के साथ धराया है
सहसा मन में ये ख़्याल आया
पकड़ाया वो तो चोर कहलाया
लेकिन उनका क्या जो शायद ही धराते हैं
गिरवी रखकर ईमान नाजायज़ कमाते हैं
वो हेडमास्टर जो बच्चे को एमडीएम खिलाते हैं
चार रुपए प्रति रेट में भी ढाई रूपया बचाते हैं
वो सरकारी कर्मचारी जो काम लटकाते हैं
बिना नज़राना के फाइल आगे नहीं बढ़ाते हैं
वो पुलिस जवान जो सड़कों पर बिकते हैं
गुंडे बदमाश दादा इनके ही सहारे टिकते हैं
वो एसएचओ जो फरियादी को हड़काते हैं
लेकर घूस केस में दफ़ा पर दफ़ा लगाते हैं
वो वकील जो जज से सेटिंग कराते हैं
मोटी फ़ीस ले गुनाहगारों को बचाते हैं
वो प्रोफेसर जो लाखों की सैलरी उठाते हैं
महीने में देके लेक्चर चार फर्ज़ निभाते हैं
वो डॉक्टर जो दो की जगह दस जांच कराते हैं
मरीज़ की अंतिम सांस से भी कमीशन खाते हैं
वो हलवाई जो बिना दूध के छेना बनाते हैं
जहरीली मिठाई बेंचकर चार गुना कमाते हैं
वो बाबू जो सीडीपीओ की दलाली करते हैं
पीसी के बिना किसी को पोषाहार नहीं देते हैं
वो बीडीओ एसडीओ जो वसूली करवाते हैं
विभागों से चढ़ावा लेकर उपर तक पहुंचाते हैं
वो एनजीओ वाले जो सादगी दिखलाते हैं
सौ रुपए खर्च कर डेढ़ सौ का बिल बनाते हैं
वो पत्रकार जो चंद रुपयों में बिक जाते हैं
एकतरफा ख़बर से जनता को भरमाते हैं
वो फैक्ट्री मालिक जो काबिलियत दबाते हैं
रेट कम देकर कामगारों को ज़्यादा खटवाते हैं
वो ठेकेदार जो काम 40 प्रतिशत में कराते हैं
जनप्रतिनिधि इंजीनियर मिलकर मौज उड़ाते हैं
वो फल-सब्जी वाले जो वजन कम तौलते हैं
देकर सड़ी चीज़ को भगवान कसम बोलते हैं
वो दर्जी जो सवा मीटर में दो बित्ते उड़ाते हैं
उससे पोशाक न सही पैंट की जेब बनाते हैं
इसके बावजूद है आसान कहके बच जाना
भगवान की है मर्जी क्या, कब किसने जाना
वो भगवान जो मजदूरों से पसीने बहवाते हैं
ठेले रिक्शे वालों की चमड़ी धूप में झुलसाते हैं
दो वक्त की रोटी को फिर भी उन्हें तरसाते हैं
और तमाम धंधेबाजों पर पूरी कृपा बरसाते हैं
©श्रीकांत सौरभ
बहुत सुन्दर
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