बसंत आ गया। दिख रहा है, खेतों में फुलाए पीले-पीले सरसों की पंखुड़ियों में। अंगड़ाई लेते मटर, गेंहूं के हरिहराए पौधों में। महसूस हो रहा, फफनाकर बहती, प्री फगुनहट का अहसास कराती पछुआ ब्यार में। महक रहा है, खिले डहलिया, गेंदा, गुलाब, जूही के फूलों में। आम की डालियों के बीच आस्तित्व के लिए संघर्ष करते मंजरों में। सुनाई दे रहा, बागों में बैठीं कोयल की कूक में।
यह महीना ऐसे भी खास होता है। जहां ठंड की जवानी उफान पर होती है। वहीं, भोर से ही जागकर। रजाई/कंबल में नुकाए मैट्रिक/इंटर की तैयारी कर रहे जाने कितने किशोर। ब्रिलियंट/एमबीडी/गोल्डेन प्रकाशन का गेस पेपर चाटकर विहान कर रहे होते हैं। यौवन की तरुणाई में उतराते इन रणबांकुरों को एक तरफ जहां इम्तिहान की चिंता सताती है। दूसरी तरफ प्यार की पाठशाला में नव नामांकित लाखों 'प्रीतम' व 'प्रीति' के दिलों में प्यार की पींगे भी उठने लगती हैं।
ऐसा होना स्वाभाविक है। इसीलिए मौलिक भी लगता है। बसंत का प्रेम से सदियों का नाता रहा है। मनोवैज्ञानिक कहते हैं, इस दौरान मस्तिष्क में ऑक्सिटॉक्सिन व डोपामाइन हार्मोन का प्रवाह चरम पर होता है। तभी तो एक परछाई भर साथ के लिए। अप्रैल से दिसम्बर तक लगातार पीछा करने के बावजूद। जिस 'धनिया' का दिल 'होरी' के लिए नहीं तरसता। जनवरी आते-आते उसकी याद में भी धड़कने लगता है।
भले ही दुनिया फाइव जी युग में हैं। कई तरह के संचार व्यवस्था है, प्रेम रस में सराबोर होने के लिए। लेकिन अभी भी हमारे बिहार या यूपी के गांवों/कस्बों के लौंडों का लभ। व्हाट्सएप्प, इमो, एफबी मैसेंजर पर या मल्टीप्लेक्स, पार्क, मॉल में नहीं। गांव के चौक, चट्टी, बाजार स्थित चल रहे किसी नौंवी/दसवीं के कोचिंग या हाईस्कूल में ही पनपता है। और हां, सरस्वती पूजा के रोज इसका इजहार चरम पर होता है। जहां किसी 'चंदू' के मुनहार पर कोई 'चिंकी' ललका शूट में आती है। प्रसाद बांटने के बहाने ही सही। स्पर्श सुख से जमाने भर की खुशी जो मिल जाती है।
पिसवाने ले जाने के दौरान बोरे से दो-तीन किलो गेंहूं चुराना। फिर उसे दुकान में बेंचना। उस पैसे से प्रेमिका के जिओ सिम का 50 ₹ के टॉप अप से रिचार्ज कराने का अनुभव। या फिर इसी ठंड के बीच अधनिकली गुलाबी धूप में। किसी प्रेमिका का कपड़ा सुखाने/उतारने, धूप सेंकने के बहाने। बार-बार छत पर जाना। और सीढ़ी वाले घर में छुपकर मोबाइल से घण्टों बतियाने का सुख। क्या होता है। यह तो हिन्दी पट्टी का कोई कस्बाई युवा ही बेहतर ढंग से बता सकता है।
खैर, छोड़िए। कसमें, वादे, प्यार, वफ़ा सब बातें हैं, बातों का क्या। नए साल में मेरी भगवान से यही गुजारिश रहेगी। वैसे प्रेमी/प्रेमिका जिनका लंबे समय से ब्रेक अप है। या बिल्कुल खलिहर हैं। उन्हें जरूर से नया 'प्यार' मिल जाए। जिसका अफेयर अच्छा चल रहा है। उसे रिश्ते का दामन मिल जाए। और हां, वैसे बालिग प्रेमी जोड़े जो जॉब में सेटल्ड हैं। जिनकी राजी के बाद भी मां-बाप शादी में रोड़े बने हैं।
उन्हें साफ तौर पर कहना चाहूंगा। फिजूल के इंतजार में समय ज़ाया नहीं कीजिए। सबको फिल्म 'दिलवाले दुल्हनिया ले जाएंगे' के 'राज' व 'सिमरन' की तरह प्यार नसीब नहीं होता। जिसमें तमाम विरोध करने के बाद भी चौधरी बलदेव सिंह की तरह कोई मजबूर पिता आए। और बेटी का हाथ पकड़कर प्रेमी के हाथों में सौंपते हुए कहे, जा सिमरन जा, जी ले अपनी जिन्दगी। अब आपको आगे क्या करना है। उम्मीद है, आप अच्छी तरह समझ गए होंगे।
