अंजोर Anjor

अब पढ़ता कोई नहीं लिखते सभी हैं, शायद इसलिए कि सबसे अच्छा लिखा जाना अभी बाकी है!

16 April, 2013

...तो क्यों नहीं साहित्यिक पंडों की लेखन शैली का भाषाई श्राद्ध करा दें?

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रचनात्मक लेखन की कश्ती पर सवार हिंदी के युवा साहित्यकारो, जरा ध्यान दीजिए...  ------------------------------------------------------------...
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14 April, 2013

यादें (3): वो जमाना जब दूध सस्ता और मनोरंजन महंगा था!

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जब मैंने होश संभाला 5 साल की उम्र रही होगी, सन 88 का वर्ष था. वह दौर जब उदारीकरण की सुगबुगाहट में उनींदा भारत ‘इंडिया’ बनने की और अग्रसर...
1 comment:
07 April, 2013

यादें (2): ...और 'मिशन स्कूल' में पढ़ाई का सपना अधूरा रह गया!

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यादाश्त पर जोर दूं तो 90 का शुरूआती दशक था वह . तब मैं दूसरी कक्षा में पढ़ता था पड़ोस के ही प्राथमिक विद्दालय में , न...
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नाचीज़ की तारीफ़

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श्रीकांत सौरभ
कनछेदवा, मोतिहारी, बिहार, India
साहित्य के अथाह समंदर का नवोदित तैराक हूं। किसी भी एक भाषा का मुक़म्मल ज्ञान नहीं, देवनागरी से बेपनाह मोहब्बत है। मेरा लिखा पढ़कर प्यार लुटाइए या नाराज़गी जताइए। लेकिन अपनी भावनाओं को छुपाइएगा मत।
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