©️®️श्रीकांत सौरभ, मोतिहारी वाले। (अच्छा लगा हो तो प्रतिक्रिया जरूर दीजिएगा। लाइक व शेयर भी करिए।)
यह महीना ऐसे भी खास होता है। जहां ठंड की जवानी उफान पर होती है। वहीं, भोर से ही जागकर। रजाई/कंबल में नुकाए मैट्रिक/इंटर की तैयारी कर रहे जाने कितने किशोर। ब्रिलियंट/एमबीडी/गोल्डेन प्रकाशन का गेस पेपर चाटकर विहान कर रहे होते हैं। यौवन की तरुणाई में उतराते इन रणबांकुरों को एक तरफ जहां इम्तिहान की चिंता सताती है। दूसरी तरफ प्यार की पाठशाला में नव नामांकित लाखों 'प्रीतम' व 'प्रीति' के दिलों में प्यार की पींगे भी उठने लगती हैं।
ऐसा होना स्वाभाविक है। इसीलिए मौलिक भी लगता है। बसंत का प्रेम से सदियों का नाता रहा है। मनोवैज्ञानिक कहते हैं, इस दौरान मस्तिष्क में ऑक्सिटॉक्सिन व डोपामाइन हार्मोन का प्रवाह चरम पर होता है। तभी तो एक परछाई भर साथ के लिए। अप्रैल से दिसम्बर तक लगातार पीछा करने के बावजूद। जिस 'धनिया' का दिल 'होरी' के लिए नहीं तरसता। जनवरी आते-आते उसकी याद में भी धड़कने लगता है।
भले ही दुनिया फाइव जी युग में हैं। कई तरह के संचार व्यवस्था है, प्रेम रस में सराबोर होने के लिए। लेकिन अभी भी हमारे बिहार या यूपी के गांवों/कस्बों के लौंडों का लभ। व्हाट्सएप्प, इमो, एफबी मैसेंजर पर या मल्टीप्लेक्स, पार्क, मॉल में नहीं। गांव के चौक, चट्टी, बाजार स्थित चल रहे किसी नौंवी/दसवीं के कोचिंग या हाईस्कूल में ही पनपता है। और हां, सरस्वती पूजा के रोज इसका इजहार चरम पर होता है। जहां किसी 'चंदू' के मुनहार पर कोई 'चिंकी' ललका शूट में आती है। प्रसाद बांटने के बहाने ही सही। स्पर्श सुख से जमाने भर की खुशी जो मिल जाती है।
पिसवाने ले जाने के दौरान बोरे से दो-तीन किलो गेंहूं चुराना। फिर उसे दुकान में बेंचना। उस पैसे से प्रेमिका के जिओ सिम का 50 ₹ के टॉप अप से रिचार्ज कराने का अनुभव। या फिर इसी ठंड के बीच अधनिकली गुलाबी धूप में। किसी प्रेमिका का कपड़ा सुखाने/उतारने, धूप सेंकने के बहाने। बार-बार छत पर जाना। और सीढ़ी वाले घर में छुपकर मोबाइल से घण्टों बतियाने का सुख। क्या होता है। यह तो हिन्दी पट्टी का कोई कस्बाई युवा ही बेहतर ढंग से बता सकता है।
खैर, छोड़िए। कसमें, वादे, प्यार, वफ़ा सब बातें हैं, बातों का क्या। नए साल में मेरी भगवान से यही गुजारिश रहेगी। वैसे प्रेमी/प्रेमिका जिनका लंबे समय से ब्रेक अप है। या बिल्कुल खलिहर हैं। उन्हें जरूर से नया 'प्यार' मिल जाए। जिसका अफेयर अच्छा चल रहा है। उसे रिश्ते का दामन मिल जाए। और हां, वैसे बालिग प्रेमी जोड़े जो जॉब में सेटल्ड हैं। जिनकी राजी के बाद भी मां-बाप शादी में रोड़े बने हैं।
उन्हें साफ तौर पर कहना चाहूंगा। फिजूल के इंतजार में समय ज़ाया नहीं कीजिए। सबको फिल्म 'दिलवाले दुल्हनिया ले जाएंगे' के 'राज' व 'सिमरन' की तरह प्यार नसीब नहीं होता। जिसमें तमाम विरोध करने के बाद भी चौधरी बलदेव सिंह की तरह कोई मजबूर पिता आए। और बेटी का हाथ पकड़कर प्रेमी के हाथों में सौंपते हुए कहे, जा सिमरन जा, जी ले अपनी जिन्दगी। अब आपको आगे क्या करना है। उम्मीद है, आप अच्छी तरह समझ गए होंगे।
©️®️श्रीकांत सौरभ, मोतिहारी वाले। (अच्छा लगा हो तो प्रतिक्रिया जरूर दीजिएगा। लाइक व शेयर भी करिए।)
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